

जिले के 1856 शालाओं में अब प्रधानाध्यापकों व प्रधान पाठकों को शैक्षणिक कार्यों के साथ-साथ आवारा कुत्तों की निगरानी का अतिरिक्त दायित्व निभाना पड़ेगा। शासन के नए निर्देशों के अनुसार प्रत्येक स्कूल को एक निर्धारित डॉग मॉनिटरिंग फॉर्म भरकर हर सात दिन में जमा करना अनिवार्य किया गया है। इसमें स्कूल परिसर या उसके आसपास दिखाई देने वाले कुत्तों का प्रकार, रंग, पहचान चिह्न, नर/मादा, तथा देखने का समय जैसी विस्तृत जानकारी दर्ज करनी होगी। साथ ही संस्था का नाम, संकुल और विकासखंड का विवरण भी भरना अनिवार्य है।
पहले से ही कार्यभार अधिक, अब नई जिम्मेदारी
शिक्षकों का कहना है कि जिले के लगभग 80% शिक्षक पहले ही एसआईआर से जुड़े कार्यों में व्यस्त हैं। इसके अलावा छमाही परीक्षाओं की तैयारी, प्रशासनिक कार्य और कई शिक्षकों को मिली बीएलओ की ड्यूटी ने उनका भार बढ़ा दिया है। ऐसे में हर हफ्ते कुत्तों का डेटा एकत्र करना और रिपोर्ट जमा करना पढ़ाई के समय पर असर डाल सकता है।
50% स्कूलों में बाउंड्रीवाल नहीं, निगरानी चुनौतीपूर्ण
जिले के लगभग 50 प्रतिशत स्कूलों में बाउंड्रीवाल नहीं है, जिसके कारण आवारा कुत्तों का प्रवेश रोकना लगभग असंभव है। शिक्षकों का कहना है कि जब कुत्ते परिसर में लगातार अंदर-बाहर होते रहते हैं, तो उनकी सटीक गणना व पहचान करना बेहद कठिन है। ऐसे में शासन द्वारा मांगी गई विस्तृत साप्ताहिक रिपोर्ट देना और भी चुनौती बन जाएगा।
शासन के निर्देशानुसार फॉर्मेट जारी
जिला शिक्षा अधिकारी विजय टांडे ने बताया कि शासन के निर्देश पर आवारा कुत्तों की जानकारी एकत्र करने के लिए फॉर्मेट जारी किया गया है। उन्होंने स्वीकार किया कि जिले के लगभग 50 प्रतिशत स्कूलों में बाउंड्रीवाल नहीं है, जिससे स्थिति जटिल है।
शिक्षक संगठन इस नई व्यवस्था को प्राथमिक कार्य—पढ़ाई में बाधा मानते हुए इसे पुनर्विचार योग्य बता रहे हैं।
