श्रावण मास में श्री पीताम्बरा पीठ सुभाष चौक सरकंडा स्थित त्रिदेव मंदिर में सावन महोत्सव एवं परम पावन पुरुषोत्तम मास पर श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का महारूद्राभिषेकात्मक महायज्ञ 4 जुलाई से लेकर 31अगस्त तक प्रातः8:30 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक किया जा रहा है,तत्पश्चात श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का महाआरती दोपहर 1:00 बजे किया जाता है।31दिनो मे प्रथम महारूद्र पाठ (121पाठ)पूर्ण एवं द्वितीय महारूद्र पाठ प्रारंभ हुआ।अभिषेक पूजन मे श्री विकास मिश्रा प्रॉपर्टी डीलर कुदुदण्ड बिलासपुर सम्मिलित हुए।एवं श्री पीताम्बरा हवनात्मक महायज्ञ निरंतर चल रहा है।
पीताम्बरा पीठाधीश्वर आचार्य दिनेश जी महाराज ने बताया कि शिव पुराण के सुनने मात्र से देवराज को शिवलोक की प्राप्ति हुई थी। शिवपुराण के पठन अथवा ज्ञान से अवश्य ही पापी, दुराचारी, और काम, क्रोध में डूबे रहने वाले लोग शुद्ध हो सकते है।प्राचीन काल की बात है,एक नगर में एक ब्राह्मण रहता था। जिसका नाम देवराज था। वह ज्ञान के विषय में बहुत ही दुर्बल, दरिद्र, और वैदिक धर्म से विमुख था।वह अपनी दिशा से भ्रष्ट हो गया था और वैश्या वृति के कामों में लगा रहता था। उसे स्नान,संध्या आदि कामों का ज्ञान नहीं था। वो हमेशा लोगो को ठगता था। उसने सभी लोगो के धन को हड़प लिया था और वह एक भी धन धर्म के काम में नही लगाया था।एक समय पर वह घूमता हुआ एक प्रतिष्ठान पर पहुंच गया था। वहाँ बहुत सारे साधु महात्मा इक्कठे हुए थे। वहा पर एक शिवालय था। उसकी नजर उस शिवालय पर पड़ी। उसको यह सब देख ज्वर आ गया, जिसे उसे पीड़ा होने लगी।इस शिवालय पे एक ब्राह्मण शिव पुराण कथा कह रहा था। तब वो ज्वर में पड़ा हुआ ब्राह्मण भी उसे निरंतर सुन रहा था। एक महीने के बाद वह ज्वर से अत्यंत पीड़ित होने लगा और फिर चल बसा।यमराज के दूत आकर उसे बलपूर्वक पाशो से बांध कर ले गए। तभी वहा पर भगवान शिव के पार्षद गण शिवलोक से आ पहुंचे।वे उज्जवल दिख रहे थे। उनके हाथो में त्रिशूल थे। उनके अंग भस्म से उद्धसित थे। उनके गले में रुद्राक्ष की मालाएं थी। वो लोग अत्यंत क्रोध के साथ यमपुरी में गए और यमराज के दूतो को खूब मारा और धमकाया और उस देवराज को उनके चंगुल से छुड़वाकर अपने अदभुत विमान में बिठाकर कैलाश पर जाने लगे।यमपुरी में तब बहुत कोलाहल मच गया था। जिसे सुनकर धर्मराज अपने भवन से बाहर निकले। तब भगवान शिव के उन दूत को देखकर धर्मराज ने अपने ज्ञान दृष्टि से सब कुछ जान लिया और उनकी पूजा की।उन्होंने भय के कारण उन दूत को कोई भी प्रश्न नहीं किया। और फिर वह दूत कैलाश को निकल गए और वहा पहुंचकर उन्होंने देवराज को भगवान शिव के हाथो में सौंपा।इस प्रकार शिव पुराण केवल श्रवण मात्र से देवराज को शिवलोक प्राप्त हुआ।