डॉ अलका यादव
हम आज जितने भी आसन,प्राणायाम, षट्कर्म, मुद्राएं, ध्यान की विधियां, नादानुसंधान, सोऽहं का अजपाजाप, कुण्डलिनी शक्ति की साधना, चक्र साधना, नाड़ी विज्ञान, शिव साधना, शक्ति साधना, गुरु के प्रति भक्ति, पिंड ब्रह्माण्ड विवेचन आदि साधनाएं करते हैं, ये सब नाथयोग की देन हैं। योग द्वारा चिकित्सा और मन की शांति के लिए ध्यान भी नाथयोग से आया है। आज जितना भी योग का फैलाव है उसका आधार नाथयोग ही है
नाथ में ‘ना’ का अर्थ होता है शिव और ‘थ’ का अर्थ है शक्ति। नाथयोग शक्ति को शिव से मिलाने की प्रक्रिया है। इसमें साधक विभिन्न योगाभ्यासों से शरीर को हल्का, मजबूत व निरोगी बनाकर मन को एकाग्र व शांत करते हैं, चक्र साधना से कुण्डलिनी शक्ति को जगाते हैं, जिससे वह शक्ति सहस्रार चक्र अर्थात शिव के साथ ‘एक’ हो जाती है और साधक मुक्ति को प्राप्त होता है। इन क्रियाओं के जरिये मुक्ति मरने के बाद नहीं, बल्कि जीते जी होती है
गोरखनाथ भारतीय परंपरा में सबसे सुंदर योगी थे, लेकिन उनकी अपने शरीर के प्रति बिलकुल भी आसक्ति नहीं थी। वे अपना रूप बदलने में भी अत्यंत कुशल थे। गोरक्षनाथ तेजस्वी, ओजस्वी, उदारवादी, कवि, लोकनायक, चतुर व दार्शनिक योगी थे। नाथ संप्रदाय में उनको आदि पुरुष, ब्रह्म तुल्य, अमर, एवं शिवावतार माना जाता है, उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की, जिनमें अमनस्कयोग, गोरक्ष पद्धति, गोरक्ष चिकित्सा, महार्थ मंजरी, योग बीज, हठयोग, सबदी, पद आदि
गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणीधान को अधिक महत्व दिया है। इनके माध्यम से ही उन्होंने हठयोग का उपदेश दिया। गोरखनाथ शरीर और मन के साथ नए-नए प्रयोग करत है
“जनश्रुति के अनुसार उन्होंने कई कठिन आड़े तिरछे आसनों का आविष्कार भी किया उनके अजूबे आसनों को देख लोग अचंभित हो जाते थे आगे चलकर कई कहावतें प्रचलन में आए जब भी कोई उल्टे सीधे कार्यकर्ता तो कहा जाता है कि यह क्या गोरखधंधा लगा रखा है”
गोरखनाथ आदि ने जिन प्रतीकों को पारिभाषिक शब्दों को, खंडन-मंडनात्मक शैली में अपनाया, उसका विकास संत साहित्य में मिलता है। ‘हठयोग’ पर आधारित है नाथ संप्रदाय। ‘ह’ का अर्थ सूर्य और ‘ठ’ का अर्थ चंद्र बतलाया गया है। सूर्य और चंद्र के योगों को हठयोग कहते हैं। यहां सूर्य इड़ा नाड़ी का और चंद्र पिंगला नाड़ी का प्रतीक है। इस साधना पद्धति के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति कुंडलिनी और प्राणशक्ति लेकर पैदा होता है। सामान्यतया कुंडलिनी शक्ति सुषुप्त रहती है। साधक प्राणायाम के द्वारा कुंडलिनी को जागृत कर ऊर्ध्वमुख करता है। शरीर में छह चक्रों और तीन नाड़ियों की बात कही गई है। जब योगी प्राणायाम के द्वारा इड़ा पिंगला नामक श्वास मार्गों को रोक लेता है, तब इनके मध्य में स्थित सुषुम्ना नाड़ी का द्वार खुलता है। कुंडलिनी शक्ति इसी नाड़ी के मार्ग से आगे बढ़ती है और छह चक्रों को पार कर मतिष्क के निकट स्थित शून्यचक्र में पहुंचती है। यहीं पर जीवात्मा को पहुंचा देना योगी का चरम लक्ष्य होता है। यही परमानंद तथा ब्रह्मानुभूति की अवस्था है। यही हठयोग साधना है।
जीवन को अधिक-से-अधिक संयम और सदाचार के अनुशासन में रखकर आत्मिक अनुभूतियों के लिए सहज मार्ग की व्यवस्था करने का शक्तिशाली प्रयोग गोरखनाथ ने किया।’
पतंजलि योग मानसिक साधना धारणा, ध्यान, समाधि के ऊपर जोर देता है जबकि गोरक्षनाथ शरीर की साधना पर ज्यादा जोर देते हैं क्योंकि उनका मानना है कि किसी भी साधना के लिए पहले शरीर का स्वस्थ होना जरूरी है।
शरीर, मन और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित करने में योग की बड़ी भूमिका है। महर्षि पतंजलि ने योग को एक व्यवस्थित रूप दिया। वहीं नाथ पंथ और गुरु गोरखनाथ ने योग को विस्तृत रूप देकर उसे जन-जन तक पहुंचाने का काम किया। गुरु गोरखनाथ ने ही हठयोग का सिद्धांत बनाया। इसके माध्यम से उन्होंने शरीर शुद्धि, आचरण शुद्धि, व्यवहार शुद्धि और जीवन शुद्धि का मार्ग प्रशस्त किया।
बाबा गोरखनाथ
योग नाथ संप्रदाय की मुख्य देन है। आज जितने भी आसन, प्राणायाम, ध्यान प्रचलित हैं, इन सभी पर आदि गुरु मत्स्येंद्रनाथ, गुरु गोरखनाथ सहित 84 सिद्धों के आसनों की छाप और प्रेरणा दिखाई देती है।
हिंदू परंपरा में गुरु गोरखनाथ को महायोगी या महान योगी माना जाता है। किसी विशिष्ट सिद्धांत या किसी विशेष सत्य पर जोर देने के बजाय, उन्होंने सत्य की खोज और आध्यात्मिक मार्ग का परिवर्तन करने के लिए एक अनमोल लक्ष्य के रूप में देखा। वे समाधि तक पहुंचने के मार्ग के रूप में योग, अनुशासन और आत्मनिर्णय की दावों की
आज विश्व योग दिवस पर हम महर्षि पतंजलि व गुरु गोरखनाथ को सादर नमन करते हैं