श्री पीताम्बरा पीठ स्थित त्रिदेव मन्दिर मे गुप्त नवरात्र के पावन पर्व पर निरंतर हो रही शक्ति की आराधना

श्री पीताम्बरा पीठ सुभाष चौक सरकंडा बिलासपुर छत्तीसगढ़ स्थित त्रिदेव मंदिर में गुप्त नवरात्र के छठवे दिन एवं पीताम्बरा यज्ञ के सातवे दिन माँ श्री ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी की उपासना छिन्नमस्ता देवी के रूप में की जाएगी।पीठाधीश्वर आचार्य दिनेश जी महाराज ने बताया कि दस महाविद्या-काली,तारा,षोडशी,
त्रिपुरभैरवी,भुवनेश्वरी,छिन्नमस्ता,
धूमावती,बगलामुखी,मातंगी,कमला। प्रवृति के अनुसार दस महाविद्या के तीन समूह हैं। पहला:- सौम्य कोटि (षोडशी,भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला), दूसरा:- उग्र कोटि (काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी), तीसरा:- सौम्य-उग्र कोटि (तारा और त्रिपुरभैरवी)।दस आदिशक्तियों में छठवां अवतार छिन्नमस्ता माता का है।छिन्नमस्ता माता को माँ पार्वती का स्वरूप माना जाता है जो कि काफी उग्र रूप में रहती हैं।छिन्नमस्ता का अर्थ है छिन्न मस्तक वाली देवी। छिन्नमस्ता की गणना काली कुल में की जाती है।

छिन्नमस्ता महाविद्या का संबंध महाप्रलय से है। महाप्रलय का ज्ञान कराने वाली यह महाविद्या भगवती का ही रौद्र रूप हैं।कालितंत्रम् के अनुसार एक समय में देवी पार्वती अपनी सहचरी जया व विजया के साथ श्री मन्दाकिनी नदी में स्नान करने गई वहां कामाग्नि से पीड़ित वह कृष्णवर्ण की हो गई तदुपरांत जया व विजया ने उनसे भोजन मांगा क्योंकि वे बहुत भूखी थी, देवी ने उन्हें प्रतीक्षा करने को कहा परंतु सहचरियों ने बार-बार देवी से भोजन की याचना की।फिर देवी ने अपनी कटार से अपना सिर छेदन कर दिया, छिन्न सिर देवी के बाएं हाथ पर आ गिरा, उनके कबन्ध से रक्त की तीन धाराएं निकली। दो धाराएं उनकी सहचरी के मुख में गई तथा तीसरी धारा का छिन्न शिर से स्वयं पान करने लगी।महर्षि याज्ञवल्क्य और परशुराम इस विद्या के उपासक थे। श्री मत्स्येन्द्र नाथ व गोरखनाथ भी इसी के उपासक रहे हैं। दैत्य हिरण्यकश्यप व वैरोचन भी इस शक्ति के एक निष्ठ साधक थे। अत: इन शक्ति को ‘वज्रवैरोचनीय भी कहते हैं। “वैरोचनीया कर्मफलेषु जुष्टाम्” तथागत बुद्ध भी इसी शक्ति के उपासक थे।मार्केंड्य पुराण में बताई गई एक कथा के अनुसार, जब मां चंडी ने राक्षसों को घोर संग्राम में पराजित कर दिया तब उनकी दो योगिनियां जया और विजया युद्ध समाप्त होने के बाद भी रक्त की प्यासी थी।उन्होंने माँ से अग्रह किया की वो दोनों अभी भी बहुत भूखी हैं।

मां ने उनकी भूख को शांत करने के लिए अपना सिर काट लिया और अपने खून से उन दोनों की प्यास बुझाई। तभी तो मां अपने काटे हुए सिर को अपने हाथो में पकड़े दिखाई देती हैं।उनकी गर्दन की धमनियों से निकल रही रक्त की धाराएं उनके दोनों तरफ खड़ी दो योगिनियां पी रही होती हैं।छिन्नमस्ता माता के एक हाथ में स्वयं का ही कटा हुआ सिर रखा होता है।इससे सभी देवताओं के बीच कोहराम मच जाता है. जिसके बाद भगवान शिव कबंध का रूप धारण कर देवी के प्रचंड रूप को शांत करते हैं. तब से मां पार्वती के इस रूप को छिन्नमस्ता माता कहा जाने लगा।माँ के इस रूप की सच्ची श्रद्धा से उपासना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।जीवन के सभी कष्टों का निवारण होता है।

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