पीताम्बरा पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. दिनेश जी महाराज ने बताया की सप्तमी वेध अष्टमी का सदैव परित्याग करना चाहिए

सुभाष चौक सरकंडा स्थित श्री पीताम्बरा पीठ त्रिदेव मंदिर के पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. दिनेश जी महाराज ने बताया कि त्रिदेव मंदिर में नवरात्र के सातवें दिन प्रातःकालीन सर्वप्रथम देवाधिदेव महादेव का महारुद्राभिषेक पश्चात श्री ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का विशेष पूजन श्रृंगार कालरात्रि देवी के रूप में किया गया।श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का महारुद्राभिषेक, महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवी का षोडश मंत्र द्वारा दूधधारिया पूर्वक अभिषेक एवं परमब्रह्म मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी का पूजन एवं श्रृंगार किया जा रहा है।

पीतांबरा पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. दिनेश जी महाराज ने बताया कि सप्तमी वेध अष्टमी तिथि का हमेशा परित्याग करना चाहिए। निर्णय सिंधु का मत है कि सप्तमी युक्त अष्टमी नित्य शोक तथा संताप कराने वाली होती है। इसी तिथि में दैत्य श्रेष्ठ जंभ ने पूजा की थी जिसके कारण इंद्र नें उसका वध किया था। सप्तमी युक्त अष्टमी तिथि को व्रत या उपवास करने से मनुष्य घोर नरक में जाता है। साथ ही पुत्र, पशु, धन के साथ-साथ उत्पन्न हुए तथा जो उत्पन्न नहीं हुआ है उसका भी नाश करता है। अत: अगर घटिका मात्र भी अष्टमी तिथि उदया को पड़े तो उसी दिन व्रत एवं उपवास करना चाहिए। सप्तमी वेद अष्टमी के कारण ही इस वर्ष अष्टमी एवं नवमी का पूजन एवं कन्या पूजन एक साथ 11 अक्टूबर को रखा जाएगा।

भगवती मां गौरी की अष्टमी के दिन आराधना सभी मनोवांछित फलों को देने वाली तथा शरीर में उत्पन्न नाना प्रकार के रोग, शोक, व्याधि आदि का अंत कर जीवन को आरोग्यता से पूर्ण करती है।
भगवती महागौरी की अष्टमी के दिन आराधना सभी मनोवांछित फलों को देने वाली तथा शरीर में उत्पन्न नाना प्रकार के रोग, शोक, व्याधि आदि का अंत कर जीवन को आरोग्यता से पूर्ण करती हैं। परमकृपालु मां महागौरी कठिन तपस्या कर गौरवर्ण को प्राप्त कर भगवती महागौरी के नाम से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विख्यात हुईं। महागौरी मां दुर्गा की शक्ति का आठवां विग्रह स्वरूप हैं। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है, ‘अष्टवर्षा भवेद् गौरी।’
इनके समस्त आभूषण और यहां तक कि इनका वाहन भी हिम के समान सफेद या गौर रंग वाला वृषभ अर्थात् बैल माना गया है। इनकी चार भुजाएं हैं। इनमें ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे वाले बाएं हाथ में वर मुद्रा रहती है। माता महागौरी मनुष्य की प्रवृत्ति सत् की ओर प्रेरित करके असत् का विनाश करती हैं। इनका शक्ति विग्रह भक्तों को तुरंत और अमोघ फल देता है। शास्त्रों में वर्णित इनकी उपासना से भक्त के जन्म-जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं और मार्ग से भटका हुआ भी सन्मार्ग पर आ जाता है।

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