



कहने को तो आंदोलनकारी अपने मृत साथी के परिवार के लिए राहत की मांग कर रहे थे लेकिन उन्हें राहत मिल जाने के बाद भी वे आंदोलन पर अड़े रहे, जिससे यही साबित हुआ कि वे यह लड़ाई अपने स्वार्थ के लिए लड़ रहे थे ।

रेलवे अप्रेंटिस महाराष्ट्र जलगांव भुसावल निवासी 22 वर्षीय प्रसाद गजानन काले की सोमवार रात बीसीएन यार्ड में काम करने के दौरान बिजली का झटका लगने से हुई मौत के बाद दूसरे दिन भी जमकर हंगामा हुआ। कथित तौर पर परिवार को मुआवजा नहीं दिए जाने और उनके परिवार के किसी एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का स्वसन ना मिलने के नाम पर प्रशिक्षुओं ने रेलवे केंद्रीय अस्पताल का घेराव कर दिया।

आंदोलनकारी गेट को घेर कर बैठ गए, तो वहीं रेलवे अस्पताल के सामने की सड़क पर चक्का जाम कर दिया, जिससे दोनों तरफ लोगों को वापस लौटना पड़ा। रेलवे के खिलाफ नारेबाजी करते हुए इन अप्रेंटिस ने कहा कि रेलवे के टेक्नीशियन उनका शोषण कर रहे हैं। उनके साथ दुर्व्यवहार और अपशब्दों का प्रयोग किया जाता है, उनके जान को संकट में डालकर उनसे खतरनाक काम कराए जाते हैं और नहीं करने पर अंक काट लिए जाने की धमकी दी जाती है। यही अंक रेलवे भर्ती में मददगार साबित होते हैं, इस कारण से अप्रेंटिस सब कुछ सहते हैं। प्रसाद गजानन की मौत की जांच, परिवार को राहत और अप्रेंटिस को मेडिकल, बीमा सुविधा दिए जाने की मांग के साथ घंटो आंदोलन किया गया, जिस वजह से रेलवे अस्पताल पहुंचने वाले मरीज और उनके परिजनों को काफी दिक्कतें हुई ।


बहुत देर तक पुलिस ने उन्हें सहन किया, फिर बाद में बल का प्रयोग करते हुए आंदोलनकारी को खदेड़ दिया। भागते आंदोलनकारी ट्रेन रोकने की भी धमकी देते दिखे। इस बीच रेलवे के एडिशनल डीआरएम, सीनियर डीसीएम और अन्य अधिकारी मौके पर पहुंचे और उन्होंने मृतक के परिजनों से बात कर उन्हें उचित मुआवजा और संभव होने पर नौकरी देने की बात कही। जिसके बाद भी आंदोलनकारी हंगामा करते रहे। इस दौरान एक बात निकल कर सामने आई कि अन्य प्रदेशों से बिलासपुर में प्रशिक्षण हासिल करने आए अप्रेंटिस अपने अधिकारों को लेकर कितने सचेत और मुखर हैं, जिन्होंने नियम कायदाओं को ताक पर रखकर अस्पताल का घेराव कर दिया और यहां की रेलवे पुलिस घंटो उन्हें बेबस ताकती रही। इधर अधिकारियों की समझाइश के बाद मृतक के परिजन तो मान गए लेकिन अप्रेंटिस अपनी सुरक्षा और अन्य मांगों को लेकर अड़े रहे, इसके बाद उन पर बल प्रयोग करना पड़ा।

