बिलासपुर की पहचान बन चुके चांटीडीह महाशिवरात्रि मेले का रविवार को समापन हो गया। हर साल महाशिवरात्रि पर अरपा नदी तट में मौजूद शिव मंदिर परिसर में तीन दिवसीय भव्य मेले का आयोजन किया जाता है । यहां भगवान भोले भंडारी की पूजा अर्चना के साथ लोग मेले का भी भरपूर आनंद उठाते हैं । मेला 97 साल पुराना है। साल 1923 में वर्तमान संरक्षक शंकर सोनी के परदादा चार धाम की यात्रा पर गए थे। जहां से लौटने पर उन्होंने यहीं पर चार धाम प्रतीक में चार मंदिरों की स्थापना की। उन्हीं के प्रयास से यहां छोटा सा मेला आयोजित किया गया, जिसने साल दर साल विशाल आकार ले लिया। किसी ग्रामीण मेले की तर्ज पर यहां दुकानें सजती है। झूले लगते हैं। खेल खिलौने और मनोरंजन के अन्य साधन जुटाए जाते हैं। यही कारण है कि स्थानीय नागरिकों में इस मेले को लेकर गजब का आकर्षण है और वे वर्ष भर इसकी प्रतीक्षा करते हैं। इस बार भी महाशिवरात्रि पर पूजा पाठ के साथ चांटीडीह मेले का शुभारंभ हुआ। दूर-दूर से लोग जहां मंदिर में पूजा अर्चना करने पहुंचे तो वहीं मेले का आनंद लेने पहुंचे लोगों की भी संख्या कम नहीं रही । यहां पहुंचने वाले लोग जलेबी ,उखरा मसूर पाक, बालूशाही और अन्य पकवानों का आनंद लेते देखे गए , तो वही पारंपरिक झूले घोड़ा, कुर्सी आधुनिक ब्रेक डांस झूला, हवाई झूले भी मेले में आकर्षण की वजह रहे। यहा सिर्फ बच्चे ही नहीं बल्कि बड़े भी मेले का लुत्फ लेते देखे गए। आसपास के अलावा बाहर से भी बड़ी संख्या में व्यापारी यहां पहुंचे थे जिन्होंने दुकानें सजाई । इसी कारण से यहां अलग-अलग प्रांतों की संस्कृति और वहां का रंग भी नजर आया। मेले की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी है लेकिन आयोजक शंकर सोनी इस बात से आहत है कि जिस तरह मेले का क्षेत्रफल सिमटता जा रहा है , संभव है कि आने वाले वर्षों में मेले का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए ।
भारतीय जनमानस में उत्सव धर्मिता अंतर तक समाई हुई है ।यही कारण है कि तमाम मुसीबत और अड़चन के बावजूद हर साल यहां महाशिवरात्रि पर यह मेला भरता है और दूर-दूर से लोग मेले में आनंद लेने पहुंचते हैं । जो चार धाम की यात्रा नहीं कर पाते उनके लिए तो यह मेला और परिसर में मौजूद मंदिर ही चार धाम है। इस वर्ष भी यहां मेला खूब सजा और दूर-दूर से लोग मेले का आनंद उठाने पहुंचे।