गुप्त नवरात्रि के पावन पर्व पर आचार्य डॉ. दिनेश जी महाराज ने कहा कि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:,यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:

श्री पीताम्बरा पीठ सुभाष चौक सरकण्डा बिलासपुर छत्तीसगढ़ स्थित त्रिदेव मंदिर में माघ गुप्त नवरात्र उत्सव का आयोजन किया जा रहा है, जो 30 जनवरी 2025 से 6 फरवरी 2025 तक चलेगा। इस अवसर पर पीताम्बरा पीठाधीश्वर आचार्य दिनेश जी महाराज ने बताया कि श्री पीताम्बरा पीठ त्रिदेव मंदिर में स्थित श्री ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का विशेष पूजन, श्रृंगार तारा देवी के रूप में किया गया है।

इसके अलावा, प्रातःकालीन श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का रुद्राभिषेक, पूजन एवं परमब्रह्म मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जी का पूजन, श्रृंगार, श्री सिद्धिविनायक जी का पूजन श्रृंगार, एवं श्री महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती राजराजेश्वरी, त्रिपुरसुंदरी देवी का श्रीसूक्त षोडश मंत्र द्वारा दूधधारियाँ पूर्वक अभिषेक किया जा रहा है। रात्रि कालीन पीताम्बरा हवनात्मक यज्ञ ब्राह्मणों द्वारा संपन्न हो रहा है।

पीतांबरा पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. दिनेश जी महाराज ने कहा कि सनातन भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है- ‘यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:। अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। महाभारत में कहा गया है कि जिस कुल में नारियों की उपेक्षा भाव से देखा जाता है उस कुल का सर्वनाश हो जाता है। शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि नारी नर की आत्मा का आधा भाग है। नारी के बिना नर का जीवन अधूरा है इस अधूरेपन को दूर करने और संसार को आगे चलाने के लिए नारी का होना जरूरी है।नारी को वैदिक युग में देवी का दर्जा प्राप्त था। अथर्ववेद का एक श्लोक है- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:,यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:
जिस कुल में नारियों कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण,और उत्तम संतान होते हैं एवं वहां साक्षात देवता निवास करते हैं, और जिस कुल में स्त्रियों कि पूजा नहीं होती, वहां उनकी सब क्रिया निष्फल हैं। यहां पूजा से तात्पर्य स्त्रियों के मान-सम्मान से है। नारी ही मां है और नारी ही सृष्टि। एक सृष्टि की कल्पना बगैर मां के नहीं की जा सकती है। मां अर्थात माता के रूप में नारी, धरती पर अपने सबसे पवित्रतम रूप में है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है, क्योंकि ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है।
वेदों में ‘मां’ को ‘अंबा’, ‘अम्बिका’, ‘दुर्गा’, ‘देवी’, ‘सरस्वती’, ‘शक्ति’, ‘ज्योति’, ‘पृथ्वी’ आदि नामों से संबोधित किया गया है। स्त्री ना होती जग म्हं, सृष्टि को रचावै कौण।ब्रह्मा विष्णु शिवजी तीनों, मन म्हं धारें बैठे मौन। एक ब्रह्मा नैं शतरूपा रच दी, जबसे लागी सृष्टि हौण।’
अर्थात, यदि नारी नहीं होती तो सृष्टि की रचना नहीं हो सकती थी। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक सृष्टि की रचना करने में असमर्थ बैठे थे। प्रकृति से ही समस्त संसार का प्रारंभ हुआ।

सनातन वैदिक हिन्दू धर्म में जहां पुरुष के रूप में देवता और भगवानों की पूजा-प्रार्थना होती हैं,वहीं देवी के रूप में मां सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा का वर्णन मिलता है। वैदिक काल में नारियां मां, देवी, साध्वी, गृहिणी, पत्नी और बेटी के रूप में ससम्मान पूजनीय मानी जाती थीं। हिंदू धर्म में परम्परा के अनुसार धन की देवी ‘लक्ष्मी’, ज्ञान की देवी ‘सरस्वती’ और शक्ति की देवी ‘दुर्गा’ मानीं गई हैं।

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