
यूनुस मेमन

सरकारी योजना और जन सुविधा के लिए निर्मित संसाधनों को जनप्रतिनिधि ही किस तरह पलीता लगाते हैं, यह देखना है तो ग्राम पंचायत लखराम के सब्जी बाजार में आना होगा। यहां निर्मित एक मात्र शौचालय पिछले 2 वर्षों से बंद है। लखराम के अलावा आसपास के 8 से अधिक आश्रित ग्रामो के लोग इसी बाजार पर निर्भर होने से यहां बड़ी संख्या में विक्रेता और क्रेता पहुंचते हैं, जिन की सुविधा के लिए यहां महिला और पुरुष शौचालय का निर्माण किया गया था। बताया जा रहा है कि यहां सरपंच के पति की ही मनमानी चलती है। कहने को तो बबीता वर्मा सरपंच है लेकिन रसूख उनके पति बालचंद वर्मा की चलती है।

निर्माण के बाद बमुश्किल 1 से 2 महीने तक ही लोग शौचालय का इस्तेमाल कर पाए जिसके बाद सरपंच पति द्वारा शौचालय पर ताला जड़ दिया गया। जिसके बाद से लोग शौचालय का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे।
बाजार आने वाले पुरुष तो इधर-उधर किसी तरह से अपना काम निपटा लेते हैं लेकिन महिलाओं को इससे विशेष असुविधा होती है ।सरपंच से इस विषय में कई बार बातचीत की गई लेकिन उन्होंने इस और कोई ध्यान ही नहीं दिया तो वहीं सरपंच पति की मनमानी से लोग त्रस्त है। बताया जा रहा है कि साल 2021 में 3.5 लाख की लागत से इस शौचालय का निर्माण किया गया था, लेकिन इसका उपभोग आम लोग नहीं कर पाए। इस पर अपनी निजी संपत्ति की तरह सरपंच पति ने ताला जड़ दिया है, इसे लेकर लोगों में गुस्सा तो है लेकिन रसूखदार सरपंच पति के खिलाफ कोई कुछ भी करने की स्थिति में नहीं है।

यानी सरकारी खजाने से आम लोगों के लिए जिस शौचालय का निर्माण हुआ था वह उपयोग में आ ही नहीं रहा, तो वही इस वजह से स्वच्छ भारत अभियान को भी धक्का लग रहा है। जब सरपंच और सरपंच पति आम लोगों को ही यह बताने को तैयार नहीं है कि आखिर उन्होंने किस अधिकार और किस कारण से शौचालय पर ताला जड़ दिया है तो फिर यह अपेक्षा तो बेमानी है कि वे मीडिया के प्रति जवाबदेह होंगे। अब उम्मीद प्रशासन से है जिसके दखल से ही शौचालय में जड़ा ताला खुल सकता है और शौचालय का वह इस्तेमाल हो सकता है जिसके लिए इसे बनाया गया है।
