बंगाल की संस्कृति परंपरा छत्तीसगढ़ में भी हुई साकार, बसंत पंचमी पर प्रवासी बंगालियों ने पारंपरिक रूप से की देवी सरस्वती की पूजा अर्चना , छत्तीसगढ़ बंगाली समाज के आयोजन में शामिल हुए श्रद्धालु

प्रवीर भट्टाचार्य

ऋतुराज वसंत के आगमन के साथ ही प्रकृति ने मानो श्रृंगार ओढ़ लिया है। हर तरफ प्रकृति के अनोखे रंग नजर आ रहे हैं। इसी अवसर पर माघ माह के पांचवे दिन यानी पंचमी तिथि पर देवी सरस्वती की पूजा अर्चना की परंपरा है, जिसे हम बसंत पंचमी के नाम से जानते हैं। देवी सरस्वती हिंदू परंपरा में विद्या, बुद्धि, कला की देवी मानी जाती है। यही कारण है कि छात्र- छात्राओं के साथ कलाकार भी देवी की पूजा अर्चना करते हैं। दुनिया भर में देवी सरस्वती की पूजा अर्चना की परंपरा है, लेकिन बंगाल में घर-घर में बसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा की जाती है। वहीं सभी स्कूलों और सामाजिक संस्थाओं द्वारा भी देवी पूजन की परंपरा रही है, जिसका पालन प्रवासी बंगाली भी करते हैं।

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी बिलासपुर में छत्तीसगढ़ बंगाली समाज द्वारा तोरवा छठ घाट रोड स्थित बंगाली समाज भवन में देवी सरस्वती की पूजा अर्चना की गई। बंगाल की परंपरा अनुसार विगत 5 वर्षों से यहां देवी सरस्वती की पूजा अर्चना की जा रही है। प्रातः प्रतिमा स्थापना के बाद अल्पना सजाई गई। सज धज कर सब यहां पहुंचे। विशेषकर छोटी-छोटी कन्याएँ साड़ी पहनकर आयोजन में शामिल हुई । वही छोटे बच्चों का इस दिन शिक्षा आरंभ किया गया। मां सरस्वती के चरणों में पाठ्य पुस्तक अर्पित कर विद्या का आशीर्वाद मांगा गया।

देवी सरस्वती को विशेष फलों का भोग लगाया गया, जिसमें पारंपरिक बेर भी शामिल थे। बंगाल की परंपरा अनुसार देवी सरस्वती को अर्पित करने के बाद ही बेर का सेवन किया जाता है। पूजा अर्चना के पश्चात उपस्थित भक्तों ने पुष्पांजलि अर्पित की। इस अवसर पर यहां भोग प्रसाद का भी वितरण किया गया। मां सरस्वती की पूजा अर्चना में छत्तीसगढ़ बंगाली समाज के प्रदेश सचिव पल्लव धर, प्रदेश अध्यक्ष , आर एन नाथ,संरक्षक एके गांगुली, पूर्ति धर, कल्पना डे, नारायण डे, पूजा, सचिन माला दास चंद्र चक्रवर्ती , गीता दत्ता, एके शर्मा, भाग्यलक्ष्मी , पी बी राव, रुचि दुबे और समाज के लोग बड़ी संख्या में शामिल थे।


भारतीय परंपराओं में उत्सव की श्रृंखला शामिल है। बसंत का आरंभ जहां बसंत पंचमी के साथ होता है तो वहीं इसका समापन होली के साथ माना जाता है। बसंत पंचमी और होली का भी अटूट रिश्ता है। बसंत पंचमी पर ही होलीका के लिए डांग गाड़ने का नियम है । इसकी भी शुरुआत कई स्थानों पर बसंत पंचमी पर की गई । बच्चे होलिका बनाने के लिए आधार काष्ठ यानी डांग गाड़ते देखे गए।

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