सरकारी योजनाओं से वंचित, दोयम दर्जे का जीवन जी रही सकरी बहतराई की ग्रामीण महिलाओं ने, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की प्रदेश अध्यक्ष नमिता ऋषि को सुनाई अपनी व्यथा कथा, इस संघर्ष में साथ का मिला भरोसा

गरीब, जरूरतमंद और सर्वहारा वर्ग का जीवन आसान करने के लिए कहने को तो ढेरों सरकारी योजनाएं हैं, मगर विडंबना यह है कि यह योजनाएं उन लोगों तक कभी पहुंच ही नहीं पाती, जो इनके सच्चे अधिकारी है। फाइलों में भले ही बड़े-बड़े दावे किए जाते हो, लेकिन सच्चाई भयावह है। तमाम सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन के दावे के उलट आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में आम लोग कष्ट पूर्ण जीवन जीने को अभिशप्त हैं । इनके जीवन की बुनियादी भी आवश्यकताएं भी पूरी नहीं हो रही।
ऐसे ही परेशान हाल सकरी बहतराई बेहतर की दर्जन भर से अधिक महिलाएं अपनी समस्याएं लेकर बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की प्रदेश अध्यक्ष नमिता ऋषि के पास पहुंची। सामाजिक गतिविधियों में उनकी हिस्सेदारी और उनकी संवेदनशीलता के चलते इन महिलाओं को आशा है कि उनकी समस्याओं का निराकरण नमिता ऋषि के माध्यम से संभव है।


सकरी क्षेत्र के बहतराई से पहुंची ग्रामीण महिलाओं ने बताया कि अधिकांश परिवारों में रोजगार में लगे पुरुष सदस्यों की कमी है। किसी के घर में पति बीमार है तो किसी के पति का निधन हो चुका है। घर में बच्चों के अलावा बुजुर्ग सदस्य भी है जो आय अर्जित नहीं कर पाते । यह महिलाएं ₹100 रोजी के दम पर ही परिवार की गाड़ी किसी तरह खींच रही है । इन महिलाओं को बमुश्किल सरकारी राशन ही मिल पा रहा है। अन्य सरकारी योजनाओं से वंचित इन महिलाओं ने बताया कि ना तो उन्हें सरकारी आवास मिला, ना बुजुर्गों को पेंशन मिलता है। यहां तक कि मनरेगा के तहत काम भी नहीं मिल रहा है।
यह महिलाएं खैरात नहीं बल्कि आत्म सम्मान के साथ स्वावलंबी होकर रोजगार अर्जित करना चाहती है। जिनका कहना है की बेटी बचाने और बेटी पढ़ाने के बाद अगर उन्हें जीवन जीने के लिए आवश्यक चीजें ही उपलब्ध नहीं होंगी तो फिर उनका भविष्य क्या होगा ?

विडंबना यह है कि सरकारी योजनाओं को ग्रामीणों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी जिन लोगों की है वे ही इसमें बाधक बन रहे हैं। गांव में सरपंच, सचिव का खौफ इतना है कि पीड़ित महिलाएं उनका नाम लेने से भी डर रही है। उन्हें आशंका है कि अगर कहीं इसकी जानकारी सरपंच को हो गई तो सरकारी चावल मिलना भी बंद हो जाएगा। इतना ही नहीं दबंग सरपंच आदि उनका हुक्का पानी बंद कर देंगे। जाहिर है गांव में जो जनप्रतिनिधि बने बैठे हैं, वे असल में जन विरोधी हो चुके है, जिनके लोभ, लालच और आतंक की वजह से सरकारी योजनाएं हितग्राहियों तक नहीं पहुंच पा रही।
अधिकांश सरकारी योजनाओ का आधा अधूरा लाभ ही मिला है। उज्जवला योजना के तहत सिलेंडर मिला तो फिर उसकी रिफिलिंग कभी नहीं हो पाई। आवास के लिए फॉर्म भरा तो फिर आगे की प्रक्रिया फाइलों में अटक गई। बुजुर्गों को पेंशन के लिए सिर्फ भटकाया गया, लेकिन पेंशन की राशि कभी हाथ नहीं आई। गांव में ही रोजगार देने के वायदे किए गए लेकिन आज भी इन महिलाओं को रोजी मजदूरी का जीवन यापन करना पड़ रहा है।


इन पीड़ित शोषित महिलाओं की व्यथा कथा सुनकर बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की प्रदेश अध्यक्ष नमिता ऋषि ने उनके प्रति पूरी संवेदना व्यक्त की और उनकी समस्याओं को यथोचित मंच पर ले जाकर निराकरण का वादा किया। नमिता ऋषि ने कहा कि वो जल्द ही सकरी बहतराई के ग्रामीण परिवारों की समस्याओं को लेकर कलेक्टर और आवश्यकता पड़ी तो मुख्यमंत्री के पास भी जाएंगी और निराकरण की दिशा में परिणाम हांसिल होने तक पूरी शक्ति के साथ प्रयास करेंगी।

उन्होंने यह भी कहा कि के यह समस्या अकेले सकरी बहतराई गांव की ही नहीं है । अंचल के ऐसे कई गांव हैं जहां रहने वाले ग्रामीण आज भी दोयम दर्जे का जीवन यापन कर रहे हैं ।जिनके घर अधिकांश सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंच ही नहीं पा रहा क्योंकि सरकार और इनके बीच के सेतु में ही खराबी है। बदली परिस्थितियों में जनप्रतिनिधियों का एकमात्र उद्देश्य अपनी स्वार्थपूर्ति रह गया है । गांव के दबंगों के साथ बैर मोल लेने का साहस कोई नहीं कर पाता और गांव की खबरें बाहर निकल कर भी नहीं आती, जिसका लाभ ऐसे तत्वों उठा रहे हैं। अगर सरकारी अफसर सप्ताह में एक दिन भी अपने एसी चेंबर से बाहर निकलकर ऐसे गांवों का दौरा करें तो उन्हें भी वास्तविकता का ज्ञान हो पाएगा।

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