
प्रवीर भट्टाचार्य

बिलासपुर। प्रकृति पूजन का सबसे बड़ा महापर्व छठ पूरे भक्ति भाव, उल्लास और पवित्रता के साथ मनाया जा रहा है। यह पर्व केवल बिहार और उत्तर भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अब छत्तीसगढ़ में भी इसकी आस्था और भव्यता हर वर्ष नए कीर्तिमान रच रही है। चार दिवसीय इस उत्सव का तीसरा दिन — संध्या अर्घ्य — सोमवार को बिलासपुर के तोरवा स्थित छठ घाट, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा स्थायी छठ घाट माना जाता है, पर श्रद्धा और विश्वास का अद्भुत दृश्य देखने को मिला।



व्रतियों की आस्था और 36 घंटे का कठिन तप

छठ पर्व की विशेषता इसकी कठोर साधना और शुद्धता में निहित है। व्रती महिलाएं और पुरुष 36 घंटे का निर्जला उपवास रखकर सूर्य देव और छठी मैया की आराधना करते हैं। सोमवार दोपहर से ही गाजे-बाजे और भक्ति गीतों के साथ सिर पर दऊरा रखे नंगे पांव व्रती घाट की ओर रवाना हुए। घाट पहुंचकर उन्होंने अपने-अपने स्थानों पर वेदी का निर्माण किया और पूरे मनोयोग से पूजा की तैयारी में जुट गए।


व्रती महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा धारण की हुई थी, मांग से लेकर नाक तक फैला सिंदूर और चेहरे पर भक्ति की चमक उनके आस्था भाव को प्रदर्शित कर रही थी। घाट पर हर ओर “छठी मइया के जयकारे” गूंज रहे थे।
सूर्य देव को अर्घ्य और परिवार की मंगलकामना

संध्या 5:29 बजे अस्ताचलगामी सूर्य देव को दूध और नदी के जल से अर्घ्य अर्पित किया गया। इस दौरान व्रतियों ने संतान की दीर्घायु, परिवार की सुख-समृद्धि और समाज के कल्याण की प्रार्थना की। डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का यह दृश्य आस्था, पवित्रता और प्रकृति पूजन का अद्वितीय उदाहरण था।

यातायात और सुरक्षा व्यवस्था रही चाक-चौबंद
श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए यातायात पुलिस बिलासपुर ने ट्रैफिक व्यवस्था को सख्ती और संवेदनशीलता के साथ संभाला। घाट के करीब सात से अधिक स्थानों पर बृहद पार्किंग की व्यवस्था की गई थी। दोपहर 12 बजे से ही भारी वाहनों का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया था।
घाट क्षेत्र में 300 से अधिक पुलिस जवान सुरक्षा व्यवस्था में तैनात रहे, वहीं सीसीटीवी कैमरे और ड्रोन कैमरा के माध्यम से पूरे आयोजन की निगरानी की गई। किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए एसडीआरएफ की टीम भी घाट पर मौजूद रही।

जनसेवा और सामाजिक सहभागिता


घाट पर आस्था के साथ सेवा का भी भाव देखने को मिला। पाटलिपुत्र संस्कृति विकास मंच के अध्यक्ष डॉ. धर्मेंद्र कुमार दास द्वारा हर वर्ष की तरह इस बार भी हजारों श्रद्धालुओं को निःशुल्क चाय और कॉफी का वितरण किया गया।
वहीं स्वास्थ्य विभाग ने भी घाट परिसर में अपना स्टॉल लगाकर किसी भी आपात स्थिति के लिए चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई।


मेला और सांस्कृतिक उत्सव का वातावरण

छठ घाट के आसपास मेले जैसा माहौल रहा। खाने-पीने के स्टॉल, बच्चों के झूले, खिलौनों की दुकानों और सांस्कृतिक संगीत ने पूरे वातावरण को उल्लास से भर दिया। अनुमान के अनुसार 50,000 से अधिक श्रद्धालु घाट में उपस्थित रहे।
उषा अर्घ्य की तैयारी आज रात से


संध्या अर्घ्य के बाद व्रती अपने घर लौट गए और अब मंगलवार तड़के पुनः घाट पर लौटेंगे। सुबह 6:03 बजे उदित होते सूर्य देव को उषा अर्घ्य प्रदान किया जाएगा। इसके पश्चात ठेकुआ और प्रसाद का वितरण कर व्रत का पारण किया जाएगा।
छठ की अनंत महिमा

छठ महापर्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें किसी प्रतिमा या मूर्ति की पूजा नहीं होती — यहां साक्षात दिख रहे सूर्य देव की उपासना की जाती है। यह पर्व प्रकृति, जल, वायु, अग्नि और पृथ्वी — पंचतत्वों के प्रति आभार और संतुलन का प्रतीक है।


तोरवा घाट की भव्यता – अद्वितीय और विश्वप्रसिद्ध
बिलासपुर के तोरवा स्थित छठ घाट की भव्यता का कोई सानी नहीं। यहां हर वर्ष की तरह इस बार भी आयोजन रजत जयंती वर्ष के रूप में और अधिक भव्य रहा। आयोजन में पाटलिपुत्र संस्कृति विकास मंच, भोजपुरी समाज, सहजानंद समाज सहित कई सामाजिक संगठनों की सक्रिय भूमिका रही।

छठ महापर्व न केवल आस्था का पर्व है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण, पवित्रता, अनुशासन और सामाजिक समरसता का सबसे जीवंत उदाहरण भी है।
सूर्यास्त के साथ जब हजारों दीप जल उठे और “छठी मइया” के गीतों से घाट गूंज उठा, तब बिलासपुर का तोरवा छठ घाट साक्षात भक्ति और दिव्यता का केंद्र बन गया।
