करीब 2 वर्ष बाद रेलवे अस्पताल में आयोजित निशुल्क पेसमेकर शिविर में की गई 137 मरीजों की जांच, 14 से लेकर 97 साल के मरीज पहुंचे शिविर में

प्रवीर भट्टाचार्य


दिल और दिल की धड़कनों को लेकर न जाने कितने किस्से, कहानी और नगमे कहे- सुने गए हैं। मगर सच तो यह है कि दिल की अनियमित धड़कन ,जानलेवा साबित हो सकती है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में दिल की अनियमित धड़कनों को नियंत्रित करता है चमत्कारी मशीन पेसमेकर।  आमतौर पर एक पेसमेकर सात- आठ सालो तक शरीर के भीतर काम करता रहता है। लेकिन इसकी बैटरी क्षमता और मशीन की कार्यप्रणाली की नियमित जांच आवश्यक है। बिलासपुर और आसपास भी ऐसे मरीज बड़ी संख्या में है जिन्हें पेसमेकर लगा हुआ है । ऐसे ही मरीजो के लिए बिलासपुर के रेलवे चिकित्सालय में छह- छह माह के अंतराल से वर्ष में दो बार निशुल्क पेसमेकर जांच शिविर का आयोजन किया जाता है। साल 2011 से इस तरह के शिविर का आयोजन किया जा रहा है। बीच में  कोविड की वजह से इसमे व्यवधान आया।

 शुक्रवार को रेलवे  अस्पताल में पेसमेकर शिविर का एक बार फिर आयोजन किया गया। यहां रेलवे से संबंधित मरीजों के अलावा गैर रेलवे के मरीज भी पेसमेकर मशीन की कार्यप्रणाली की जांच कराने पहुंचे। पेसमेकर बनाने वाले चार कंपनियों के विशेषज्ञ भी अपने उपकरणों के साथ शिविर में मौजूद थे, जिन्होंने यहां पेसमेकर की बैटरी की जांच और रिप्रोग्रामिंग की।
 आयोजन के आधार स्तंभ ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर चंदन कुमार दास ने बताया कि एक अंतराल के बाद इस शिविर का आयोजन होने से इस बार मरीजों की संख्या पहले से अधिक रही।
बताया जाता है कि देश भर में यह अपनी तरह का एकमात्र  शिविर है जिससे मरीज लाभ उठा रहे हैं।
 करीब 2 साल बाद  यह शिविर आयोजित होने से ऐसे भी कई मरीज मिले जिनकी बैटरी  क्षमता लगभग खत्म होने की कगार पर थी। ऐसे मरीजों के बैटरी बदले जा रहे हैं । 


 शुक्रवार सुबह से ही यहां बड़ी संख्या में पेसमेकर के मरीज पहुंचे थे जो पंजीयन के बाद अपनी बारी की प्रतीक्षा करते दिखे। डॉक्टर सी के दास ने उम्मीद जताई कि आने वाले वर्षों में भी इसी तरह नियमित रूप से इस शिविर का आयोजन होता रहेगा, जिसमें पेसमेकर कंपनी का भी पूर्व की भांति सहयोग मिलता रहेगा । इस दौरान बिलासपुर  रेलवे अस्पताल के चिकित्सको और पैरामेडिकल स्टाफ का भी भरपूर सहयोग मिला। इस शिविर में कुल 137 मरीजों की जांच की गई , जिसमें रेलवे के 85 और 52 मरीज गैर रेलवे के रहे । जिन मरीजों की जांच की गई उनमें 14 से लेकर 97 साल के मरीज शामिल रहे।

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