
छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान (सिम्स ) को प्रैक्टिकल के लिए मृत शरीर नहीं मिल रहा है। इससे एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले छात्रों के सामने योग्यता को लेकर ही समस्याएं खड़ी हो रही हैं। एनाटामी विभाग में मृत देह से पूरे मानव शरीर का अध्ययन किया जाता है और इसी से शरीर के विभिन्न अंगों, उनमें होने वाले रोग, आपरेशन आदि का ज्ञान मिलता है और एक छात्र डाक्टर के तौर पर एक्सपर्ट बनता है। लेकिन यहां हालत विपरीत है। सिम्स में एमबीबीएस की 150 सीटों पर पढ़ाई कर रहे छात्रों को पढ़ाई करने के लिए हर साल 15 मानव शरीर की आवश्यकता होती है। एक शरीर पर 10 छात्र पढ़ाई करते हैं। लेकिन यहाँ मृत देह की कमी की वजह से एक बाडी पर ढेर सारे छात्रों द्वारा पढ़ाई किया जा रहा है। छात्रों द्वारा सिम्स प्रबंधन से बाडी बढ़ाने की मांग की गई है। यह स्थिति इसलिए भी है क्योंकि यहां देहदान के लिए आवेदन करने वालों की बड़ी संख्या होने के बावजूद वास्तविक देह दान करने वालों की संख्या बेहद कम है, लेकिन अब भी समाज में ऐसे जागरूक लोग मौजूद हैं जो देहदान के संकल्प को पूरा कर रहे हैं, खासकर उनका परिवार इस संकल्प को लेकर गंभीर नजर आ रहा है।
इस लिहाज से सोमवार का दिन खास था, जब पेशे से चिकित्सक डॉक्टर नीतीश कुमार भट्ट ने अपने मृत पिता का देहदान किया। दरअसल कोरबा में 94 वर्षीय श्री गोविंदराव श्रीधर भट्ट का निधन हो गया था, वे मध्यप्रदेश शासन काल में वन संरक्षक थे। उन्होंने आज से करीब 31 साल पहले ही देहदान का संकल्प लिया था जिनके द्वारा अपनी पत्नी का भी देहदान सिम्स में कराया गया था। मृत गोविंदराव के परिवार के अधिकांश सदस्य पेशे से चिकित्सक है इसलिए वे जानते हैं कि चिकित्सा क्षेत्र में रिसर्च के लिए मानव देह की आवश्यकता किस हद तक है इसलिए उन्होंने अपने परिजनों से मृत्यु के बाद दे दान की इच्छा व्यक्त की थी, जिनकी इच्छा का सम्मान करते हुए उनके बेटे और अन्य परिजनों ने सोमवार को सिम्स में देहदान की औपचारिकता पूरी की। अंतिम संस्कार की रस्म पूरी करने के बाद सिम्स में देहदान किया गया। यहां निर्धारित प्रक्रिया पूरी कर रासायनिक द्रव्य से देह को सुरक्षित कर एनाटॉमी विभाग को सौंप दिया गया है। अब एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्र शरीर रचना की पढ़ाई इसकी मदद से कर सकेंगे।
