श्री पीताम्बरा पीठ सुभाष चौक सरकंडा में शारदीय नवरात्र उत्सव सोमवार 26 सितम्बर 2022 को अभिजीत मुहूर्त में 101 श्री मनोकामना घृत ज्योति कलश स्थापना पीताम्बरा मांँ बगलामुखी देवी का विशेष पूजन,श्रृंगार ,जप ,यज्ञ श्री देवाधिदेव महादेव का रुद्राभिषेक एवं श्री दुर्गा सप्तशती पाठ ब्राह्मणों के द्वारा प्रारम्भ किया गया। इस अवसर पर श्री अनिल टाह,श्री रामशरण यादव महापौर सपत्निक,श्री हर्षवर्धन अग्रवाल (अधिवक्ता हाईकोर्ट ),श्री अशोक चतुर्वेदी (प्रकाश इंडस्ट्रीज चांपा),श्री सारंग दुबे सपरिवार आदि उपस्थित थे।
आचार्य पं. दिनेश चंद्र पांडेय जी महाराज ने बताया कि नवरात्र के दूसरे दिन बगलामुखी देवी का ब्रह्मचारिणी देवी के रूप में पूजन किया जाएगा।साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है।इस दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी साधना करते हैं। जिससे उनका जीवन सफल हो सके और अपने सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें।माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता।
माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।
पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मचारिणी माता का जन्म हिमालय राज पर्वत के यहाँ हुआ था। जिनकी माता का नाम मैना था। एक दिन की बात है। ऋषिवर श्रीनारद जी महाराज हिमालय के यहा घूमते-घूमते जा पहुंचे नारद के आगमन से उनका बड़ा ही भव्य स्वागत सत्कार महाराज हिमालय के द्वारा किया गया। सभी हाल चाल को जानने के बाद हिमालय राज ने कन्या के भी भविष्य के बारे में जानने की उत्सुकता प्रकट की। नारद जी द्वारा कन्या का हाथ देखकर हिमालय राज से उनके भावी जीवन का सम्पूर्ण हाल बताया गया। किन्तु वैवाहिक जीवन में अवरोध की स्थिति सुनकर उनकी माता अकुलाने लगी और नारद जी के जाने के बाद अपने पति से पूछती है, कि इस कन्या को कैसा पति मिलेगा उसकी स्थिति क्या होगी? मुनि ने क्या कहा है? आदि। तब सारी स्थिति को वह उनसे बताते हैं। कि मुनि श्री नारद जी ने कन्या के वैवाहिक जीवन की सुगमता व अन्य समस्याओं के निवारण हेतु व्रत, तप करने के उपाय बताएं है। अर्थात् नारद जी के कहे हुए वचनों के अनुसार कन्या व्रत व तपस्या में लीन हुई और हजारों वर्ष तक कठिन तप किया, माँ ने 1000 वर्ष तक जंगल में उपलब्ध फलो को खाकर तथा 3000 हजार वर्ष तक कठिन तपस्या किया। जिसे गोस्वामी तुलसी दास श्रीराम चरित्र मानस में इस प्रकार वर्णित करते हैं- कछु दिन भोजन वारि बतासा। कीन्ह कछुक दिन कठिन उपवासा।। अर्थात् इस प्रकार की कठिन तपस्या व व्रत से देव समुदाय सहित साक्षात ब्रह्मा जी को प्रसन्न होकर जाना पड़ा। जिसमें ब्रह्मा जी शिव को पति के रूप में प्राप्त करने का वरदान दिया जिससे इन्हें अन्नत अविनाशी भगवान शिव पति के रूप में प्राप्त हुए। संसारिक जीवन में रूप लावण्य, जय, यश को प्राप्त करने के लिए तथा काम व क्रोध के ताप से बचने के लिए माता के इस मंत्र को विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना करके स्मरण करना चाहिए।
हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः। नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणता स्मताम।।
भगवती पीताम्बरा शत्रु नाशक श्री बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या है यह मांँ बगलामुखी की स्तंभय शक्ति की अधिष्ठात्री है इन्हीं में संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्ति का समावेश है ,माता बगलामुखी की उपासना विशेष रूप से वाद-विवाद, शास्त्रार्थ ,मुकदमें में विजय प्राप्त करने के लिए, अकारण आप पर कोई अत्याचार कर रहा हो तो उसे रोकने सबक सिखाने,बंधन मुक्त, संकट से उद्धार, ग्रह -शांति, शत्रुनाश ,एवं संतान प्राप्ति के लिए विशेष फलदायी है। माता बगलामुखी की उपासना से समस्त शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्तों सभी प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है ।बगलामुखी देवी रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान है रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती है ,देवी के भक्तों को तीनों लोकों में कोई नहीं हरा पाता वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है ।बगलामुखी देवी के मंत्रों से समस्त दुखों का नाश होता है।