गुरु को गोविंद से भी ऊंचा रखने की भारतीय परंपरा में सोमवार को मनाया जाएगा गुरु पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा पर डॉ अलका यादव का आलेख


डॉ अलका यादव


गुरु पूर्णिमा उन सभी आध्यात्मिक और अकादमिक गुरुजनों को समर्पित परम्परा है जिन्होंने कर्म योग आधारित व्यक्तित्व विकास और प्रबुद्ध करने, बहुत कम अथवा बिना किसी मौद्रिक खर्चे के अपनी बुद्धिमता को साझा करने के लिए तैयार हों। इसको भारत, नेपाल और भूटान में हिन्दू, जैन और बोद्ध धर्म के अनुयायी उत्सव के रूप में मनाते हैं। यह पर्व हिन्दू, बौद्ध और जैन अपने आध्यात्मिक शिक्षकों/अधिनायकों के सम्मान और उन्हें अपनी कृतज्ञता दिखाने के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व हिन्दू पंचांग के हिन्दू माह आषाढ़ की पूर्णिमा (जून-जुलाई) मनाया जाता है। इस उत्सव को महात्मा गांधी ने अपने आध्यात्मिक गुरु श्रीमद राजचन्द्र सम्मान देने के लिए पुनर्जीवित किया। ऐसा भी माना जाता है कि व्यास पूर्णिमा वेदव्यास के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।


[हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसा, इस दिन, भगवान शिव अपने सात शिष्यों को योग का ज्ञान देकर गुरु बने, जिनमें “सप्तऋषि” कहा जाता है। तब से, हिंदू धर्म के परंपराएं इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। हिंदू धर्म में, गुरु पूर्णिमा के रूप में जाने वाले त्योहार को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इसी दिन महान ऋषि वेद व्यास का जन्म हुआ था। उन्हें हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण गुरुओं में से एक माना जाता है और उन्हें गुरु-शिष्य अनुष्ठान का बहुत ही अवतार माना जाता है।
[“गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परम ब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः” संसार में वैसे तो महत्वपूर्ण दिवसों की कमी नहीं है, लेकिन गुरु पूर्णिमा ( का महत्व उनमें सबसे अलग है। इस दिन हम अपने गुरु का स्मरण करते हैं, उनका सम्मान करते हैं और उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। यह तो हम सब जानते हैं कि गुरु का प्रचलित अर्थ अध्यापक, शिक्षक, टीचर या इसी तरह के दूसरे शब्द हैं। लेकिन गुरु शब्द की व्युत्पत्ति कैसे हुई? गुरु शब्द में दो हिस्से हैं गु और रु। गु का अर्थ है अंधकार और रु का अर्थ है प्रकाश। अर्थात जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए वही गुरु है। इस तरह देखें तो उपनिषद का वाक्य “तमसो मा ज्योतिर्गमय” कहीं ना कहीं गुरु के लिए ही कहा गया है।

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