123 वी जयंती पर याद किए गए सुभाष बाबू, सुभाष चौक पर जयंती कार्यक्रम में उन्हें बताया प्रखर राष्ट्रवादी

आलोक मित्तल

 नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 123 वी जयंती के अवसर पर बिलासपुर में भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई ।23 जनवरी 1897 को कटक में जन्मे नेताजी सुभाष चंद्र बोस अनौपचारिक रूप से भारत के पहले प्रधानमंत्री भी हैं । आजाद हिंद फौज का निर्माण कर नेताजी ने जिस तरह से अंग्रेजों को देश छोड़ने के लिए मजबूर किया, इसलिए स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका हमेशा अग्रणी रहेगी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजादी के अमर नेतृत्व कर्ता रहे हैं, उनकी जयंती 23 जनवरी को है लेकिन उनकी मृत्यु की जानकारी आज भी स्पष्ट रूप से किसी को नहीं है।

आजाद हिंद सरकार के 75 साल पूरे होने के ऐतिहासिक मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं कहां कि आजाद हिंद फौज की कामयाबी के बाद भारत के प्रधानमंत्री बने सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली सरकार को 11 देशों की सरकारों ने मान्यता दी थी। क्रांतिकारी विचारधारा के कारण उनका महात्मा गांधी से वैचारिक मतभेद था जिस कारण बहुमत से कॉन्ग्रेस अध्यक्ष चुने जाने के बावजूद उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा था। 1921 से लेकर 1941 के बीच नेताजी सुभाष चंद्र बोस को 11 बार कैद में रखा गया लेकिन 1941 में नजरबंदी के दौरान वे चुपके से देश से बाहर निकल गए और फिर उन्होंने आजाद हिंद फ़ौज का गठन किया। तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा के मूल मंत्र के साथ उन्होंने अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए सशक्त क्रांति की। आज भी इस देश में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो यह मानते हैं कि भारत की आजादी सुभाष बाबू की ही देन है। सुभाष चंद्र बोस सच्चे राष्ट्र नायक है जिनको उत्तर से पूर्व और दक्षिण से पश्चिम तक एक जैसा सम्मान हासिल है।

23 जनवरी सुभाष जयंती के अवसर पर बिलासपुर सरकंडा स्थित सुभाष चौक पर उनकी आदम कद प्रतिमा के समक्ष अलग-अलग संगठन के लोग सुभाष जयंती मनाने पहुंचे। जिला शहर कांग्रेस कमेटी ने भी जयंती अवसर पर सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें याद किया । इस अवसर पर उपस्थित शहर विधायक शैलेश पांडे ने कहा कि सुभाष चंद्र बोस प्रखर राष्ट्रवादी थे। वे आईसीएस की नौकरी छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। सुभाष बाबू युवाओं के प्रेरणा स्रोत थे। गांधीजी की अहिंसा नीति के उलट सुभाष चंद्र बोस किसी भी स्थिति में देश को आजाद कराने के पक्षधर थे। यही कारण है कि द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी सहित अन्य देशों के सहयोग से उन्होंने वर्मा में आजाद हिंद सेना का गठन किया और इस सेना ने काफी हद तक सफलता भी हासिल कर ली। इसी अवसर पर शहर अध्यक्ष नरेंद्र बोलर और सैयद जफर अली ने कहा कि सुभाष चंद्र बोस 1939 से कांग्रेस में थे और दो बार अध्यक्ष भी चुने गए। फॉरवर्ड ब्लॉक के गठन के बाद आजाद हिंद फौज की मदद से उनके स्वतंत्रा आंदोलन में सक्रिय भूमिका रही। यहां सभी नेताओं ने कहा कि सच्चा देश प्रेम सुभाष बाबू से सीखने की जरूरत है। इस अवसर पर पूर्व विधायक चंद्रप्रकाश बाजपेई ,एस एन रात्रे, हरीश तिवारी, बृजेश साहू ,शैलेंद्र जयसवाल ,अनिल सिंह चौहान ने भी अपनी बातें रखी। केवल कांग्रेस के सदस्य ही सुभाष चंद्र बोस को श्रद्धांजलि देने नहीं पहुंचे थे इसके अलावा भी अलग-अलग संगठनों ने सुभाष बाबू का स्मरण किया । फ्रेंड्स यूथ एसोसिएशन, छत्तीसगढ़ बंगाली समाज भारतीय जनता पार्टी और अन्य गैर राजनीतिक दलों ,संगठनों ने भी सुभाष चंद्र बोस का पुण्य स्मरण करते हुए उनकी प्रतिमा पर फूल माला अर्पित किया।  राष्ट्र नायक सुभाष चंद्र बोस भले ही कांग्रेस के सदस्य गए थे लेकिन कॉन्ग्रेस से उन्हें जिस तरह निराशा मिली शायद इसी का असर है कि कांग्रेस में उन्हें वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे । भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में सुभाष चंद्र बोस और स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों की जयंती मनाने की परंपरा बड़े पैमाने पर आरंभ हुई । वहीं भाजपा सरकार ने सुभाष जयंती पर अवकाश की भी घोषणा की थी। कांग्रेस ने जैसा प्रेम जवाहरलाल नेहरू और मोहनदास करमचंद गांधी के लिए दिखाया वैसा  स्नेह सुभाष बाबू के प्रति कांग्रेस का दिखा नहीं, लेकिन यह निर्विवाद सत्य है कि आज भारत में सर्वाधिक सम्मान से सुभाष चंद्र बोस का ही नाम लिया जाता है। नेताजी तो केवल सुभाष चंद्र बोस ही है। नेताजी की पदवी किसी और पर फबती भी नहीं ।सुभाष चंद्र बोस की 123 वी जयंती के अवसर पर वक्ताओं ने बोलते हुए कहा कि अगर आजादी के बाद सुभाष चंद्र बोस भारत के प्रधानमंत्री बने होते तो फिर स्थिति कुछ और ही होती,  क्योंकि वे सिर्फ नाम के नेताजी जी नहीं थे। सुभाष बाबू सचमुच ऐसे नेता थे जिनके नेतृत्व के पीछे पूरा भारत चलने को तैयार था ।उनकी मौत भी एक साजिश है, जिस पर आज तक पूरी तरह पर्दा नहीं उठ पाया । जिस विमान हादसे में उनकी मौत का दावा किया जाता है उसे लेकर भी हमेशा से संदेह रहा है। आज भी भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा अनुत्तरित रहस्य है सुभाष बाबू की मौत। 18 अगस्त 1945 के दिन से सुभाष चंद्र बोस कहां लापता हो गए इसका आज तक खुलासा नहीं हो पाया और इस विषय में जो भी दावे किए गए उसे लेकर आम भारतीय कभी भी संतुष्ट नहीं हो पाया। यहां तक कि सुभाष चंद्र बोस के करीबी रिश्तेदार भी सरकारी दावों पर कभी यकीन नहीं कर पाए। इस सब के बावजूद यह अकाट्य सत्य है कि भारत की आजादी की लड़ाई में सुभाष चंद्र बोस से बड़ा नेता  कोई नहीं हुआ। शायद उनके इसी कद से भयभीत होकर उन्हें रास्ते से हटाने की साजिश की गई।

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