

बिलासपुर हॉफा में चल रही श्री शिव महापुराण कथा के चौथे दिन व्यासपीठ पर आसीन पंडित भानु प्रताप पांडे जी महाराज ने भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि —
“इस मानव तन को पाकर यदि हम इसे सत्कर्म की ओर नहीं ले जाते, तो मानव जीवन पाने का कोई अर्थ नहीं रह जाता। यह शरीर ईश्वर की अमूल्य देन है, जिसका उपयोग केवल भोग-विलास में नहीं, बल्कि सेवा, भक्ति और परमार्थ के कार्यों में होना चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा कि —
“यदि हमारे भीतर तनिक भी अभिमान आ जाए, चाहे हम कितने ही ऊँचे पद पर पहुँच जाएँ, अथवा हमारे पास कितना भी धन-संपत्ति हो, लेकिन यदि हमारे पास अच्छा व्यवहार नहीं है, तो यह सब व्यर्थ है। जब तक हमारे पास पद, प्रतिष्ठा और कुर्सी होती है, लोग हमारा सम्मान करते हैं; परंतु जब यह सब चला जाता है, तो वही लोग हमें भूल जाते हैं। इसलिए जीवन में सदैव विनम्रता और सेवा की भावना बनाए रखनी चाहिए।”
“हमारे साथ कुछ भी नहीं जाएगा, सब यहीं रह जाएगा। इसलिए हमें धर्म के कार्य करने चाहिए, अच्छे कर्म करने चाहिए। यदि हम किसी के जीवन में खुशियों का कारण बन जाएँ, किसी चेहरे की मुस्कुराहट की वजह बन जाएँ, किसी रोते हुए व्यक्ति को हँसा पाएँ — तो समझना चाहिए कि हमने अपने जीवन की सार्थकता को प्राप्त कर लिया।” श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि मानव प्रेम का पात्र है, इसलिए सभी से प्रेम करो। माता, पिता, गुरु और अतिथि में श्रद्धा रखो, क्योंकि यही जीवन का सच्चा धर्म है।
जो प्राणी मनुष्य तन से नीचे हैं, जैसे — गाय, बैल, भैंस, पशु-पक्षी आदि — वे दया के पात्र हैं। जिस प्रकार हम अपने शरीर से प्रेम करते हैं, उसी प्रकार हर जीव अपने शरीर से प्रेम करता है। इसलिए सभी जीवों के प्रति करुणा और संवेदना रखनी चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि गाय, बैल, भैंस, हाथी, सिंह आदि कभी कथा-सत्संग में नहीं जाते, व्रत नहीं करते, न ही गुरु बनाते हैं।

प्रकृति के हर प्राणी अपने धर्म और स्वभाव के अनुसार जीवन जी रहा है। गाय, बैल, भैंस या हाथी को आप घास देंगे तो वह घास ही खाएगा; अगर मांस रख दो, तो वह भूखा रह जाएगा लेकिन मांस नहीं खाएगा। इसी प्रकार शेर, चीता, बिल्ली आदि को मांस दोगे तो वही खाएँगे, घास नहीं खाएँगे। यानी ये सब जीव अपने-अपने प्राकृतिक नियमों का पालन कर रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा कि लेकिन आज मनुष्य, जो तीर्थ करता है, व्रत रखता है, गंगा-यमुना में स्नान करता है, गुरु बनाता है — वही मांस-मदिरा का सेवन करता है, चोरी और बेईमानी करता है, दूसरों का धन हरपता है। यह मनुष्य का धर्म नहीं है। मनुष्य को अपने धर्म का पालन करना चाहिए, क्योंकि यही सच्ची भक्ति है।
पंडित जी ने कहा कि जिस दिन हम हर प्राणी में ईश्वर का अंश देखने लगेंगे, उसी दिन हमारे भीतर का द्वेष, बेईमानी और जलन समाप्त हो जाएगी। जब हम सबमें ईश्वर को देखना प्रारंभ करते हैं, तब सच्चा धर्म अपने आप प्रकट हो जाता है।
इसीलिए कहा गया है — महत्वाकांक्षा खूब रखो, पर लालच सीमित रखो। जब तक आप अपने पास जो है, उसमें संतुष्ट हैं, तब तक खुश रहेंगे। लेकिन जिस दिन आप दूसरों के पास जो है, उसे पाने की इच्छा करेंगे, उस दिन से ही दुख और बेचैनी का आरंभ हो जाएगा।
उन्होंने आगे कहा कि ऐसा व्यक्ति सदा कमी ही देखता है और जो नहीं है उसी के पीछे भागता रहता है। उस कमी के कारण जीवन की उपलब्धियाँ भी अधूरी लगने लगती हैं, और जीवन का आनंद मिट जाता है। इसलिए जो कुछ भी परमात्मा ने दिया है, वही पर्याप्त है। उसी में तृप्त रहो, आनंद लो, और प्रवृत्ति के अनुसार पुरुषार्थ करो — परंतु जिस स्थिति में हो, उसका आनंद लेना कभी मत छोड़ो।
