


हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है… व्याकरण रूप पाकर भाषा के रूप में उसकी व्यावहारिक प्रगति सबसे उल्लेखनीय है, बड़ा सच है कि एक सदी में दुनिया पर छाने वाली यह नवीन भाषा भी है और यह इसकी वैज्ञानिक गुण संपन्नता भी हैं।
उसका रचना संसार विस्तृत और उसमें रचना कर्म सबसे अधिक है, अन्य भाषाओं में जहां किताबें कम्प्यूटर कॉपी के रूप में गिनी चुनी आ रही है, वहीं हिंदी में अब भी अपेक्षाकृत ज्यादा पुस्तकें छप रही है, बिक्री एक अलग बात है लेकिन बांटने जैसी खुशी भी हिंदी पुस्तक जगत दे रहा है… अन्य भाषाओं के मुकाबले प्रति व्यक्ति, प्रतिदिन, प्रति घंटा हिंदी ज्यादा व्यवहार में आ रही है… जिस तरह इसको बढ़ावा मिल रहा है, उसी तरह इसकी लिपि और लेखन विधि को बचाया जाना जरूरी है…
आज हम विश्व हिन्दी दिवस मना रहे हैं, इस अवसर पर महर्षि दयानंद सरस्वती को याद कर रही हूँ क्योंकि आज से डेढ सौ वर्ष पूर्व जब हिन्दी खड़ी बोली के नाम से जानी जाती थी तथा यह साहित्य की भाषा नहीं थी तब उन्होंने 1875 ईस्वीं में अपने प्रमुख ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश की रचना सरल हिन्दी में की थी, वे भविष्य दृष्टा होने के साथ युग दृष्टा भी थे, उन्होंने हिन्दी के उज्ज्वल भविष्य को अपने ज्ञान चक्षुओं से देख लिया था कि यह भाषा आगे चलकर भारत की भाषा बनने वाली है, आने वाला युग हिन्दी भाषा का होगा।
डॉ अलका यादव
प्राचार्य , विष्णु कांति महाविद्यालय जिला – लोरमी
