

नई दिल्ली |
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स द्वारा अकाउंट सस्पेंड या ब्लॉक किए जाने के मामलों में देशभर के लिए एक समान दिशा-निर्देश (गाइडलाइन) बनाने की मांग को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज जैसे वॉट्सएप, फेसबुक, एक्स (ट्विटर) आदि द्वारा अकाउंट बंद करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और संतुलन नहीं है, इसलिए इसके लिए न्यायिक दिशा-निर्देश जरूरी हैं।
🔹 सुप्रीम कोर्ट ने पूछा – “वॉट्सएप तक पहुंच मौलिक अधिकार कैसे?”
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने अनुच्छेद 32 के तहत दायर इस याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि किसी व्यक्ति के पास वॉट्सएप या किसी अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक पहुंच होना मौलिक अधिकार नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन एप्स का उपयोग किसी संवैधानिक अधिकार के दायरे में नहीं आता।
पीठ ने कहा, “यदि किसी का अकाउंट ब्लॉक हो जाता है, तो वह न्याय के लिए अन्य कानूनी रास्ते अपना सकता है। लेकिन यह कहना कि सोशल मीडिया तक पहुंच न होना मौलिक अधिकार का हनन है, सही नहीं।”
🔹 कोर्ट का सुझाव – “स्वदेशी एप अपनाएं”
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में अब स्वदेशी मैसेजिंग प्लेटफॉर्म उपलब्ध हैं, जिन्हें लोग विकल्प के रूप में अपना सकते हैं। कोर्ट ने खासतौर पर जोहो कंपनी द्वारा विकसित “अरट्टाई” (Arattai) एप का उल्लेख किया।
कोर्ट ने कहा, “यदि याचिकाकर्ताओं को किसी विदेशी प्लेटफॉर्म की नीतियों से समस्या है, तो वे भारतीय विकल्पों का उपयोग कर सकते हैं। अब देश में ऐसे स्वदेशी एप मौजूद हैं जो गोपनीयता और डाटा सुरक्षा के लिहाज से भी बेहतर विकल्प हैं।”
🔹 अरट्टाई एप की लोकप्रियता में 100 गुना वृद्धि
जोहो कॉर्पोरेशन के इस स्वदेशी मैसेजिंग एप अरट्टाई ने हाल ही में लोकप्रियता में बड़ी छलांग लगाई है। रिपोर्ट्स के अनुसार, सितंबर माह में इसके डाउनलोड्स में 100 गुना तक वृद्धि दर्ज की गई।
3 अक्टूबर तक इस एप को 75 लाख से अधिक बार डाउनलोड किया जा चुका है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और उद्योगपति आनंद महिंद्रा जैसे दिग्गज भी इस स्वदेशी प्लेटफॉर्म को अपना चुके हैं।
🔹 सुप्रीम कोर्ट ने दी निचली अदालत जाने की छूट
बेंच ने याचिकाकर्ताओं को सलाह दी कि यदि उन्हें किसी सोशल मीडिया कंपनी की कार्रवाई अनुचित लगती है, तो वे सीधे सुप्रीम कोर्ट आने के बजाय संबंधित निचली अदालत या सक्षम प्राधिकारी के पास जा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस रुख से स्पष्ट है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के संचालन को मौलिक अधिकारों के तहत नहीं रखा जा सकता। साथ ही, अदालत ने “डिजिटल आत्मनिर्भरता” की दिशा में एक अहम संदेश दिया है — कि देशवासी अब स्वदेशी तकनीकी विकल्पों की ओर कदम बढ़ाएं।
