पीताम्बरा पीठ त्रिदेव मंदिर में शारदीय नवरात्र के नवे दिन ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का सिद्धिदात्री देवी के रूप में पूजन, कन्यापूजन एवं भण्डारा

छत्तीसगढ़ बिलासपुर सरकण्डा स्थित श्री पीताम्बरा पीठ त्रिदेव मंदिर में शारदीय नवरात्र उत्सव हर्षोल्लास के साथ धूमधाम से मनाया जा रहा है। पीताम्बरा पीठ के पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. दिनेश जी महाराज ने बताया कि त्रिदेव मंदिर में नवरात्र के आठवे दिन प्रातःकालीन श्री ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का विशेष पूजन श्रृंगार महागौरी देवी के रूप में किया गया।श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का महारुद्राभिषेक, महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती देवी का षोडश मंत्र द्वारा दूधधारिया पूर्वक अभिषेक किया गया।परमब्रह्म मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी का पूजन एवं श्रृंगार किया जा रहा है।श्री दुर्गा सप्तशती पाठ एवं श्री पीताम्बरा हवनात्मक यज्ञ रात्रिकालीन प्रतिदिन रात्रि 8:30 बजे से रात्रि 1:30 बजे तक निरंतर चलता रहेगा तत्पश्चात महाआरती रात्रि 1:30 बजे किया जा रहा है।अष्टमी के पावन पर्व पर पीताम्बरा माँ बगलामुखी देवी का विशेष पूजन श्रृंगार महागौरी देवी के रूप में किया गया तत्पश्चात कन्या पूजन भोजन एवं मध्यान्ह अष्टमी हवन हुआ।तत्पश्चात नवमी को कन्या पूजन एवं भंडारा का आयोजन किया जाएगा।

दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्रि-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है।

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धियां होती हैं। ब्रह्मवैवर्तपुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है।इनके नाम इस प्रकार हैं –

  1. अणिमा 2. लघिमा 3. प्राप्ति 4. प्राकाम्य 5. महिमा 6. ईशित्व,वाशित्व 7. सर्वकामावसायिता 8. सर्वज्ञत्व 9. दूरश्रवण 10. परकायप्रवेशन 11. वाक्‌सिद्धि 12. कल्पवृक्षत्व 13. सृष्टि 14. संहारकरणसामर्थ्य 15. अमरत्व 16. सर्वन्यायकत्व 17. भावना 18. सिद्धि।
    मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में ‘अर्द्धनारीश्वर’ नाम से प्रसिद्ध हुए। सिद्धिदात्री मां के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से मां भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है। मां भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती। ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी के उपासना विशेष रूप से वाद विवाद, शास्त्रार्थ,मुकदमे में विजय प्राप्त करने के लिए, कोई आकारण आप पर अत्याचार कर रहा तो उसे रोकने, सबक सिखाने,संकट से उद्धार,उपद्रवो की शांति, ग्रह शांति, संतान प्राप्ति के लिए विशेष फलदाई है।

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