उम्मीदों पर पूरी तरह खरी नहीं उतर पा रही जलकुंभी की सफाई करने वाली एक्वा बीड हार्वेस्टर मशीन , नियमित रूप से उठाव ना होने से घाट पर जलकुंभियो का बन गया पहाड़, तेज दुर्गंध ने लोगों का जीना किया दूभर

काम कम आराम ज्यादा करती है मशीन

बिलासपुर नगर निगम द्वारा अरपा नदी में जलकुंभी की सफाई नौ दिन चले ढाई कोस साबित हुई है। पुणे से मंगाई गई मशीन से बिलासपुर में जलकुंभी की सफाई की जा रही है, मगर यह काम कछुए की गति से चल रही है। अगर हालात ऐसे ही रहे तो बरसात तक भी आधी सफाई भी नहीं होगी और बरसात में वैसे भी इसकी सफाई की आवश्यकता नहीं पड़ती। दिलचस्प बात यह है कि इस नाम पर हर साल 2 करोड रुपए फूंकने की तैयारी है।

जलकुंभी का बना दिया पहाड़

बिलासपुर के अरपा नदी में जलकुंभी एक बड़ी समस्या है, जिससे निपटने के लिए एक्वा बीड हार्वेस्टर मशीन मंगाई गई है ।दावा किया जा रहा है कि हर दिन 8 घंटे यह मशीन अरपा नदी से जलकुंभी की सफाई करेगी। दावा यह भी किया गया था कि अरपा नदी से निकले जलकुंभी को कछार के सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट सेंटर ले जाकर इसे कंपोस्ट खाद में बदला जाएगा, लेकिन धरातल पर सच्चाई कुछ और ही नजर आ रही है।
वर्तमान में यह मशीन बिलासपुर के छठ घाट में काम कर रही है, जहां केवल नदी के बीच के हिस्से से ही वर्तमान में जलकुंभी हटाई गई है। हटाए गए जलकुंभी का घाट पर ढेर लगाया गया है। अगर यहां नियमित रूप से जलकुंभियों को कछार ले जाया गया होता तो फिर यहां घाट पर जलकुंभी का पहाड़ न बना होता। छठ घाट पर जलकुंभी की ढेर की वजह से घाट उपयोग योग्य नहीं रह गया है। वही सड़ते जलकुंभी से उठती सड़ांध से लोगों के नाक के बाल जल रहे है।

सुबह शाम लोग यहां सैर सपाटे, नदी किनारे आमोद प्रमोद और खेलकूद के लिए पहुंचते हैं, जिनके लिए छठ घाट पर जलकुंभी की दुर्गंध असहनीय है। सनातन परंपराओं में सभी संस्कार नदी घाट पर पूरे किए जाते हैं । शादी ब्याह के इस मौसम में लोग इस घाट पर धार्मिक रीति रिवाज पूरा करने पहुंच रहे हैं लेकिन इस ओर से उस छोर तक पूरे घाट में जलकुंभी ही जलकुंभी है, जिसके चलते लोगों को पानी तक नसीब नहीं है और वे केवल औपचारिकता निभा कर लौट रहे हैं। इससे भी लोगों की शिकायतें सामने आ रही है।
घाट पर लोग पूजा अर्चना कर सकें इसके लिए पाटलिपुत्र संस्कृति विकास मंच द्वारा एक हिस्से की घेराबंदी की गई थी। आशा व्यक्त की गई थी कि उस क्षेत्र में जलकुंभी का प्रकोप नहीं होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वर्तमान में वहां भी जलकुंभी ही जलकुंभी नजर आ रही है। वही घाट के अंतिम छोर पर जलकुंभियों का पहाड़ खड़ा कर दिया गया है । अरपा नदी से निकल रहे जलकुंभी को नियमित रूप से कछार नहीं ले जाने के चलते ऐसा हो रहा है। जाहिर है अरपा नदी में जलकुंभी की सफाई कार्य की मॉनिटरिंग सही ढंग से नहीं की जा रही।

देखा यह भी जा रहा है कि क्रेन की मदद से जलकुंभी को हाईवा में भरने के दौरान घाट को काफी नुकसान पहुंचाया गया है । घाट जगह-जगह से टूट फूट गया है, यानी अरपा नदी की सफाई होगी तो घाट जर्जर होगा। ऐसे विकास की परिकल्पना शायद ही किसी ने की होगी ।
वर्तमान में केवल नदी के बीच के हिस्से से ही जलकुंभी हटाई गई है। दावा किया जा रहा है कि किनारे पर गंदगी, प्रतिमाओं के अवशेष और अन्य कचरे की वजह से यह मशीन प्रभावी ढंग से कार्य नहीं कर पा रही है। वही इतने दिनों में केवल पुल से लेकर घाट के बीच ही कुछ हिस्से की सफाई हो पाई है। यह गति बेहद धीमी है। वहीं किनारों की सफाई ना होने से इसका कोई औचित्य भी नहीं है। उस पर विडंबना यह है कि इस काम चलाऊ सफाई के नाम पर हर साल टैक्सपेयर का दो करोड़ रुपए फूंका जाएगा।

घाट की घेराबंदी भी रही बेअसर


वैसे घाट पर आप हर वक्त मशीन को किनारे खड़ा ही देख पाएंगे। यह भी एक बड़ी वजह है जिसके चलते काम बहुत धीमी गति से हो रहा है। यहां सबसे पहली जरूरत है कि जो जलकुंभी नदी से निकाली गई है उसे अविलंब यहां से हटाया जाए ताकि घाट की साफ-सफाई नियमित रूप से होती रहे। वही फिलहाल फोकस किनारों की सफाई पर होनी चाहिए , ताकि लोग घाट पर पूजा-पाठ आदि कर सके।

वही घाट पर पहुंचने वाले श्रद्धालुओं में भी यह संस्कार होना चाहिए कि वे नदी को गंदा ना करें। लोगों ने तो नदी को कूड़ेदान समझ लिया है। पूजा-पाठ की सामग्री से लेकर तमाम तरह की गंदगी नदी में ही डाली जा रही है। लोग बड़े मजे से पुल के ऊपर से ही ऐसी गंदगी नदी पर उड़ेल देते हैं और यही लोग बाद में नदी के गंदे होने की दुहाई भी देते हैं ।ऐसे लोगों पर भी सख्त कार्यवाही की आवश्यकता है। तभी अरपा नदी सचमुच जीवनदायिनी बन पाएगी , नहीं तो बिलासपुर की अरपा नदी का स्वरूप किसी गंदे नाले से अधिक नहीं होगा।

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