सक्ती में सामाजिक बहिष्कार से तंग आकर वृद्ध ने की आत्महत्या, परिवार को छोड़ना पड़ा गांव,जमीन विवाद में समाज ने अदालत के फैसले से पहले सुनाया ‘फैसला’, बहिष्कार के बाद पीड़ित परिवार दर-दर भटकने को मजबूर


सक्ती विकासखंड के ग्राम सरवानी में मानवता को शर्मसार करने वाला मामला सामने आया है, जहां एक वृद्ध को सामाजिक बहिष्कार की पीड़ा झेलनी पड़ी और अंततः उसने आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठा लिया। वृद्ध की मौत के बाद भी समाज की अमानवीयता थमी नहीं और उसके परिवार को न केवल गांव छोड़ने को मजबूर होना पड़ा बल्कि उसकी पोती की शादी भी गांव में नहीं होने दी गई।

कोर्ट में मामला लंबित, समाज ने सुनाया ‘फैसला’

ग्राम सरवानी निवासी 75 वर्षीय महेत्तरराम साहू के परिवार में जमीन का विवाद लंबे समय से चल रहा था। बड़े बेटे चितेंद्र की मृत्यु के बाद उसका परिवार और छोटे बेटे जितेंद्र के बीच खेत के बंटवारे को लेकर मतभेद था। यह मामला न्यायालय में विचाराधीन था, लेकिन 28 मार्च को गांव के समाज प्रमुखों ने पंचायत बुलाकर महेत्तरराम की बहू बिमला बाई साहू के पक्ष में एकतरफा फैसला सुनाया।

इतना ही नहीं, समाज के लोगों ने वृद्ध महेत्तरराम पर कोर्ट केस वापस लेने का दबाव बनाना शुरू कर दिया और फैसले को मानने के लिए धमकी भी दी। जब महेत्तरराम ने समाज का यह फैसला मानने से इनकार किया तो उसे और उसके परिवार को सामाजिक रूप से बहिष्कृत कर दिया गया।

फांसी लगाकर दी जान, कोई कार्रवाई नहीं

सामाजिक बहिष्कार और प्रताड़ना से टूटे महेत्तरराम ने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उन्होंने एक सुसाइड नोट भी छोड़ा, जिसमें कुछ लोगों को इस स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। लेकिन अब तक उस सुसाइड नोट के आधार पर किसी पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। पीड़ित परिवार लगातार न्याय की गुहार लगा रहा है, परंतु पुलिस की ओर से अभी तक न्यायोचित कदम नहीं उठाया गया है।

बेटी की शादी भी नहीं करने दी गांव में

महेत्तरराम के छोटे बेटे जितेंद्र की बेटी की शादी 18 अप्रैल को तय थी। शादी के कार्ड भी छप चुके थे। लेकिन समाज के दबाव में गांव में शादी न करने का फरमान सुना दिया गया। मजबूरन जितेंद्र को अपना मकान और खेती छोड़कर अपने ससुराल ग्राम बबगुड़वा जाना पड़ा, जहां उसने बेटी की शादी करवाई।

खेत काटने भी नहीं मिले मजदूर

जितेंद्र ने बताया कि उसके खेत में धान की फसल तैयार थी, लेकिन जब वह उसे काटने गांव लौटा तो स्थानीय मजदूरों ने काम करने से इनकार कर दिया। अंततः उसे दूसरे गांव से मजदूर बुलाकर हार्वेस्टर से फसल कटवानी पड़ी।

न्याय की तलाश में दर-दर की ठोकरें

पीड़ित परिवार न्याय की गुहार लेकर थाना और पुलिस अधिकारियों के चक्कर काट रहा है, लेकिन अब तक उन्हें केवल आश्वासन ही मिला है। जितेंद्र ने इस मामले की शिकायत एसपी से की थी, जिस पर एसपी ने सक्ती थाना प्रभारी को आवश्यक कार्रवाई के निर्देश दिए।

पुलिस का पक्ष

इस मामले पर बिलासपुर रेंज के आईजी संजीव शुक्ला ने कहा कि,

“पीड़ित परिवार मेरे पास आए थे। इस मामले में मैंने एसपी सक्ती से बात कर उचित कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। खुदकुशी के केस में कथित सुसाइड नोट को जांच के लिए हैंडराइटिंग एक्सपर्ट के पास भेजा गया है। पीड़ित को न्याय जरूर मिलेगा।”

सामाजिक कुप्रथा या दबंगई का उदाहरण?

यह घटना समाज में व्याप्त कुप्रथाओं, सामूहिक दबाव और ग्रामीण दबंगई का एक भयावह उदाहरण है। जबकि मामला न्यायालय में विचाराधीन था, तब समाज द्वारा फैसला सुनाना और उसका पालन न करने पर सामाजिक बहिष्कार करना संविधान व कानून दोनों के विरुद्ध है।

इस दुखद घटना ने न केवल एक परिवार को उजाड़ दिया, बल्कि यह भी सवाल खड़ा किया है कि क्या आज भी गांवों में सामाजिक तंत्र कानून से ऊपर माना जाता है? क्या एक न्यायप्रिय नागरिक को अपनी बात रखने की आजादी नहीं है?

पीड़ित परिवार अब भी न्याय की उम्मीद में है और पूरे मामले की निष्पक्ष जांच एवं दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग कर रहा है।

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