यूनुस मेमन
शनिवार को ही बोल बम सेवा समिति की प्रेरणा से करीब 10,000 कांवरिये बेलपान पहुंच चुके थे, जिन्होंने रविवार सुबह पवित्र नर्मदा कुंड से जल लेकर कावड़ यात्रा आरंभ की। कोटा और रतनपुर क्षेत्र में जगह-जगह उनका स्वागत किया गया, साथ ही उनके जलपान और भोजन की व्यवस्था की गई। कांवड़ियों ने रतनपुर महामाया धर्मशाला में रात्रि विश्राम किया। इसके पश्चात सभी कांवरिये सोमवार सुबह ही रतनपुर के प्रसिद्ध शिव मंदिर वृद्धेश्वर महादेव के दर्शन और अभिषेक के लिए पहुंचे। यहां भक्तों की लंबी कतार नजर आई।
शिव अर्चना के लिए यहां स्थानीय विधायक अटल श्रीवास्तव भी पहुंचे। इस अवसर पर मटेरियल सप्लायर ग्रुप द्वारा सुबह से ही रतनपुर के हाई स्कूल चौक में प्रसाद वितरण किया गया।
शिव को प्रिय सावन महीने के सोमवार को शिव भक्तों का जत्था देशभर के शिवालयों में उमड़ पड़ा है। भोलेनाथ को प्रसन्न करने कांवरिये रविवार शाम से ही पवित्र नदियों से जल लेकर शिव मंदिर की ओर बढ़ चले थे। अंचल के सभी शिव मंदिरों में भक्तों का रेला लगा हुआ है, विशेषकर धार्मिक नगरी रतनपुर स्थित बृधेश्वर महादेव के प्राचीन मंदिर में भक्तों की लंबी कतार तड़के से नजर आ रही है। रतनपुर में राम टेकरी की तराई पर स्थित इस प्राचीन मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है जो अपने आप में कई गूढ़ रहस्यों को समेटे हुए हैं
वैसे तो रतनपुर स्थित महामाया मंदिर , पंचमुखी मंदिर, कंठी देवल मंदिर में भी श्रद्धालु सावन के अंतिम सोमवार को पहुंच रहे हैं लेकिन सर्वाधिक भीड़ बृद्धेश्वर महादेव मंदिर में नजर आ रही है। किवदंती है कि इस मंदिर का निर्माण द्वापर युग में राजा वृद्ध सेन ने किया था, बृद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर और फिर धीरे-धीरे जन भाषा में बूढ़ा महादेव कहा जाने लगा। जनश्रुति है कि सन 1050 में राजा रत्न देव ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। यहां जटा रूप में विराजित शिवलिंग में जितना भी जल अभिषेक किया जाता है वह जल कुंड में समाहित हो जाता है। मंदिर परिसर में ही एक जलकुंड भी मौजूद है। माना जाता है कि अभिषेक पश्चात जल सुरंगों से होते हुए उसी कुंड में पहुंच जाता है।
मंदिर प्रवेश द्वार पर एक पाषाण नंदी विराजमान है, जिन का दर्शन और पूजन परम शुभकारी माना है। कहते हैं स्वप्न आदेश पर इस अलौकिक मंदिर का निर्माण कराया गया था। यहां स्वयंभू शिवलिंग तांबे के आवरण के भीतर स्थापित है। भक्त कितना भी जल शिवलिंग पर चढ़ा दे वह जल कभी आवरण से बाहर नहीं आता , क्योंकि शिवलिंग का आंतरिक संपर्क मंदिर के बाहर मौजूद कुंड से है। इस कुंड का दर्शन आचमन भी परम् शुभकारी माना जाता है।