परम पावन श्रावण एवं पुरुषोत्तम मास श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का श्री महारूद्राभिषेकात्मक महायज्ञ,पीताम्बरा हवनात्मकमहायज्ञ मे हुए 10लाख 37 हजार आहुतियाँ

श्रावण मास में श्री पीताम्बरा पीठ सुभाष चौक सरकंडा स्थित त्रिदेव मंदिर में सावन महोत्सव एवं परम पावन पुरुषोत्तम मास पर श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव के महारूद्राभिषेकात्मक महायज्ञ मे श्री परिवेश तिवारी टीआई सिविल लाइन थाना,एवं श्रीमती निहारिका-हरीश शाह अभिषेक-पूजन मे सम्मिलित हुए।

पीताम्बरा पीठ में 18 जून से प्रारंभ हुए पीताम्बरा हवनात्मक महायज्ञ मे 36 लाख आहुतियाँ दी जाएगी जिसमे अभी तक 10,37,000 (10लाख,37हजार)आहुतियाँ दी जा चुकी है।प्रतिदिन रात्रि 8:30 से रात्रि 1:30बजे तक हवनात्मक महायज्ञ तत्पश्चात रात्रि1:30बजे ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का महाआरती किया जा रहा है।

पीताम्बरा पीठाधीश्वर आचार्य दिनेश जी महाराज ने बताया कि श्रावण भगवान शिव एवं माँ पार्वती का अति प्रिय महीना होता हैं।सावन माह के सभी मंगलवार माँ पार्वती की पूजा के लिए समर्पित हैं। इस दिन मंगला गौरी व्रत रखा जाता है और माँ पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। माँ मंगला गौरी आदिशक्ति माता पार्वती का ही मंगल रूप हैं। इन्हें माँ दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी के नाम से भी जाना जाता है। मंगला गौरी व्रत अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखा जाता है। माता पार्वती ने शिव को पाने के लिए असंख्य व्रत रखे थे और उनमें से एक है मंगला गौरी व्रत. इस व्रत को अगर पति-पत्नी एक साथ करते हैं तो मां गौरी का विशेष आशीर्वाद मिलता है साथ ही दोनों का रिश्ता भगवान शंकर व माता पार्वती की तरह अटूट हो जाता है।यह व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र का आशीर्वाद लेने के लिए रखती हैं वहीं अविवाहित लड़कियां अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत रखती हैं।
प्राचीन काल में एक नगर में धर्मपाल नामक का एक सेठ अपनी पत्नी के साथ सुखपूर्वक जीवन यापन कर रहा होता है। उसके जीवन में उसे धन वैभव की कोई कमी न थी,किंतु उसे केवल एक ही बात सताती थी जो उसके दुख का कारण बनती थी कि उसके कोई संतान नहीं थी,जिसके लिए वह खूब पूजा पाठ ओर दान पुण्य भी किया करता था।उसके इस अच्छे कार्यों से प्रसन्न हो भगवान की कृपा से उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ, लेकिन पुत्र की आयु अधिक नहीं थी ज्योतिषियों के अनुसार उसका पुत्र 16 वर्ष में सांप के डसने से मृत्यु का ग्रास बन जाएगा।अपने पुत्र की कम आयु जानकर उसके पिता को बहुत ठेस पहुंची लेकिन भाग्य को कौन बदल सकता है,उस सेठ ने सब कुछ भगवान के भरोसे छोड़ दिया और कुछ समय पश्चात अपने पुत्र का विवाह एक योग्य संस्कारी कन्या से कर दिया सौभाग्य से उस कन्या की माता सदैव मंगला गौरी के व्रत का पूजन किया करती थी,इस व्रत के प्रभाव से उत्पन्न कन्या को अखंड सौभाग्यवती होने का आशिर्वाद प्राप्त था जिसके परिणाम स्वरुप सेठ के पुत्र की दीर्घायु प्राप्त हुई।

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