
आकाश दत्त मिश्रा
मुंगेली क्षेत्र के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल सेत गंगा में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी माघी पूर्णिमा पर पांच दिवसीय मेले का आयोजन किया जाएगा , लेकिन मेले को लेकर प्रशासनिक उदासीनता से ग्रामीणों में गुस्सा है । 10 वीं -11 वीं शताब्दी में निर्मित ऐतिहासिक राम जानकी मंदिर प्रांगण में लगने वाला यह मेला क्षेत्र में बेहद प्रसिद्ध है। इसकी गिनती छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में भी की जाती है। ग्राम पंचायत सेतगंगा को 14 साल पहले जनपद पंचायत का दर्जा हासिल हुआ था, तब से मेले की जिम्मेदारी भी जनपद पंचायत मुंगेली की ही है।
इस वर्ष माघी पूर्णिमा 9 फरवरी रविवार से मेले का आगाज होगा यानी मेला आरंभ होने में कुछ घंटे ही शेष है लेकिन अब तक यहां पवित्र राम जानकी मंदिर के कुंड की सफाई तक नहीं की गई है। वही मेला स्थल पर हर तरफ गंदगी का आलम है । मेले में झूले लग चुके हैं, दुकानें सजने लगी है, लेकिन फिर भी यहां साफ-सफाई की किसी तरह की कोई व्यवस्था नजर नहीं आ रही। मेला में हर दिन हजारों लोग पहुंचेंगे इसके मद्देनजर ना तो पानी, बिजली शौचालय और सुरक्षा की कोई व्यवस्था की गई है, जिसे लेकर ग्रामीणों ने खासा गुस्सा जाहिर किया है। इस ऐतिहासिक श्री राम जानकी मंदिर की स्थापना 10 वीं शताब्दी के आसपास की गई थी ।मंदिर के समीप मां नर्मदा का स्व स्फुटित कुंड है , जिसमें जल गंगा की तरह शीतल, स्वच्छ, निर्मल है ।यही कारण है कि यहां के तपस्वी साधुओं ने गंगा के नाम से प्रेरित होकर इसका श्वेत गंगा नामकरण किया। यहां मौजूद ऐतिहासिक और विलक्षण राम जानकी मंदिर के मुख्य द्वार में रावण की मूर्ति स्थापित है। ऐसा संसार में संभवत और कहीं नहीं है।
परिसर में राम जानकी मंदिर ,महामाया मंदिर, बाबा गुरु घासीदास मंदिर के अलावा और भी छोटे-बड़े कई मंदिर स्थापित है। छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा इसे पर्यटन स्थल भी घोषित किया गया है। यहां होने वाले गुरु घासीदास जयंती समारोह में अक्सर मुख्यमंत्री भी शामिल हुआ करते हैं। बावजूद इसके वर्तमान में सेत गंगाधाम उपेक्षित नजर आ रहा है ।इधर जनपद पंचायत सीईओ आर एन नायक का दावा है कि सेत गंगा में भरने वाले माघी मेले में सफाई, पानी ,बिजली, व्यवस्था का ठेका महिला समूह को दिया गया है। वहीं उन्होंने दावा किया कि मेला आरंभ होने से पहले सारी व्यवस्थाएं पूरी कर ली जाएगी। लेकिन वर्तमान में प्रशासनिक उपेक्षा से मेले को जो ग्रहण लग रहा है उसकी भरपाई मुमकिन नहीं। अगर यही हाल रहा तो यह ऐतिहासिक और पौराणिक मेला भी इतिहास में दफन होकर रह जाएगा।
