मुंगेली/ श्रीमद् भागवत कथा का कलश यात्रा के साथ शुभारंभ हुआ। राजेंद्र वार्ड शंकर मंदिर से बैंडबाजों के साथ कलश यात्रा निकाली गई। कलश यात्रा शहर के मुख्य मार्गों से गुजरती हुई ठाकुर देव, महामाया, श्रीराम, शारदा मंदिर होते हुए गायत्री मंदिर, शंकर मंदिर, मल्हापारा स्थित महामाया मंदिर और सत्यनारायण मंदिर होते हुए कथा स्थल भट्ट बाड़ा पहुँची। कथा स्थल में भागवत की पूजा अर्चना की गई और पूजन के बाद निवास स्थान में कलश, वेदी की स्थापना की गई। इस श्रीमद्भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ सप्ताह का आयोजन दिनांक 18/08/23 से 26/08/23 तक बालानी चौक व शंकर मंदिर के मध्य स्थित भट्ट बाड़ा में आयोजित किया गया था।
कथावाचक आचार्य पंडित श्री रामानुज युवराज पांडेय (श्री जगन्नाथ मंदिर, अमलीपदर, गरियाबंद) द्वारा कथा के प्रथम दिन श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना, माहात्म्य का विस्तार से वर्णन करते हुए बताया कि महादेव की कृपा से वेद व्यास ने श्रीमद्भागवत की रचना की, उन्होंने बताया कि कोई भी व्रत, यज्ञ शिव की उपासना, सेवा के बिना फलीभूत नहीं होता, उन्होंने परीक्षित जन्म व कलयुग के आगमन की कथा बताई। प्रवचन में उपस्थित श्रद्धालुओं को श्रीमद्भागवत पुराण की जानकारी देते हुए कहा कि श्रीमद्भगवत कथा के श्रवण करने से मानव जीवन में एक जन्म नहीं अपितु हमारे कई जन्मों के पापों का नाश होने के साथ ही हमारे शुभ कर्मों का उदय होता है। श्रीमद्भागवत को सुनने मात्र से जीव जन्म और मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। इसी कथा को धुंधकारी प्रेत ने श्रवण किया और प्रेत योनि से मुक्ति पाकर विष्णु लोक को प्राप्त हुए। कथा व्यास पंडित युवराज पांडेय ने कहा कि भागवत श्रवण से जीव के सभी पाप मिट जाते हैं।
कथा के दूसरे दिन आचार्य युवराज पांडेय ने महाभारत, दुर्योधन-अश्वस्थामा प्रसंग की व्याख्या करते हुए बताया कि ब्राम्हण और राजनीति को परिभाषित करते हुए बताया कि ब्राम्हण को राज्य का लोभ नहीं होना चाहिए, ब्राम्हण राजनीति का दास नहीं जनक होता हैं। उन्होंने बताया कि सुख और संपत्ति मिलने के बाद लोग भगवान को भूल जाते है, भगवान को लोग केवल विपत्ति पर याद करते हैं। परीक्षित जन्म पर उन्होंने बताया कि परीक्षा से जीवित हुए तो उनका नाम परीक्षित पड़ा।
कथा के तीसरे दिन आचार्य ने गुरु-शिष्य परंपरा की व्याख्या करते हुए गुरु-शिष्य के कर्तव्यों, नियमों और धर्म को बताया, उद्धार के लिए गुरु के द्वारा दिये मंत्र का हर समय जाप करते रहना चाहिए, गुरुमंत्र के जाप से ही संसार रूपी सागर से पार लगाया जा सकता हैं। ततपश्चात सृष्टि के निर्माण, सृष्टि के आरंभ, ध्रुव, प्रहलाद के चरित्र के साथ, हिरण्यकश्यप वध, अजामिल एवं पृथ्वी की कथा का सुंदर वर्णन किया गया। व्यासपीठ आचार्य ने कहा कि शास्त्र कहता हैं कि पहली पुत्री होने वाला पिता कभी दरिद्र नहीं हो सकता। आचार्य ने वराह अवतार, हिरण्याक्ष नाश के प्रसंग की कथा सुनाई।
