

बिलासपुर। गतौरा रेलवे स्टेशन से महज 2.2 किलोमीटर की दूरी पर सोमवार देर रात हुए भीषण ट्रेन हादसे में मानवीय भूल सामने आई है। प्रारंभिक जांच में यह स्पष्ट हुआ है कि लोको पायलट ने मुख्य ट्रैक के रेड सिग्नल को नजरअंदाज कर पास की लाइन पर दिख रहे यलो सिग्नल को सही मान लिया। गतौरा स्टेशन के डेटा लॉगर में भी यही रिकॉर्ड दर्ज हुआ है।
रेलवे जांच अधिकारियों के अनुसार, हादसे का स्थल ट्रैक के घुमावदार (कर्व) हिस्से में है, जिसके कारण पायलट को अपना सिग्नल स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं दिया। मोड़ पर स्थित दूसरे ट्रैक के ग्रीन सिग्नल को उसने अपनी लाइन का समझ लिया, जिससे ‘सिग्नल पास्ड एट डेंजर’ (SPAD) की स्थिति बनी और दोनों ट्रेनों में टक्कर हो गई। जांच में यह भी सामने आया है कि ट्रेन की स्पीड सिग्नल पार करते समय बढ़ी हुई थी। अधिकारियों का मानना है कि यह हादसा पूरी तरह मानवीय भूल का परिणाम है। लोको पायलट विद्यासागर इससे पहले माल गाड़ी चलाते थे। एक महीने पहले ही उन्हें प्रमोशन देकर पैसेंजर ट्रेन चलाने की जिम्मेदारी दी गई थी।

रातभर चला रेस्क्यू ऑपरेशन
हादसे के बाद एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, रेलवे, पुलिस और जिला प्रशासन की टीमें राहत एवं बचाव कार्य में जुटी रहीं। बिलासपुर मेमू के एक कोच में फंसे तीन शवों को निकालने के लिए रातभर ऑपरेशन चला। गैस कटर से लोहे की चादरें काटकर रात 2:18, 2:24 और 2:29 बजे क्रमशः महिला और दो पुरुष यात्रियों के शव बाहर निकाले गए।
मौके पर रेलवे जीएम तरुण प्रकाश, वरिष्ठ अधिकारी और रेस्क्यू रिलीफ टीम पूरी रात डटी रही। अधिकारियों ने अपने वाहनों से टॉवेल और चादरें निकालकर शवों को ढंका। शवों के बिखरे अंगों को भी खुद अधिकारियों ने एकत्रित किया।

सुबह 5:30 बजे तक तीनों ट्रैकों को क्लियर कर लिया गया और ट्रेन संचालन बहाल हुआ।
स्थानीयों ने भी की मदद
घटनास्थल के पास रहने वाली रेवती बाई (60) ने बताया कि हादसे के बाद घायलों को उसके खेत से होकर अस्पताल ले जाया गया। उन्होंने कहा, “फसल जरूर खराब हुई, लेकिन यह लोगों की मदद के काम आई।”
11 घंटे चला रेस्क्यू, अधिकारियों ने संभाली कमान
लगातार 11 घंटे तक रेस्क्यू अभियान चला। रात 2:43 बजे जब अंतिम शव बाहर निकाला गया, तब कलेक्टर संजय अग्रवाल और एसएसपी रजनेश सिंह समेत जिला प्रशासन के अधिकारी पूरी टीम का हौसला बढ़ाते हुए घटनास्थल से निकले।
रेलवे सेफ्टी आयुक्त करेंगे जांच
हादसे की जांच की जिम्मेदारी रेलवे सेफ्टी आयुक्त बी.के. मिश्रा को सौंपी गई है। उन्होंने 6 और 7 नवंबर को 19 अधिकारियों और कर्मचारियों को बयान दर्ज कराने के लिए तलब किया है।
इनमें असिस्टेंट लोको पायलट रश्मि राज, एलपीजी सुनील कुमार साहू, मालगाड़ी एएलपी पुनीत कुमार, ट्रेन मैनेजर ए.के. दीक्षित, सेक्शन कंट्रोलर पूजा गिरी, स्टेशन मास्टर आशा रानी, ज्योति रत्ने, निशा कुमारी, और सीएसएम एस.के. निर्मलकर समेत कई वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं।
मृतकों को तात्कालिक मुआवजा
रेलवे ने मृतकों और घायलों के परिजनों को तत्काल राहत के तौर पर 50-50 हजार रुपए नकद दिए हैं। बुधवार सुबह से परिजनों के दस्तावेजों की तस्दीक कर आगे की मुआवजा प्रक्रिया शुरू की गई।
हादसे में जान गंवाने वाले यात्री
शीला यादव (25) – देवरीखुर्द
विद्या सागर (53) – लोको पायलट
रंजीत प्रभाकर (41) – कोरबा
लवकुश शुक्ला (41) – सक्ति
प्रिया चंद्रा (21) – बेहराडीह (जांजगीर-चांपा)
गोती बाई (55) – टिंगीपुर (लोरमी)
अर्जुन यादव (35) – देवरीखुर्द
मानमती बाई यादव (51) – सलका (बिलासपुर)
गोदावरी बाई यादव (65) – लालपुर (बिलासपुर)
प्रमिला वस्त्रकार (55) – पाराघाट (जयरामनगर)
अंकित अग्रवाल (35) – बिल्हा
रेलवे के शुरुआती निष्कर्ष स्पष्ट करते हैं कि लोको पायलट द्वारा रेड सिग्नल की अनदेखी और सिग्नल भ्रम इस हादसे की मुख्य वजह रही। यह दुर्घटना एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है कि सिग्नलिंग सिस्टम में मानवीय गलती की गुंजाइश को खत्म करने के लिए स्वचालित सुरक्षा प्रणाली कितनी जरूरी है।

इधर इस मामले में तोरवा थाने में अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया है । यह अफवाह भी गर्म है कि यह एफआईआर लोको पायलट के खिलाफ दर्ज हुआ है जबकि एफआईआर किसी व्यक्ति विशेष नहीं बल्कि अज्ञात के खिलाफ हुआ है।
