पांचवीं बार नजरअंदाज किए जाने से खफा कांग्रेसी नेता त्रिलोक श्रीवास ने दिखाएं बगावती तेवर , बेलतरा में बाहरी प्रत्याशी को टिकट दिए जाने का विरोध करते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ने के दिए संकेत

कैलाश यादव

एक तरफ नामांकन की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है और दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी अब तक बेलतरा में प्रत्याशी तक घोषित नहीं कर पाई है। दूसरी ओर कांग्रेस ने बड़ी मुश्किलों से प्रत्याशी का नाम तो स्पष्ट किया लेकिन इसी के साथ यहां विरोध की चिंगारी भी फूटने लगी है। लगातार पांच विधानसभा चुनाव में उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कांग्रेस नेता त्रिलोक श्रीवास ने मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने 3000 से अधिक कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर पार्टी द्वारा स्थानीय उम्मीदवार को नजरअंदाज कर बाहरी प्रत्याशी को मैदान में उतारे जाने का विरोध किया है। त्रिलोक श्रीवास का कहना है कि बेलतरा विधानसभा सीट से लगातार हो रहे सर्वे के बाद उनको या उनकी पत्नी को अवसर दिया जाना था, लेकिन बजाय इसके हजारों कार्यकर्ताओं की भावनाओं के विरुद्ध बाहरी व्यक्ति को टिकट दिया गया है। ऐसा कांग्रेस ने पांचवीं बार किया है, जब त्रिलोक श्रीवास की दावेदारी को ठुकराया गया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने तय किया था कि जीतने वाले स्थानीय उम्मीदवार और सर्वे के आधार पर टिकट दिया जाएगा, लेकिन इसके उलट जो क्षेत्र का है ही नहीं और जिसका सर्वे में कहीं दूर दूर तक नाम नहीं था, उसे टिकट दे दिया गया है। उनका कहना है कि अगर किसी भी क्षेत्रीय व्यक्ति को टिकट दिया जाता तो वे उसका पूरा समर्थन करते लेकिन बेलतरा विधानसभा में बाहरी व्यक्ति को थोप दिया गया है, जिससे पूरे क्षेत्र और कार्यकर्ताओं में नाराजगी एवं असंतोष है। जन भावनाओं के अनुरूप निर्णय न लेने के आरोप के साथ त्रिलोक श्रीवास ने एक बार फिर फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए कहा है । साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अगले दो-चार दिनों में वे निर्दलीय या फिर किसी और पार्टी से चुनाव लड़ने पर भी फैसला कर सकते हैं।

त्रिलोक श्रीवास का दावा है कि अगर कांग्रेस उन्हें या उनकी पत्नी को टिकट देती तो फिर बेलतरा विधानसभा से कांग्रेस की जीत निश्चित थी, लेकिन पार्टी ने बाहरी प्रत्याशी को मौका देकर स्थानीय लोगों को नाराज कर दिया है, जिसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा। ऐसा ही कुछ विरोध बिल्हा विधानसभा में भी राजेन्द्र शुक्ला ने दिखाया था।

कांग्रेस के समक्ष बीजेपी से मुकाबला करने से पहले अपने ही लोगों से निपटने की चुनौती है। देखना होगा कि कांग्रेस इससे किस तरह से निपटती है।

बदली हुई परिस्थितियों में यह भी संभव है कि आगामी दिनों में त्रिलोक श्रीवास स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर बेलतरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़े। त्रिलोक श्रीवास का अपना जन आधार है। अगर वे बेलतरा सीट से चुनावी मैदान में उतर पड़े तो स्पष्ट तौर पर इसका नुकसान कांग्रेस को ही उठाना पड़ेगा ।
पिछले विधानसभा चुनाव में भी अनिल टाह छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस को इसी तरह से नुकसान पहुंचा चुके हैं, जिसका लाभ भाजपा प्रत्याशी रजनीश सिंह को मिला था। हालांकि फिलहाल यह भी स्पष्ट नहीं है कि इस बार भाजपा प्रत्याशी कौन होगा, मगर राजनीतिक हलको में यह खबर है कि बेलतरा सीट का सौदा हो चुका है और शायद भाजपा बेलतरा सीट पर कांग्रेस को अभयदान देने के मूड में है, तभी तो प्रदेश के तीन अन्य और सीटों के साथ बेलतरा में भी प्रत्याशी के नाम की घोषणा करने में इतनी देरी की जा रही है।
चिंतन का विषय यह है कि अगर अंतिम दिनों में प्रत्याशी के नाम स्पष्ट होंगे तो उसे प्रचार के लिए कितना समय मिलेगा ? और वह किस तरह से जीतेगा ? इसे भारतीय जनता पार्टी की सोची समझी रणनीति मानी जा रही है ? साथ ही इसे राजनीतिक खुदकुशी भी कहा जा रहा है। जाहिर है ऐसी नीतियों के साथ भारतीय जनता पार्टी शायद ही प्रदेश में सरकार बना सके।

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