देवरीखुर्द रेल विहार में मकान निर्माण को लेकर दो पड़ोसी आपस में भिड़े, एक दूसरे पर लगाया आरोप- प्रत्यारोप, पुलिस भी उलझी, बिना अनुमति पड़ोसी के कॉलम और प्लास्टर पर चलाया ड्रिल

आकाश मिश्रा

पड़ोसी ने मकान बनाने के दौरान पड़ोसी के मकान पर ड्रिल चला दिया, इसे लेकर दोनों के बीच विवाद गहराता जा रहा है। पुलिस ने भी कई बार समझौते का प्रयास किया लेकिन दोनों ही पक्ष मानने को तैयार नहीं। देवरीखुर्द के रेलवे विहार कॉलोनी में रहने वाले दो पड़ोसियों के बीच जमकर बवाल मचा हुआ है। पड़ोसी द्वारा किए जा रहे निर्माण पर आपत्ति जताई जा रही है। पड़ोसी का अपने लिए मकान का निर्माण करना उचित है लेकिन इसके लिए पड़ोसी के निर्माण पर ड्रिल चलवाने का अधिकार पता नहीं उन्हें किसने दे दिया ?  बिना अनुमति पड़ोसी के कॉलम और प्लास्टर को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, पड़ोसी बेबस है, उसकी कहीं सुनवाई नहीं हो रही।

यह कड़वी सच्चाई है कि कोई भी संकट आने पर रिश्तेदारों से पहले पड़ोसी पहुंचता है। दूसरी सच्चाई यह भी है कि कोई भी मकान 100 साल से अधिक अपने मालिक को बर्दाश्त नहीं करता, यानी 100 साल बाद उसका मालिक बदल ही जाता है, लेकिन फिर भी अक्सर एक-एक इंच जमीन और मकान निर्माण के दौरान पड़ोसियों के बीच लड़ाई झगड़ा आम बात है। बिलासपुर के देवरी खुर्द स्थित रेल विहार कॉलोनी में भी दो पड़ोसियों के बीच इन दिनों इसी तरह का विवाद गहराया हुआ है। इस कॉलोनी में मनीष रामटेके का 18 वर्ष पुराना दो मंजिला मकान है। ठीक उनके बगल में ही आनंद भार्गव का मकान है। इससे पहले मनीष रामटेके ने अपने मकान का रिनोवेशन करवाया। अब आनंद भार्गव अपने मकान का रिनोवेशन करा रहे हैं। दोनों ने ही अपनी जमीन की 1 इंच नहीं छोड़ी यानी दोनों के मकान की दीवारे आपस में चिपके हुए हैं, लेकिन दोनों के दिल इस तरह से मिले हुए नहीं है। यही कारण है कि अक्सर इस दीवार की वजह से दोनों परिवार में विवाद होता रहता है। रामटेके परिवार का आरोप है कि आनंद भार्गव द्वारा किए जा रहे निर्माण कार्य की वजह से उनके दीवार का प्लास्टर छिल दिया गया। उनके बीम को नुकसान पहुंचाया गया, जिस कारण से उनके मकान को नुकसान पहुंच रहा है। उनके घर में मौजूद सामान खराब हो रहे हैं।

इतना ही नहीं रामटेके परिवार यह भी आरोप लगा रहा है कि आनंद भार्गव के भतीजे सतीश भार्गव छत्तीसगढ़ पुलिस में डीएसपी है इसलिए उनकी शिकायत कहीं नहीं सुनी जा रही। वे चाहते हैं कि निर्माण कार्य पर रोक लग जाए लेकिन अब तक उन्हें निराशा हाथ लगी है। पुलिस ने भी कह दिया है कि वे अदालत से स्टे आर्डर लेकर आए, उसके बगैर उन्हें काम रोकने का कोई अधिकार नहीं है। रामटेके परिवार का आरोप है कि ना तो पुलिस उनकी सुन रही है और ना ही प्रशासन।

इधर आनंद भार्गव की बेटी जागृति भार्गव ने बताया कि इससे पहले रामटेके परिवार ने भी अपने मकान की मरम्मत की थी, जिसके कारण उन्हें भी परेशानी का सामना करना पड़ा था लेकिन उन्होंने सहयोग किया , लेकिन रामटेके परिवार सहयोग करने को जरा भी तैयार नहीं। वे जिस नुकसान की बात कर रहे हैं उसकी भी भरपाई करने को भार्गव परिवार तैयार है, लेकिन बेवजह इस मामले को तूल दिया जा रहा है। और
अकारण ही डीएसपी को इस पूरे प्रकरण में खींचा जा रहा है, जिसकी कोई भूमिका ही नहीं है।

जाहिर सी बात है कि जब दोनों मकान आपस में सटे हुए हैं तो उसमें निर्माण कार्य के दौरान एक दूसरे को परेशानी तो होगी ही। निर्माण के दौरान ड्रिल चलने से भी दीवार और प्लास्टर को नुकसान होगा। अगर इससे बचना ही था तो दोनों मकानों के बीच फासला रखना था और अगर नहीं रखा तो फिर अब एक दूसरे से सहयोग करना चाहिए, क्योंकि पड़ोसी बदले नहीं जा सकते। अच्छी बात यह है कि भार्गव परिवार हो रहे नुकसान की भरपाई को तैयार है। इसके बाद भी जिस तरह से इस पूरे मामले को तूल दिया जा रहा है वह शायद बेवजह है। वैसे भवन निर्माण के लिए पड़ोसी के मकान का प्लास्टर छील देना और उनके बीम को क्षति पहुंचाना कहीं से भी न्याय पूर्ण नहीं है।

जाहिर है निर्माण कार्य की वजह से पड़ोसी को परेशानी हो रही। वही भार्गव परिवार का भी आरोप है कि उनके द्वारा निर्माण के तुरंत बाद रामटेके परिवार द्वारा उनके निर्माण पर पानी डालकर भवन को कमजोर कर दिया जा रहा है। रामटेके परिवार आरोप लगा रहा है कि उन्हें जान से मारने की धमकी दी जा रही है, बदले में आनंद भार्गव कहते हैं कि इस वजह से उनकी बेटी फेल हो सकती है। उनकी पत्नी को हार्ट फेल हो सकता है। शायद उनका यह डर बेवजह हो। भार्गव परिवार को भी यह ध्यान रखना होगा कि उनके निर्माण की वजह से ना तो पड़ोसी के मकान को किसी तरह का नुकसान पहुंचे और ना ही आपसी रिश्ते बिगड़े। यानी दोनों ही पक्षों को समझदारी से काम लेना होगा, जो फिलहाल तो नजर नहीं आ रहा। आरोप तो यह भी लगाया गया कि इस पूरे मामले में ठेकेदार स्थानीय पार्षद के भाई हैं जबकि पार्षद ने पूरे मामले से पल्ला झाड़ लिया है और उन्होंने कहा कि उनका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है। फिलहाल रामटेके परिवार जोन ऑफिस से लेकर कलेक्ट्रेट और थाने तक का चक्कर लगा चुका है। पुलिस ने दोनों पक्षों के बीच समझौता भी करा दिया लेकिन फिर भी हर दिन नया विवाद खड़ा हो जाता है। जिसका समाधान भी यही है कि दोनों ही परिवार आपस में बैठे और कोई ऐसा रास्ता तलाशे, जिससे सांप भी मर जाए और लाठी में न टूटे। नहीं तो यह विवाद बढ़ता ही रहेगा और इससे किसी का भी भला नहीं हो सकता।

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