

शुक्रवार को पूरे हर्षोल्लास और पंजाबियत के साथ बिलासपुर में भी लोहड़ी का पर्व मनाया गया। इस अवसर पर उसलापुर रोड स्थित सुनील- नमिता ऋषि के निवास पर बड़ी संख्या में लोग लोहड़ी मनाने जुटे। सूर्य के उत्तरायण होने पर देश भर में अलग-अलग पर्व मनाये जाते है । कहीं यह संक्रांति है, कहीं पोंगल, तो पंजाब में इस मौके पर लोहड़ी पर्व मनाया जाता है। नई फसल और ठंड के आगमन के इस उत्सव में लोहड़ी जलाकर उसमें मूंगफली रेवड़ी आदि अर्पित करने और फिर गीत गाते हुए झूमने नाचने का पर्व है लोहड़ी। मकर संक्रांति के एक दिन पहले 13 जनवरी को मनाए जाने वाले इस पर्व ने अब विस्तार लेते हुए हरियाणा पंजाब से बाहर निकल कर पूरे देश में अपनी जगह बना ली है। खासकर जहां-जहां पंजाबी बसते हैं वहां इसका उत्साह देखते ही बनता है।

शुक्रवार को मंगला के पास लोहड़ी मनाने के लिए बड़ी संख्या में लोग जुटे । यहां लकड़ियों की ढेरी पर सूखे उपले रखकर लोहड़ी पूजन किया गया। जलती लोहड़ी की अग्नि में तिल, रेवड़ी , मूंगफली आदि का भोग अर्पित किया गया। इस अवसर पर ढोल की थाप के साथ लोगों ने गिद्दा और भांगड़ा किया।
जिस घर में नई बहू आती है या फिर घर में संतान का जन्म होता है उस परिवार की ओर से खुशी को बांटते हुए लोहड़ी मनाई जाती है। सुनील और नमिता ऋषि के घर में भी पुत्र करण ऋषि और पुत्र वधु शायना ऋषि की पहली संतान के रूप में नन्ही परी स्वरूप पोती कृषा का आगमन हुआ है, जिसकी खुशी में उनके यहां लोहड़ी मनाने और बधाई देने लोग पहुंचे।

सूर्य के उत्तरायण होने से पहले यह एक प्रकार का सार्वजनिक यज्ञ है। पंजाब के हर पर्व की तरह इसमें भी वही उत्साह और जोश नजर आता है, जो पंजाब की पहचान है।
वैसे तो भारत के अधिकांश पर्वों की तरह लोहड़ी का भी संबंध फसल से है । रबी की फसल की कटाई के बाद प्रकृति का आभार मनाते एव नए फसल के स्वागत में खुशियां बांटने यह पर्व मनाया जाता है। इसकी शुरुआत पंजाब और हरियाणा से हुई थी और आज तो यह देशभर में मनाई जाती है। लोहड़ी से दिन बड़े होने लगते हैं। यह बढ़ते हुए दिन का भी जश्न है। लोहड़ी पर मूंगफली की चिक्की ,मुरमुरा लड्डू , मखाना तिल के लड्डू आदि खाने- खिलाने की परंपरा है , जिसे निभाते हुए इस अवसर पर मेहमानों को इन्हीं वस्तुओं का उपहार प्रदान किया गया।
