

बिलासपुर। स्वच्छ सर्वेक्षण 2024-25 में 3 लाख से 10 लाख जनसंख्या वाले शहरों की श्रेणी में स्मार्ट सिटी बिलासपुर को देशभर में दूसरा स्थान मिला था। इस उपलब्धि के बाद आम धारणा बनी कि बिलासपुर अब एक साफ-सुथरा और स्वच्छ शहर बन चुका है। लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां करती है — शहर के कई इलाकों की तस्वीरें और हालात इस दावे को झुठलाने के लिए काफी हैं।
साफ-सफाई पर नगर निगम द्वारा हर वर्ष करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, फिर भी जमीनी स्तर पर व्यवस्था दोयम दर्जे की नजर आ रही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण तोरवा क्षेत्र के पुराना पावर हाउस चौक के पास स्थित एक खाली प्लॉट है, जिसे स्थानीय सफाईकर्मियों ने अनधिकृत कचरा डंपिंग स्थल बना लिया है।

स्थानीय निवासियों के अनुसार, मुख्य सड़क किनारे स्थित अरोड़ा परिवार का यह निजी प्लॉट, जिसकी बाउंड्री वॉल और गेट बने हुए हैं, अब कचरे के अंबार से भर चुका है। सफाई कर्मी सुबह-सुबह वार्ड से कचरा एकत्र कर ट्रॉली और डस्टबिन में लाते हैं और फिर बिना किसी झिझक के इसी प्लॉट में कचरा फेंक देते हैं। कई बार तो वे प्लॉट के अंदर डालने की भी जहमत नहीं उठाते — पूरा कचरा नालियों में डालकर चले जाते हैं।

इससे एक ओर नालियां बार-बार जाम हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर गंदगी और दुर्गंध से स्थानीय लोगों का जीना दूभर हो गया है। आसपास के दुकानदार और निवासी कभी-कभी मजबूरी में कचरे के ढेर में आग लगाकर बदबू से राहत पाने की कोशिश करते हैं, लेकिन इससे स्थिति और गंभीर हो जाती है — धुएं से वातावरण प्रदूषित होता है और आग फैलने का खतरा भी बना रहता है।

नागपुरे एग सेंटर के पास महीनों से जमा यह कचरा अब मच्छरों और संक्रमण का घर बन चुका है। प्लॉट के मालिक द्वारा कई बार नगर निगम और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से शिकायत की गई, लेकिन आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। सफाई कर्मी न तो अधिकारियों की सुनते हैं और न ही जनप्रतिनिधियों की, जिससे क्षेत्रवासियों में नाराजगी है।
स्थानीय व्यापारी शैलेन्द्र कश्यप (राजा) ने बताया, “सुबह सफाईकर्मी आते हैं, लेकिन कचरा उठाने की बजाय उसे यहीं डालकर चले जाते हैं। कई बार समझाने के बावजूद कोई सुधार नहीं होता। बदबू और गंदगी से दुकानें खोलना मुश्किल हो गया है।”

इस स्थिति ने नगर निगम की स्वच्छता व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां एक ओर राष्ट्रीय स्तर पर बिलासपुर को ‘स्वच्छ शहरों की सूची में दूसरा स्थान’ मिलने पर गर्व किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर शहर के अंदरूनी इलाकों में कचरा डंपिंग, गंदगी और अव्यवस्था की तस्वीरें इस दावे को खोखला साबित कर रही हैं।

शहर में सिविक सेंस (नागरिक चेतना) की भी गंभीर कमी दिखाई देती है। सफाईकर्मी और स्थानीय लोग एक जगह से कचरा उठाकर दूसरी जगह डालकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं — लेकिन इससे शहर साफ नहीं होता।
अब जरूरत है कि नगर निगम प्रशासन, स्थानीय पार्षदों और स्वच्छता अमले को इस स्थिति पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। यदि समय रहते इस तरह की अनियमितताओं पर लगाम नहीं लगी, तो बिलासपुर का “स्वच्छता में दूसरा स्थान” आने वाले सर्वेक्षणों में केवल एक कागजी उपलब्धि बनकर रह जाएगा।
