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बिलासपुर रेलवे स्टेशन का साइकिल स्टैंड रेलवे को हर साल करोड़ों रुपए की आमदनी कराता है, लेकिन पिछले कुछ महीनों से यहां बड़ा गड़बड़झाला किया जा रहा है, जिससे रेलवे को बड़ी चपत लग रही है। पिछली मर्तबा यहां 3.42 करोड़ रुपए का ठेका 3 वर्ष के लिए राम सिंह यादव को मिला था। ठेका अवधि समाप्त हो जाने के बाद दो बार टेंडर की प्रक्रिया की गई। आरोप है कि जानबूझकर रेलवे के कुछ अधिकारी बार-बार टेंडर निरस्त कर रहे हैं, ताकि उनका मकसद पूरा हो सके। पहले 15 नवंबर और फिर 3 दिसंबर को पूरी प्रक्रिया के साथ भरे गए टेंडर आवेदन निरस्त कर दिए गए। सूत्रों के अनुसार इस बार 60, 70 लाख और एक करोड़ रुपए प्रति वर्ष ठेके की राशि का टेंडर प्रस्तावित की गई थी लेकिन सीनियर डीसीएम द्वारा इसे निरस्त कर दिया गया।

आरोप यह भी है कि रेलवे के कुछ अधिकारी अपने चहेते ठेकेदार को ठेका दिलाने के लिए यह सब कुछ कर रहे हैं । अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि 1 करोड़ रुपए का टेंडर किसके द्वारा भरा गया था। इधर ठेका प्रक्रिया ना होने के कारण 20 अक्टूबर से बिलासपुर रेलवे स्टेशन के बाहर तीन साइकिल स्टैंड का संचालन रेलवे ही कर रही है। कहने को यहां रेलवे का एक एक प्रतिनिधि रेल कर्मचारी स्टैंड का संचालन करता है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि यहां निजी कर्मचारियों के भरोसे साइकिल स्टैंड चलाया जा रहा है।
यहां दोपहिया वाहनों से 24 घंटे का ₹25 के करीब किराया लिया जाता है, तो वहीं 4 घंटे के लिए ₹14 की किराया निर्धारित है। बताया जा रहा है कि इसमें जीएसटी भी जोड़ी जा रही है। जब ठेकेदार द्वारा किराया वसूली जाती है तो उसके द्वारा जीएसटी जमा की जाती थी लेकिन रेलवे के लिए जीएसटी जमा करना जरूरी नहीं है और नियम विरुद्ध किराए में जीएसटी जोड़कर बड़ा घोटाला किया जा रहा है।

सूत्रों से पता चला है कि टेंडर प्रक्रिया पूरी ना कर कुछ अधिकारी रेलवे को बड़ा नुकसान पहुंचा रहे हैं। यहां प्रतिदिन 25 से 26 हज़ार रुपये की आय अर्जित हो रही है, जिसका बंदरबांट किया जा रहा है। रेलवे के तीन अधिकारियों तक हर हफ्ते उनका हिस्सा पहुंचता है। पता चला है कि दो अधिकारियों को 5-5 हजार और एक बड़े अधिकारी को 10 हज़ार रुपये हर हफ्ते दिया जा रहा है। यानी हर महीने एक मोटी रकम इन्हीं अधिकारियों की जेब भरने में खर्च हो रही है और यह सब कुछ रेलवे के हिस्से से लिया जा रहा है। यानी इस तरह से रेलवे को चुना लगाया जा रहा है । यही वजह है कि यह अधिकारी टेंडर नहीं होने दे रहे हैं, ताकि उनकी जेब इस तरह से भरती रहे। बार-बार टेंडर निरस्त करने की वजह भी अधिकारी बताने को तैयार नहीं। इसके पीछे बड़ा भ्रष्टाचार किया जा रहा है।

इतना ही नहीं यहां रिजर्वेशन या अन्य कार्य के लिए पहुंचने वाले लोग जब गलती से अपने दुपहिया वाहन आरपीएफ कार्यालय के सामने या आस पास खड़ा कर देते हैं तो उन्हें नियम विरुद्ध लॉक कर दिया जाता है। उनसे सामान्य किराया लिए किराया लेने की बजाय उन्हें जबरन आरपीएफ के पास भेजा जाता है । बताया जा रहा है कि आरपीएफ के कर्मचारी ऐसे वाहन चालकों से 100 रु का जुर्माना वसूलते हैं, जबकि नियमानुसार अवैध पार्किंग के खिलाफ किसी तरह की कार्यवाही का अधिकार केवल यातायात पुलिस को है, आरपीएफ को नहीं। लेकिन नियम विरुद्ध यह खेल जारी है ।

रेलवे के कुछ ठेकेदार , कर्मचारी और अधिकारियों की मिलीभगत से यह गोरखधंधा जारी है, जिसके चलते हर महीने लाखों रुपए का चूना रेलवे को लग रहा है। रेलवे के बड़े अधिकारी इससे अनभिज्ञ है या फिर कह सकते हैं उन्हें जानबूझकर अंधेरे में रखा जा रहा है। अगर रेलवे इसकी निष्पक्ष जांच करें तो एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश हो सकता है।
टेंडर की प्रक्रिया निरस्त होने के पीछे भी रेलवे के अधिकारियों की अदूरदर्शिता वजह है। अधिकारी अब भी कल्पना की दुनिया में जी रहे हैं । वे टेंडर के लिए उसी राशि की उम्मीद कर रहे हैं जो कोरोना काल से पहले हुआ करती थी, लेकिन कोरोना के बाद की स्थिति काफी बदल चुकी है। लंबे अरसे तक ट्रेनों की आवाजाही बंद रही। अब भी ट्रेनों का परिचालन पूरी तरह से सामान्य नहीं हुआ है ।यात्रियों की संख्या पहले से घटी है। खासकर लोकल यात्रियों की संख्या काफी कम हो चुकी है। सूत्रों के अनुसार कोरोना काल से पहले 1400 दो पहिया वाहन स्टैंड में प्रतिदिन आते होते थे, इसकी संख्या घटकर 800 रह गई है लेकिन रेलवे अब भी पुरानी दर पर ही टेंडर की उम्मीद कर रही है। इसी कारण से ठेकेदार उनकी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर रहे।
केवल बिलासपुर रेलवे स्टेशन ही नहीं उसलापुर रेलवे स्टेशन साइकिल स्टैंड का भी कमोबेश यही हाल है। यहां भी मौजूदा कार्यकलाप के तहत रेलवे को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है, जिसे लेकर अधिकारियों की उदासीनता संदेह पैदा कर रही है।
