
आकाश मिश्रा

बिलासपुर।
राज्य सरकार द्वारा खेती की 5 डिसमिल से कम भूमि की रजिस्ट्री पर रोक लगाने के फैसले का बिलासपुर जिले में गलत तरीके से इस्तेमाल हो रहा है। शासन ने इस नियम का उद्देश्य अवैध प्लॉटिंग और कृषि भूमि के अंधाधुंध बंटवारे पर रोक लगाना बताया था, लेकिन जिले के प्रशासनिक अमले ने इसे शहर की डायवर्टेड (आवासीय) जमीनों पर भी लागू कर दिया है। नतीजा यह है कि सैकड़ों खरीदार और विक्रेता परेशान हैं, जबकि रजिस्ट्री का काम ठप पड़ने से शासन को भी राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
कृषि भूमि पर रोक, लेकिन बिलासपुर में डायवर्टेड जमीनों की भी रजिस्ट्री बंद
राज्य सरकार ने हाल ही में आदेश जारी किया था कि अब 5 डिसमिल (लगभग 2180 वर्गफुट) से कम कृषि भूमि की रजिस्ट्री नहीं की जाएगी। इसका मकसद खेती योग्य भूमि को बचाना और अवैध प्लॉटिंग पर रोक लगाना था।
लेकिन बिलासपुर में इस नियम का दायरा बढ़ाकर शहर की डायवर्टेड (रिहायशी या व्यावसायिक) जमीनों तक फैला दिया गया है। यहां रजिस्ट्री कार्यालय में छोटे प्लॉट्स की रजिस्ट्री स्वीकार नहीं की जा रही है, जबकि शासन के आदेश में कहीं भी ऐसा उल्लेख नहीं है कि डायवर्टेड प्लॉट्स पर रोक लगाई जाएगी।
अन्य जिलों में जारी है रजिस्ट्री, बिलासपुर में ही मनमानी
जानकारी के अनुसार, प्रदेश के अन्य जिलों में 5 डिसमिल से कम आकार के आवासीय प्लॉट्स की रजिस्ट्री पहले की तरह जारी है। केवल कृषि भूमि के मामलों में रोक लागू की गई है।
लेकिन बिलासपुर जिले में उप-पंजीयक कार्यालय और राजस्व अमले ने स्वयं के स्तर पर नियम का गलत अर्थ निकालते हुए हर तरह की छोटी जमीन की रजिस्ट्री पर रोक लगा दी है।
यहां तक कि डायवर्सन पेपर पर भी अब राजस्व विभाग की ओर से यह सील लगाई जा रही है कि “जमीन के टुकड़े में रजिस्ट्री नहीं हो सकेगी” — जबकि ऐसा निर्देश शासन स्तर से नहीं दिया गया है।

वेंडरों और खरीदारों में हताशा, विरोध पर मिली चेतावनी
रजिस्ट्री रोक के कारण रजिस्ट्री वेंडर और दलालों का काम ठप पड़ गया है। उनके अनुसार, रजिस्ट्री न होने से रोजाना का कामकाज बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
वेंडरों ने इस विषय पर कलेक्टर से शिकायत भी की, लेकिन समाधान की जगह उन्हें चेतावनी दी गई कि अगर दोबारा शिकायत की तो लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा।
वहीं, छोटे प्लॉट खरीदने वाले आम लोग भी परेशान हैं। कई लोग सालों पहले खरीदी गई अपनी डायवर्टेड जमीन का छोटा हिस्सा जरूरत के अनुसार बेचना चाहते थे, लेकिन अब रजिस्ट्री रुकने से वे असमंजस में हैं।
अवैध प्लॉटिंग की आड़ में खास बिल्डर्स को फायदा
शहर में कई जगह अवैध प्लॉटिंग के मामले सामने आए हैं, जहां बड़े-बड़े भू-खंडों को बिना अनुमोदन के काटकर बेचा गया। लेकिन इन पर कार्रवाई की बजाय प्रशासन छोटे प्लॉट धारकों को परेशान कर रहा है।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस नीति का लाभ कुछ बड़े बिल्डर्स को मिल रहा है, जिनके प्रोजेक्ट्स पहले से ही स्वीकृत हैं।
जबकि आम नागरिकों के लिए रजिस्ट्री बंद कर दी गई है, जिससे बाजार में केवल चुनिंदा बिल्डर्स का एकाधिकार बढ़ता जा रहा है।
अधिकारियों के तर्क उलझाने वाले
इस मामले में कलेक्टर संजय अग्रवाल का कहना है कि “रोक केवल अवैध प्लॉटिंग की रजिस्ट्री पर है।” हालांकि वे इस पर स्पष्ट जवाब नहीं दे पाए कि रिहायशी इलाकों में पहले से डायवर्टेड 5 डिसमिल से कम प्लॉट्स की रजिस्ट्री क्यों रोकी जा रही है।
वहीं जिला पंजीयक राजीव स्वर्णकार ने कहा कि “डायवर्टेड वैध जमीन की रजिस्ट्री पर कोई रोक नहीं है।”
इससे साफ है कि प्रशासनिक स्तर पर आदेश को लेकर भ्रम की स्थिति है, जिसका सीधा असर जनता पर पड़ रहा है।
पुराने कॉलोनी क्षेत्रों में भी रुक गई बिक्री
बिलासपुर के पुराने कॉलोनी इलाकों में ज्यादातर प्लॉट 5 से 10 डिसमिल के बीच के हैं। कई लोगों के पास 10–20 डिसमिल के पुराने भू-खंड हैं, जिनमें से वे जरूरत के अनुसार कुछ हिस्सा बेचते हैं।
लेकिन अब रजिस्ट्री न होने से ये सभी छोटे लेनदेन पूरी तरह रुक गए हैं।
वहीं, बिल्डर्स से लेआउट पास करने के नाम पर रेरा स्वीकृति और सड़क-नाली-बिजली जैसी सुविधाएं दिखाने की शर्त लगाई जा रही है, जो केवल बड़े डेवलपर्स ही पूरी कर पा रहे हैं।
राजस्व का भी नुकसान
रजिस्ट्री ठप रहने से शासन को रोजाना लाखों रुपए का राजस्व नुकसान हो रहा है। वहीं, आम नागरिकों के लिए यह एक गंभीर समस्या बन गई है क्योंकि रजिस्ट्री के बिना न तो वे संपत्ति का हस्तांतरण कर पा रहे हैं और न ही बैंक से लोन।
सरकार ने किसानों की जमीन बचाने के लिए जो नियम बनाया था, वह बिलासपुर में भ्रष्टाचार और मनमानी का नया जरिया बन गया है।
आम जनता, रजिस्ट्री वेंडर और छोटे जमीन मालिक सभी इसके शिकार हैं। ज़रूरत है कि शासन इस मामले में स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करे, ताकि नियम का उद्देश्य पूरा हो — जनता को परेशान करने का नहीं, व्यवस्था सुधारने का।
