तीन वर्षों से अनवरत सेवा की मिसाल बनी स्मृति रक्तदान एवं मेडिकल शिविर, श्रद्धांजलि की नई परंपरा—रक्तदान से दी गई इंसानियत की मिसाल

बिलासपुर।
मंगला चौक स्थित बालाजी चेरिटेबल ब्लड बैंक में आज एक बार फिर मानवता की अद्वितीय मिसाल देखने को मिली, जहां श्रद्धांजलि के रूप में फूलों की जगह रक्त की बूंदों से सेवा की भावना व्यक्त की गई। यह अवसर था स्व. सरोजनी देवी, सरिता देवी एवं उर्मिला केडिया जी की पुण्य स्मृति में आयोजित स्मृति रक्तदान एवं निःशुल्क मेडिकल शिविर का, जो विगत तीन वर्षों से लगातार आयोजित होता आ रहा है।

इस वर्ष भी शिविर में 35 से अधिक लोगों ने रक्तदान कर मानवता के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाई। विशेष बात यह रही कि भारी बारिश के बावजूद भी लोग सेवा के इस पुनीत कार्य में सहभागी बनने के लिए उमड़े। यह आयोजन न केवल एक श्रद्धांजलि कार्यक्रम था, बल्कि समाज में सेवा, समर्पण और जागरूकता की भावना को पुष्ट करने वाला प्रेरणादायक प्रयास भी रहा।

शिविर में अनुभवी चिकित्सकों की टीम द्वारा स्वास्थ्य परीक्षण किया गया, जिसमें ब्लड प्रेशर, शुगर, बीएमआई, हीमोग्लोबिन सहित कई आवश्यक जांचें की गईं। स्वास्थ्य परीक्षण के साथ-साथ उपस्थित लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक भी किया गया।

इस आयोजन का सबसे उल्लेखनीय पहलू यह रहा कि यह शिविर सिर्फ़ एक दिन की सेवा नहीं, बल्कि एक सतत चलने वाली समाजसेवा की प्रक्रिया है, जिसमें हर वर्ष भागीदारी बढ़ती जा रही है।

आयोजकों ने कहा — “सेवा ही सच्ची श्रद्धांजलि है”
आयोजकों ने बताया कि स्व. सरोजनी देवी, सरिता देवी एवं उर्मिला केडिया जी के जीवन मूल्य और सेवा भावना को जन-जन तक पहुंचाने का यह एक प्रयास है। उनका मानना है कि रक्तदान और निःशुल्क चिकित्सा शिविर के माध्यम से न केवल ज़रूरतमंदों को राहत मिलती है, बल्कि स्वजन की स्मृति भी सार्थक होती है।

समाज के युवाओं ने निभाई अहम भूमिका
शिविर की सफलता में युवाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रही। कॉलेज स्टूडेंट्स, स्वयंसेवी संगठन और स्थानीय नागरिकों ने मिलकर शिविर की व्यवस्थाओं को संभाला और रक्तदाताओं को प्रोत्साहित किया।

मानवता की सेवा ही सच्चा धर्म
यह आयोजन न केवल एक श्रद्धांजलि का अवसर था, बल्कि यह समाज में बढ़ती संवेदनहीनता के बीच एक सशक्त संदेश भी था कि हम सब मिलकर एक सकारात्मक बदलाव की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।

सचमुच, श्रद्धांजलि का यह रूप अपने आप में अनूठा है, जहां स्मृति को सेवा में बदल दिया गया है। तीन वर्षों से जारी यह परंपरा समाज को यह सिखाती है कि जीवन की सार्थकता दूसरों के लिए कुछ कर गुजरने में है।


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