प्रवीर भट्टाचार्य
अपोलो बिलासपुर के ऑर्थो एंड स्पाइन सर्जन डॉ आशीष जायसवाल ने बुधवार को पत्रकारों से चर्चा करते हुए बताया कि वर्तमान में चिकित्सकीय ज्ञान और तकनीक में आमूल चूल प्रगति से स्पाइन सर्जरी की दिशा में क्रांतिकारी परिवर्तन संभव हुए है। पहले जहां रीढ़ की हड्डी से संबंधित समस्या को लेकर आने वाले मरीजों को जटिल ऑपरेशन प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था, वहीं अब ओपन सर्जरी की बजाय माइक्रोस्कोपिक सर्जरी होने से मरीज उसी दिन नहीं घर लौट रहा है।
डॉ आशीष जायसवाल ने बताया कि वर्तमान में अधिक मोबाइल इस्तेमाल करने, सड़कों के खराब होने, उठने बैठने एवं सोने के के गलत पॉस्चर के चलते स्पाइन से संबंधित समस्याएं बढ़ी है। खास बात यह है कि स्पाइन से संबंधित 100 मरीजों में से 70 स्लिप डिस्क से पीड़ित होते हैं। अगर ऐसे मरीजों को शल्य चिकित्सा की आवश्यकता होती थी तो पहले उन्हें जटिल प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता था। अस्पताल में भर्ती होने के बाद बड़ा सा चीरा लगाकर उनका ऑपरेशन किया जाता था, जिसमें खून चढ़ाने की भी आवश्यकता पड़ती थी और कई मर्तबा तो मरीजों को आईसीयू में भी भर्ती करना पड़ता था, लेकिन मॉडर्न चिकित्सा विज्ञान में इसमें बड़ा परिवर्तन आया है। खासकर बिलासपुर अपोलो में वर्तमान में हो रहे ऑपरेशन के 2 घंटे बाद ही मरीज चलने फिरने लगता है और शाम तक घर भी लौट जाता है। यहां तक कि 10 से 15 दिनों में वह वापस अपने काम पर भी लौट सकता है।
इसे चमत्कार बताते हुए डॉ आशीष जायसवाल ने कहा कि यह गर्व का विषय है कि साइंटिफिक जनरल, एशियन स्पाइन सर्जरी जो कि एक इंटरनेशनल जनरल है उसमें भी इसी विषय से संबंधित उनका पेपर पब्लिक हो चुका है। जो बिलासपुर और अपोलो के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय है, क्योंकि स्पाइन सर्जरी को लेकर यह देश का पहला पेपर है , जो इस ख्यातिप्राप्त इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इससे यह चिकित्सा पद्धति अब प्रमाणित भी हो चुकी है।
डॉ आशीष जायसवाल ने जानकारी देते हुए कहा कि एक तरफ जहां स्पाइन सर्जरी की दिशा में तमाम नई जानकारियों से चिकित्सक लैस रहे हैं तो वही इस दिशा में नवीन संसाधनों की भी प्रचुरता है। अत्याधुनिक दूरबीन, माइक्रोस्कोप, एंडोस्कोप आदि की मदद से बेहद छोटे चीरे से यह ऑपरेशन संभव हुए हैं। एनैस्थीजिया भी पहले से काफी सुधार हुआ है, जिसका लाभ मरीजों को मिल रहा है। पहले जहां स्पाइन सर्जरी के बाद मरीजों को कई- कई दिनों तक अस्पताल में ही रुकना पड़ता था, वहीं अब मरीज सेम डे घर लौट सकता है। पहले औसतन 8 से 10 दिन मरीजों को अस्पताल में ही भर्ती रहना पड़ता था। कई मरीजो को तो आईसीयू में भी भर्ती करने की नौबत आती थी, ऑपरेशन के बाद उन्हें खून की भी आवश्यकता पड़ती थी, लेकिन नई पद्धति से हो रही सर्जरी से इससे छुटकारा मिली है। तो वही मरीज 10 दिन में काम पर वापस लौट पा रहा है। इससे बेहतर और क्या हो सकता है।
चर्चा के दौरान उन्होंने यह भी बताया कि वर्तमान में एक नई तरह की बीमारी सामने आई है, जिसे चिकित्सक टेक्स्ट स्पाइन का नाम दे रहे हैं। सीधी गर्दन की अपेक्षा जब कोई मोबाइल पर झुककर कुछ लिखता या पढ़ता है तो उसके गर्दन पर कई गुना अतिरिक्त भार पड़ता है। इसके चलते नई तरह की बीमारी सामने आई है। इसे लेकर सतर्क करते हुए सावधानी बरतने की सलाह डॉक्टर आशीष जयसवाल ने दी है ।
वहीं उन्होंने कहा कि सोने के लिए ना तो बेहद नरम और ना ही बेहद सख्त मैट्रेस होनी चाहिए। साधारण कोयर मैट्रेस या रूई के गद्दे को उन्होंने बेहतर विकल्प बताया।
अब तक बिलासपुर अपोलो में करीब 10,000 स्पाइन सर्जरी कर चुके डॉ आशीष जायसवाल के उन मरीजों की संख्या भी 500 से 600 है जो नई पद्धति से अपना ऑपरेशन करा कर एक दिन में घर लौटे हैं। ऐसे ही कुछ मरीजों ने भी चर्चा के दौरान बताया कि किस तरह से माइक्रोस्कोपिक स्पाइन सर्जरी से उनकी समस्या का निदान हुआ है, साथ ही उन्होंने इसे समय और धन का सदुपयोग भी करार दिया। ऑर्थो एंड स्पाइन सर्जन डॉ आशीष जायसवाल का कहना है कि मौजूदा लाइफ़स्टाइल की वजह से 40 साल की उम्र के बाद रीढ़ की हड्डी से संबंधित समस्याओं का सामने आना स्वाभाविक है। इसमें से 50% समस्याओं का निदान लोग मामूली या घरेलू इलाज से कर लेते हैं , तो वहीं जटिल समस्या से ग्रसित मरीजों को उन्होंने चिकित्सकों के पास जाने की सलाह दी, साथ ही उन्होंने कहा कि अगर सर्जरी की आवश्यकता पड़ी तो फिर ओपन सर्जरी की बजाय माइक्रोस्कोपिक सर्जरी को अपनाना बेहतर विकल्प होगा। जिससे मरीज का इलाज छोटे से चीरे से होने की वजह से जल्दी वह रिकवर कर सके और जल्द से जल्द काम पर लौट सके। अच्छी खबर यह है कि बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में यह सुविधा उपलब्ध है।