गैस कनेक्शन धारक की मृत्यु के बाद नाम ट्रांसफर बना बड़ी चुनौती — नियमों की उलझन में फंसे उपभोक्ता, गैस सिलेंडर से वंचित परिवार

आकाश मिश्रा

बिलासपुर | आम आदमी के लिए सरकारी नियम और कागजी प्रक्रियाएं आज भी बड़ी परेशानी का सबब बनी हुई हैं। रसोई गैस जो हर घर की बुनियादी जरूरत है, अब लोगों के लिए सिरदर्द साबित हो रही है — खासकर उन परिवारों के लिए जिनके गैस कनेक्शन धारक (कनेक्शन होल्डर) की मृत्यु हो चुकी है। ऐसे परिवार अब नाम ट्रांसफर की जटिल प्रक्रिया में उलझकर गैस सिलेंडर से वंचित हो रहे हैं।

एक समय था जब रसोई गैस सिलेंडर के लिए लोगों को महीनों तक इंतजार करना पड़ता था, लेकिन अब एलपीजी हर घर तक आसानी से पहुंच जाती है। बावजूद इसके, सरकारी नियमों की जटिलता आज भी उपभोक्ताओं के जीवन में मुश्किलें खड़ी कर रही है।

🔹 ई-केवाईसी और ट्रांसफर की प्रक्रिया बनी मुश्किल

केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार, पुराने गैस कनेक्शनों की ई-केवाईसी (e-KYC) कराई जा रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सिलेंडर उसी व्यक्ति द्वारा उपयोग में लाया जा रहा है, जिसके नाम पर कनेक्शन है। लेकिन समस्या तब बढ़ जाती है जब कनेक्शन धारक की मृत्यु हो जाती है।

ऐसे में परिवार के सामने दो ही विकल्प बचते हैं —

  1. या तो कनेक्शन को उत्तराधिकारी के नाम पर ट्रांसफर कराया जाए,
  2. या नया कनेक्शन रजिस्टर्ड कराया जाए।

🔹 कागजी कार्यवाही और खर्च ने बढ़ाई परेशानी

ट्रांसफर की प्रक्रिया में विभाग की ओर से डेथ सर्टिफिकेट, आधार कार्ड, बैंक पासबुक, पैन कार्ड, गैस वाउचर, और सभी उत्तराधिकारियों की एनओसी व शपथ पत्र मांगे जाते हैं।
परिवार के सभी सदस्यों की सहमति और दस्तावेजों का सत्यापन होने के बाद ही ट्रांसफर की अनुमति मिलती है, जो सामान्य उपभोक्ता के लिए आसान नहीं है।

वहीं नया कनेक्शन लेने की स्थिति में लगभग ₹8000 तक का खर्च बताया जा रहा है, जो कई परिवारों के लिए आर्थिक बोझ साबित हो रहा है।

🔹 त्योहार के बीच सिलेंडर की किल्लत

राजकिशोर नगर निवासी शशि मिश्रा ने अपनी व्यथा बताते हुए कहा कि उनके पिता के नाम पर अभिनव गैस एजेंसी (पुराना बस स्टैंड के पास) से भारत गैस का कनेक्शन था। पिता की मृत्यु के बाद एजेंसी ने सिलेंडर की डिलीवरी बंद कर दी है। मिश्रा का कहना है कि बार-बार एजेंसी जाने और दस्तावेज देने के बाद भी अब तक कनेक्शन ट्रांसफर नहीं हुआ।

उन्होंने बताया,

“त्योहारों के समय गैस की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, लेकिन अब हमें ब्लैक में सिलेंडर खरीदने या इंडक्शन और चूल्हे से काम चलाने को मजबूर होना पड़ रहा है। अगर नियम थोड़े आसान होते तो इतनी दिक्कत नहीं झेलनी पड़ती।”

🔹 लोगों ने की प्रक्रिया सरल करने की मांग

ऐसे कई परिवार हैं जो इसी तरह की स्थिति में फंसे हुए हैं। खासकर वृद्ध या विधवा महिलाएं, जिनके नाम पर कनेक्शन ट्रांसफर कराना तकनीकी और दस्तावेजी झंझटों के कारण संभव नहीं हो पा रहा है।

स्थानीय उपभोक्ताओं ने तेल एवं गैस कंपनियों और सरकार से मांग की है कि इस प्रक्रिया को आम जनता के लिए आसान बनाया जाए — ताकि मृत्यु प्रमाणपत्र और आधार कार्ड के आधार पर ही परिवार के नाम कनेक्शन ट्रांसफर हो सके।

🔹 सरकारी नियमों पर उठ रहे सवाल

गैस सुरक्षा और पारदर्शिता के नाम पर बनाए गए नियम अब उपभोक्ताओं के लिए झंझट और परेशानी का कारण बनते जा रहे हैं।
जानकारों का कहना है कि सरकार को इस दिशा में ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे उत्तराधिकारी को तत्काल अस्थायी स्वामित्व का अधिकार मिल सके और परिवार की बुनियादी जरूरत बाधित न हो।

“गैस हर घर की अनिवार्यता बन चुकी है। ऐसे में किसी की मृत्यु के बाद भी परिवार को इस सुविधा से वंचित रखना अमानवीय है।” — स्थानीय उपभोक्ता संगठन प्रतिनिधि



रसोई गैस कनेक्शन से जुड़ी यह समस्या अब आम होती जा रही है। जटिल नियमों, लापरवाही और कागजी बोझ के चलते जरूरतमंद परिवारों को तकलीफ झेलनी पड़ रही है। उपभोक्ताओं का कहना है कि यदि सरकार और तेल कंपनियां मानवीय दृष्टिकोण अपनाएं, तो यह समस्या तुरंत सुलझ सकती है।


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