


प्रवीर भट्टाचार्य
लोग दीपावली पर अपने घरों की साफ सफाई और सजावट में व्यस्त है, इन्हीं दिनों में कुछ अति उत्साही लोग आगामी छठ पर्व की तैयारी को लेकर बिलासपुर तोरवा स्थित छठ घाट को चमकाने में जुटे हुए हैं। आगामी 25 अक्टूबर से लेकर 28 अक्टूबर तक उत्तर भारत का सबसे बड़ा पर्व छठ बिलासपुर में भी धूमधाम से मनाया जाएगा। इसे लेकर आयोजन समिति के सदस्य तैयारी को अंतिम रूप दे रहे हैं।


आयोजको के लिए छठ घाट में पसरी गंदगी और नदी में मौजूद प्रतिमाओं के अवशेष बड़ी चुनौती थी, जिन्हें बिलासपुर नगर निगम की सहायता से लगभग हटा लिया गया है। शनिवार को अवशेष और मिट्टी हटाने के बाद पानी से घाट के एक बड़े हिस्से की सफाई की गई। साथ ही यहां बिजली की सजावट का काम भी लगभग पूरा कर लिया गया है। टेंट और शामियाना लगाने के साथ स्वागत द्वार बनाने का कार्य युद्ध स्तर पर जारी है।

छठ घाट पर ही सुरक्षा के मद्दे नजर पुलिस कंट्रोल रूम का भी निर्माण किया जा रहा है। छठ महापर्व के अवसर पर यहां एक छोटा सा मेला भी भरता है। संचालन समिति के सदस्य और पाटलिपुत्र संस्कृति विकास मंच के अध्यक्ष डॉक्टर धर्मेंद्र कुमार दास ने बताया कि हर वर्ष समिति द्वारा मेला में दुकान लगाने वालों से ₹1 का भी शुल्क नहीं लिया जाता ,उल्टे उन्हें भोजन पानी और अन्य सुविधायें निशुल्क समिति की ओर से प्रदान की जाती है।

डॉक्टर धर्मेंद्र ने यह भी बताया कि हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी उनके द्वारा दो दिनों तक निशुल्क चाय कॉफी प्रदान करने की व्यवस्था की जाएगी, साथ ही 27 अक्टूबर को छठ घाट पर सभी श्रद्धालुओं के लिए भंडारे का भी आयोजन किया जाएगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले दो-तीन दिनों में घाट की पूर्ण साफ सफाई कर ली जाएगी।
उन्होंने बताया कि आगामी 25 अक्टूबर को नहाए खाए के साथ छठ महापर्व का आरंभ होगा। इसी दिन संध्या के समय 10,000 दीपों के साथ अरपा मैया की माहा आरती की जाएगी। साथ ही अरपा नदी में दीप प्रवाहित कर दीपदान किया जाएगा। डॉक्टर धर्मेंद्र ने बताया कि इस अवसर पर क्षेत्र के विधायक गण और अन्य विशिष्ट जन सम्मिलित होंगे।

आपको बताते चले कि इस बार आयोजन के संचालन के लिए पांच सदस्यीय संचालक समिति का गठन किया गया है, जिसमें डॉक्टर धर्मेंद्र कुमार दास, प्रवीण झा, सुधीर झा, अभय नारायण राय और बीएन ओझा शामिल है। इनके अलावा अन्य सभी सदस्यों द्वारा पूरे मनोयोग से आयोजन की तैयारी की जा रही है । आयोजन का यह सिल्वर जुबली वर्ष है, इसलिए आयोजन को भव्य बनाने का प्रयास है। उम्मीद की जा रही है कि 27 अक्टूबर की शाम तोरवा छठ घाट में 50 से 60 हजार श्रद्धालु जुटेंगे।
छठ महापर्व : सूर्य उपासना का पावन पर्व, लोक आस्था और तप की अनोखी मिसाल
दीपावली के कुछ ही दिनों बाद आने वाला छठ महापर्व लोक आस्था, श्रद्धा और सूर्य उपासना का सबसे पवित्र पर्व माना जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में बड़े ही हर्षोल्लास और अनुशासन के साथ मनाया जाता है। इस पर्व की विशेषता यह है कि इसमें न तो कोई मूर्तिपूजा होती है और न ही कोई आडंबर, बल्कि यह शुद्धता, संयम और प्रकृति के प्रति आभार का उत्सव है।

क्यों मनाया जाता है छठ पर्व – जानिए पौराणिक कथा
छठ महापर्व की उत्पत्ति को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। पुराणों के अनुसार, सूर्यदेव की उपासना और अर्घ्य देने की परंपरा त्रेतायुग से आरंभ हुई। माना जाता है कि भगवान श्रीराम और माता सीता जब अयोध्या लौटे थे, तब उन्होंने कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की आराधना कर राज्याभिषेक की सफलता के लिए आशीर्वाद मांगा था। इसी दिन से छठ पूजा की परंपरा शुरू हुई।
एक अन्य कथा के अनुसार, कर्ण, जो सूर्यदेव के पुत्र थे, वे प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य देते थे। उनकी शक्ति और तेज का रहस्य यही सूर्य उपासना थी। इसी परंपरा को जनमानस ने “छठ” के रूप में अपनाया।
वहीं, कुछ मान्यताओं के अनुसार, द्रौपदी और पांडवों ने भी संकट के समय सूर्यदेव की आराधना कर राज्य और समृद्धि की प्राप्ति की थी।
कैसे मनाया जाता है छठ पर्व
छठ पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है। यह पर्व पूरी तरह से सात्विकता, स्वच्छता और आत्मसंयम पर आधारित होता है।

पहला दिन – नहाय-खाय:
पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस दिन व्रती (उपवासी) स्नान कर शुद्ध भोजन बनाते हैं और सूर्यदेव का आह्वान कर आरंभ करते हैं। भोजन में लौकी-भात और चने की दाल प्रमुख रहती है।

दूसरा दिन – खरना (लोहंडा):
इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद गुड़ से बनी खीर, रोटी और केले का प्रसाद बनाकर अर्घ्य देते हैं। इसके बाद उपवास की शुरुआत होती है जो 36 घंटे तक जल तक ग्रहण किए बिना चलता है।
तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य:
संध्या बेला में सभी व्रती घाटों या नदियों के तट पर पहुंचकर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। पूजा स्थल को केले के पेड़ों, बांस की टोकरी और दीपों से सजाया जाता है।
चौथा दिन – उषा अर्घ्य:
अंतिम दिन व्रती सुबह सूर्योदय से पहले पुनः घाट पर पहुंचते हैं और उदयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इसके बाद व्रत का पारण होता है और घर में प्रसाद वितरण किया जाता है।

छठ की खासियत
छठ महापर्व पूरी तरह से पर्यावरण और प्रकृति से जुड़ा हुआ है। इसमें सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा के माध्यम से जल, वायु, भूमि और प्रकाश — इन सभी पंचतत्वों का आभार प्रकट किया जाता है। पर्व में प्रयुक्त सभी सामग्री — जैसे बांस की टोकरी, मिट्टी के दीये, गुड़, फल, गन्ना और ठेकुआ — प्रकृति से जुड़ी होती हैं।
छठ केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, निष्ठा और लोक-परंपरा का प्रतीक है। यह भारत की उस संस्कृति को दर्शाता है जिसमें प्रकृति और देवत्व के प्रति कृतज्ञता का भाव सर्वोपरि है।
छठ पर्व की खासियत यह है कि इसमें दिखावे से ज्यादा भक्ति की गहराई होती है — और यही इसे आस्था का सबसे उज्जवल पर्व बनाती है।
