एनईपी के तहत मातृभाषा में अभ्यास प्रश्नों का निर्माण डाइट जांजगीर में बिलासपुर व सरगुजा संभाग के भाषाविद कर रहे कार्य

यूनुस मेमन


रतनपुर, बिलासपुर।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप प्राथमिक शिक्षा को मातृभाषा आधारित और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल की जा रही है। इसके अंतर्गत जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाइट), जांजगीर में कक्षा पहली एवं दूसरी की द्विभाषी पाठ्यपुस्तकों के लिए संश्लेषणात्मक एवं विश्लेषणात्मक अभ्यास प्रश्नों का हिंदी से छत्तीसगढ़ी भाषा में भावानुवाद एवं नव-निर्माण कार्य किया जा रहा है।
यह कार्य राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) रायपुर के निर्देशानुसार 15 दिसंबर से 19 दिसंबर 2025 तक डाइट जांजगीर में संचालित हो रहा है। इसमें सरगुजा एवं बिलासपुर संभाग के सरगुजिया एवं छत्तीसगढ़ी भाषी विद्यार्थियों की भाषायी आवश्यकताओं को विशेष रूप से ध्यान में रखा गया है।
इस पहल का उद्देश्य यह है कि प्राथमिक स्तर के बच्चे अपनी मातृभाषा में प्रश्नों को सहजता से समझ सकें और उत्तर सोच-समझकर लिख सकें, जिससे उनकी संश्लेषण एवं विश्लेषण क्षमता का विकास हो। मातृभाषा में अध्ययन सामग्री मिलने से बच्चे मुस्कुराते हुए और आत्मविश्वास के साथ सीखने की ओर अग्रसर होंगे।


डाइट जांजगीर के प्राचार्य श्री बी. पी. साहू के मार्गदर्शन तथा उपप्राचार्य श्री एल. पी. पाण्डे के समन्वय में यह कार्य संपन्न कराया जा रहा है। कार्यक्रम में बिलासपुर एवं सरगुजा संभाग के चयनित भाषाविदों, शिक्षकों एवं साहित्यकारों की टीम द्वारा अभ्यास प्रश्नों का भावानुवाद किया जा रहा है, ताकि भाषा, शैक्षिक स्तर और पाठ्यवस्तु के उद्देश्य पूरी तरह संतुलित रहें।
इस कार्य में डाइट व्याख्याता नेहरूलाल प्रधान, संजय शर्मा, सेवा निवृत्त डीएमसी एवं साहित्यकार संतोष कश्यप, रोशन कुमार दुबे (रतनपुर), दीपक कुमार यादव (व्याख्याता, शासकीय उमावि मड़वा), अनुभव तिवारी (सीएससी देव किरारी), शुकदेव कश्यप, श्रीमती गायत्री साहू, नम्रता अनंत एवं संतोष कुमार पटेल सक्रिय सहभागिता निभा रहे हैं।
शुकदेव कश्यप ने बताया कि इस प्रयास से बच्चों में छत्तीसगढ़ी भाषा की पढ़ने-समझने की क्षमता बढ़ेगी और भविष्य में छत्तीसगढ़ी भाषा को देश की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित किए जाने के प्रयासों को भी बल मिलेगा।
शिक्षा विभाग की यह पहल प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा आधारित शिक्षण, स्थानीय संदर्भों और बच्चों की समझ को केंद्र में रखते हुए शिक्षा को अधिक समावेशी, सरल और प्रभावशाली बनाने की दिशा में एक सराहनीय कदम मानी जा रही है।

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