किसी देश का स्वर्णिम भविष्य उसके इतिहास में छिपा है-कुलपति प्रो. चक्रवाल



बिलासपुर। गुरू घासीदास विश्वविद्यालय (केन्द्रीय विश्वविद्यालय) के रजत जयंती सभागार में दिनांक 12 फरवरी, 2023 को अपराह्न 3 बजे भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के मध्य बहुआयामी ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संपर्क विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का गरिमापूर्ण समापन हुआ। यह तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी दिनांक 10 से 12 फरवरी, 2023 तक आयोजित की गई।
पूर्व कुलपति सौराष्ट्र विश्वविद्यालय राजकोट गुजरात प्रो. नीलांबरी दवे ने समापन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में कहा कि सांस्कृतिक पहचान के रूप में खानपान एवं रहन-सहन का बहुत बड़ा योगदान है। संयोग से दक्षिण पूर्व एशिया देशों एवं भारत के खानपान एक जैसे हैं इनके अवयव एवं खाने के तौर तरीके समान हैं। यह बातें प्रमाणित करती है कि सांस्कृतिक रूप से हम एक दूसरे के कितने नजदीक हैं। इस प्रकार भारत के विश्व बंधुत्व के विचार पर प्रकाश डालते हुए आपने बताया कि समस्त एशियाई देशों को प्राचीन समय में एक सूत्र में बांधने में इस विचार की महती भूमिका रही है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति महोदय प्रोफेसर आलोक कुमार चक्रवाल ने कार्यक्रम में योगदान देने वाले समस्त के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि गुरु घासीदास विश्वविद्यालय इतिहास के समस्त उपेक्षित किंतु महत्वपूर्ण पक्षों पर संगोष्ठी करने एवं तथ्य संकलन के लिए प्रतिबद्ध है। महिमा गुरु धर्म के प्रदायों पर बात करते हुए आपने बताया कि गुरु घासीदास विश्वविद्यालय देश का पहला विश्वविद्यालय है जिसने पहली बार उनके नाम पर शोध पीठ की स्थापना की है। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के विषय को समीचीन बताते हुए कहा कि किसी भी देश का स्वर्णिम भविष्य उसके इतिहास में छिपा है।


कुलपति प्रोफेसर चक्रवाल ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के समस्त प्रावधानों को संपूर्ण स्वरूप में क्रियान्वित किए जाने के लिए विश्वविद्यालय में सक्रियता के साथ सकारात्मक प्रयास किए जा रहे हैं।
अंतर विषयक अध्ययन की संभावनाओं पर चर्चा करते हुए बताया कि विश्वविद्यालय में अंतर विषयक शोध के लिए अब किसी तरह की कोई बाधा नहीं है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली के राष्ट्रीय सह-संगठन सचिव श्री संजय मिश्रा ने बताया कि भारत ने कभी अपने सैन्य बल का प्रयोग किसी पर अधिकार जमाने के लिए नहीं किया बल्कि अपनी समस्त शक्तियों का विस्तार विश्वकल्याण के लिए किया। अनेक दंत कथाओं के माध्यम से भी आपने भारतीय ज्ञान परंपरा का विशद वर्णन किया साथ ही विश्व के विभिन्न हिस्सों में भारतीय मूल पर प्रकाश डाला।
इसी कड़ी में प्रो. मनोज कुमार श्रीवास्तव, कुलपति शहीद महेन्द्र कर्मा विश्वविद्यालय बस्तर जगदलपुर (छ.ग.) ने प्राचीन भारत के शिक्षा संस्थानों की उदार व्यवस्था पर वृहद तरीके से प्रकाश डाला। इसके साथ ही प्राचीन भारत में व्याप्त अंतर विषयक ज्ञान परंपरा से परिचित कराते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में इसके समन्वय पर भी चर्चा की।
07 देशों के प्रतिभागी शामिल
भारत के अलावा थाईलैंड, म्यामार, इंडोनेशिया, कंबोडिया, तिब्बत, मलेशिया एवं वियतनाम के प्रतिभागियों ने संगोष्ठी में हिस्सा लिया। इस संगोष्ठी में 200 से अधिक शोधपत्रों का वाचन किया गया।


संयुक्त तत्वावधान में हुई संगोष्ठी
तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन भारतीय इतिहास संकलन समिति छत्तीसगढ़ प्रांत, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र नई दिल्ली, केन्द्रीय उच्चतिब्बती शिक्षा संस्थान, सारनाथ वाराणासी (उ.प्र.), नव-नालंदा महाविहार नालंदा बिहार, सांची बौद्ध एवं भारतीय अध्ययन विश्वविद्यालय, सांची (म.प्र.), शहीद महेन्द्र कर्मा विश्वविद्यालय बस्तर जगदलपुर (छ.ग.) के संयुक्त तत्वावधान में हुआ। संगोष्ठी के प्रायोजक के रूप में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद नई दिल्ली, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद नई दिल्ली एवं भारतीय समाज विज्ञान अनुसंधान परिषद नई दिल्ली शामिल रहे।
तरंग बैंड ने दी सरस्वती वंदना एवं कुलगीत की प्रस्तुति
समापन कार्यक्रम के प्रारंभ में मंचस्थ अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन कर मां सरस्वती एवं बाबा घासीदास जी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किया। विश्वविद्यालय तरंग बैंड के विद्यार्थियों ने सरस्वती वंदना एवं कुलगीत की प्रस्तुति दी। तत्पश्चात अतिथियों का पुष्पगुच्छ से स्वागत किया गया। स्वागत उद्बोधन संगोष्ठी के संयोजक प्रो. प्रवीण कुमार मिश्र एवं प्रतिवेदन प्रस्तुति डॉ. नीतेश कुमार मिश्र ने किया।
कार्यक्रम के अंत में विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. मनीष श्रीवास्तव ने धन्यवाद ज्ञापन एवं संचालन डॉ. गरिमा तिवारी सहायक प्राध्यापक वानिकी, वन्य जीव एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग ने किया। इस अवसर पर देश-विदेश से आए प्रतिभागीगण, विश्वविद्यालय की विद्यापीठों के अधिष्ठातागण, विभागाध्यक्षगण, शिक्षकगण, शोधार्थी एवं बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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