कथा के चौथे दिन व्यासपीठ आचार्य युवराज पांडेय ने माता सती की कथा, शिव विवाह, माँ पार्वती के श्रृंगार का संगीतमय जस गाकर सुंदर व्याख्या की। आचार्य ने कहा कि भगवान की भक्ति के साथ-साथ देशभक्ति के गुण भी होना चाहिए, अगर मन में देशभक्ति की भावना नहीं तो पूजा-पाठ सब व्यर्थ हैं। पत्नी के विषय में उन्होंने बताया कि पत्नी को अर्धांगिनी, शक्ति कहा जाता हैं, पति यदि विचलित हो जाये तो उसे धैर्य प्रदान करें। व्यासपीठ आचार्य ने भक्त ध्रुव और उनके गुरु नारद द्वारा दी गई द्वादश मंत्र की दीक्षा के प्रसंग की व्याख्या की, उन्होंने बताया कि ध्रुव के चरित्र को भागवत रत्न माना गया हैं, भगवान का साक्षात्कार करने वाले घ्रुव सबसे छोटे बालक थे, जिनकी उम्र केवल 5 वर्ष थी, नारायण नाम से ही संसार रूपी सागर से पार लगाया जा सकता हैं। इस दिन नागपंचमी भी था, तो नागदेवता की वंदना करते हुए भजन की प्रस्तुति दी। कथा के पांचवें दिन आचार्य युवराज समुद्रमंथन, देवासुर संग्राम, वामन अवतार, माता लक्ष्मी और राजा बली के संदर्भ की व्याख्या करते हुए रक्षाबंधन पर्व की शुरुआत की कथा सहित राजा बली के चरित्र का सुंदर वर्णन किया। कथावाचक आचार्य ने एकादशी व्रत के संबंध में बताया कि संसार में एकादशी व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया हैं, एकादशी व्रत व्रतराज हैं, एकादशी व्रत के नियम व महात्म्य का सुंदर वर्णन किया गया। गंगा व नर्मदा नदी की महिमा व्याख्या की गई, उन्होंने बताया कि नर्मदा नदी में पाए जाने वाला प्रत्येक पत्थर शिवलिंग होता हैं, जो साक्षात महादेव हैं, जिसे स्थापित करने की आवश्यकता नहीं होती, उसी प्रकार गंडकी नदी का हर पत्थर शालिग्राम हैं। आचार्य ने जगन्नाथ भगवान की महिमा, उनके महाप्रसाद की महिमा, श्रीराम कथा, सीता स्वयंवर, सीताराम विवाह, वनवास, सहित रावण वध की कथा का वर्णन किया।
कथा के छंटवे दिन कृष्ण जन्म, नामकरण, बाललीला, कृष्ण-गोपी प्रसंग, रासलीला, पूतना वध, कंस वध सहित कृष्णलीला की कथा सुनाई गई, कथा स्थल में श्रोताओं, भक्तों ने संगीतमय फाग गीत के साथ फूल व गुलाल से जमकर होली खेलते हुए नृत्य किया। आचार्य ने बताया कि भागवत में 4 गीतों का वर्णन है गोपी गीत, भ्रमर गीत, युगल गीत और वेणुगीत, इनमें गोपी गीत को भागवत का प्राण माना गया हैं। आचार्य ने हनुमान, गरुण, काकभुशुण्डि, माता तुलसी की महिमा की सुंदर व्याख्या की। कृष्ण-रूखमणी के विवाह की कथा सुनाई गई, साथ ही कृष्ण-रूखमणी के विवाह का सुंदर झांकी चित्रण देखने को मिला। कृष्ण-रूखमणी के विवाह के शुभ अवसर पर भक्तों एवं श्रोताओं ने संगीत के साथ नृत्य किया। सातवें दिन सुदामा चरित्र, भागवत दर्शन और परीक्षित मोक्ष की कथा का सुंदर वर्णन किया गया। इसी दिन गीता पाठ, तुलसी-वर्षा, हवन, कपिलातर्पण, पूर्णाहुति संपन्न हुआ। कथा के अंतिम दिन महिला मंडली द्वारा संगीतमय रामायण पाठ व भजन की प्रस्तुति दी गई। इस श्रीमद्भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ सप्ताह का आयोजन मुंगेली निवासी संदीप तिवारी, स्वतंत्र तिवारी, नैनी तिवारी सहित तिवारी परिवार ने किया था।