मो नासीर
प्यार के सप्ताह या फिर कहिए सप्ताह भर के प्यार के विरोध में इस वर्ष भी हिंदूवादी संगठनों ने पाश्चात्य सभ्यता का पुतला दहन कर अपना विरोध दर्ज कराया। बाजारवाद की उपज वैलेंटाइन डे पिछले 25 वर्षों पुरानी ही देन है, इससे पहले भारत में वैलेंटाइन डे जैसे अपसंस्कृति को जन्म देने वाले उत्सव नहीं मनाये जाते थे । जब प्यार के नाम पर रोज और चॉकलेट से अधिक कांट्रेसेप्टिव बिकने लगे तभी आप इसकी हकीकत समझ सकते हैं। अब तो हालात यह है कि वैलेंटाइन डे की प्रतीक्षा सबसे अधिक मेडिकल स्टोर और ओयो होटल वाले करते हैं। धीरे धीरे प्यार के नाम पर उन्मुक्त सेक्स की ओर बढ़ने का पैगाम देने वाले वैलेंटाइन डे का इस वर्ष भी शिवसेना और अन्य संगठनों ने पुरजोर विरोध किया ।
उन्होंने कहा कि 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे की बजाय माता- पिता दिवस मनाया जाना चाहिए ।वही इस दिन अपसंस्कृति को बढ़ावा देने की बजाय पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि देकर देश के प्रति उनकी कुर्बानी को याद किए जाने की जरूरत है। इस दबाव के चलते पिछले कुछ वर्षों में वैलेंटाइन डे को लेकर जिस तरह का आडंबर प्रदर्शित किया जाता था उसमें कुछ कमी आई है। सोशल मीडिया पर भी इसके शोशेबाजी में कमी देखी जा रही है। फिर भी युवा पीढ़ी इसे लुक छुप कर मनाती रही। हालांकि अब प्रत्यक्ष तौर पर वैलेंटाइन डे मनाने की हिमाकत अधिकांश नहीं कर पा रहे। इसे अच्छे दिनों का संकेत कह सकते हैं ,क्योंकि जिन लोगों की तमन्ना होती है कि उनकी गर्लफ्रेंड उनके साथ उनके मनचाहे तरीके से वैलेंटाइन डे मनाए उन्हें चिंतन करना होगा कि कोई और युवक उनकी बहन- बेटियों के साथ भी यही मंसूबे सजा रहा होगा। अगर उन्हें यह स्वीकार है तभी वे किसी और को लेकर इस तरह की मानसिकता रखें। यही संदेश शिवसेना, बजरंगदल और अन्य हिंदूवादी संगठनों ने दिया, जिन्होंने भारतीय संस्कृति के विरुद्ध इसे साजिश बताते हुए कहा कि स्वयं समाज को आगे आकर इसका विरोध करना चाहिए।