

पीतांबरा पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. दिनेश जी महाराज ने बताया कि रूप चौदस, नरक चतुर्दशी और काली चौदस तीनों ही नाम दीपावली के पाँच दिवसीय महापर्व के दूसरे दिन यानी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाए जाने वाले त्यौहार के हैं। इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है।
यह पर्व तीन मुख्य कारणों से इन तीन नामों से जाना जाता है, जो स्वास्थ्य, सुरक्षा और शुद्धि की कामना को दर्शाते हैं।
यह पर्व हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है।
(छोटी दिवाली) 19 अक्टूबर 2025, रविवार को मनाया जाएगा क्योंकि चतुर्दशी तिथि का प्रारम्भ 19 अक्टूबर 2025 को दोपहर 01:51 बजे होगा एवं चतुर्दशी तिथि का समापन 20 अक्टूबर 2025 को दोपहर 03:44 बजे होगा|
चूंकि चतुर्दशी तिथि 19 अक्टूबर को दोपहर में शुरू हो रही है, इसलिए शाम की पूजा (यम दीपदान) और रात की पूजा (काली चौदस) 19 अक्टूबर को ही होगी। हालांकि, अभ्यंग स्नान (रूप चौदस) 20 अक्टूबर को सूर्योदय से पहले होगा।
नरक चतुर्दशी (अधर्म पर धर्म की विजय और यम भय से मुक्ति)
*पौराणिक कथा: इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी राक्षस नरकासुर का वध कर 16,000 बंदी कन्याओं को मुक्त कराया था। यह दिन बुराई, अंधकार और अधर्म पर धर्म और प्रकाश की विजय का प्रतीक है।
यम दीपदान: इस दिन मुख्य रूप से यमराज (मृत्यु के देवता) की पूजा और उनके लिए दीपदान किया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है और नरक की यातनाएँ नहीं भोगनी पड़ती हैं।
रूप चौदस (सौंदर्य, स्वास्थ्य और कायाकल्प)
इस दिन शरीर को स्वस्थ रखने और सौंदर्य को निखारने के लिए विशेष स्नान किया जाता है।
अभ्यंग स्नान: रूप चौदस पर सूर्योदय से पहले तिल का तेल लगाकर और जल में अपामार्ग (चिरचिरी) की पत्तियां डालकर स्नान (अभ्यंग स्नान) करने का विधान है। ऐसा करने से न केवल रूप निखरता है, बल्कि व्यक्ति का स्वास्थ्य भी उत्तम रहता है और सभी पाप धुल जाते हैं।
काली चौदस (नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा)
यह नाम विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और गुजरात में प्रचलित है, जहाँ इसे देवी महाकाली (या कालरात्रि) की पूजा के रूप में मनाया जाता है।यह रात तंत्र साधना करने वाले साधकों के लिए विशेष मानी जाती है। काली चौदस पर देवी काली की पूजा नकारात्मक शक्तियों, काला जादू और बुरी आत्माओं से रक्षा के लिए की जाती है।
यम दीपदान (संध्याकाल) – 19 अक्टूबर, रविवार-शाम 05:47 से 08:57 तक |
काली चौदस पूजा (निशिता काल) 19 अक्टूबर, रविवार की रात- रात 11:41 से रात्रि 12:31 तक
अभ्यंग स्नान (रूप चौदस)- 20 अक्टूबर, सोमवार-सुबह 05:13 से 06:25 तक |
अभ्यंग स्नान: सूर्योदय से पहले उठकर तेल और उबटन (बेसन, हल्दी, चंदन आदि) लगाकर स्नान करना इस दिन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है।
यम दीपदान: शाम/रात के समय घर के मुख्य द्वार पर आटे या मिट्टी का चौदह दीपक जलाया जाता है और इसका मुख दक्षिण दिशा की ओर रखा जाता है। यह दीपक यमराज को समर्पित होता है।
हनुमान जी की पूजा: कई क्षेत्रों में इस दिन हनुमान जी की भी पूजा की जाती है, ताकि वे भक्तों को भय, दरिद्रता और नकारात्मक शक्तियों से बचाएँ।
घर की सफाई: दीपावली से एक दिन पहले होने के कारण इस दिन घर के कोनों-कोनों की सफाई करके सभी प्रकार के कूड़ा-करकट या टूटी-फूटी चीजों को बाहर फेंक दिया जाता है, जो नकारात्मकता को दूर करने का प्रतीक है।
दीपों की सजावट: इस दिन भी घरों को दीपों से सजाया जाता है, इसलिए इसे छोटी दीपावली कहते हैं।
