

रायपुर/बिलासपुर।
आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) के तीन अधिकारियों के विरुद्ध न्यायिक प्रक्रिया में कथित कूटरचना (Forgery) कर झूठा दस्तावेज प्रस्तुत करने के आरोप में आपराधिक परिवाद दर्ज किया गया है। मामले में न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी, रायपुर (पीठासीन अधिकारी आकांक्षा बेक) की अदालत ने संज्ञान लेते हुए तीनों अधिकारियों को नोटिस जारी कर 25 अक्टूबर 2025 को न्यायालय में उपस्थित होकर स्पष्टीकरण देने के निर्देश दिए हैं।
यह प्रकरण अपराध क्रमांक 02/2024 एवं 03/2024 से संबंधित है, जिसकी विवेचना ईओडब्ल्यू-एसीबी द्वारा की जा रही थी। जांच के दौरान यह आरोप सामने आया कि निखिल चंद्राकर, जो उस समय किसी अन्य प्रकरण में जिला जेल धमतरी में निरुद्ध था, के कथित बयान को धारा 164 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत न्यायालय में दर्ज कराया गया दिखाया गया।
परंतु जांच में यह तथ्य उजागर हुआ कि विवेचकों ने वास्तविक न्यायिक बयान दर्ज नहीं कराया, बल्कि अपने कार्यालय के कंप्यूटर पर धारा 164 के तहत एक फर्जी दस्तावेज तैयार कर उसे पेनड्राइव में लेकर न्यायालय में प्रस्तुत किया। न्यायालय को प्रभाव में लेकर उस दस्तावेज का प्रिंटआउट न्यायालय के कंप्यूटर से निकालकर उसे असली दस्तावेज के रूप में उच्चतम न्यायालय में पेश किया गया।
साथ ही यह भी पाया गया कि निखिल चंद्राकर से केवल हस्ताक्षर लिए गए, जबकि उसका कोई मौखिक या लिखित कथन न्यायालय द्वारा दर्ज नहीं किया गया था।
फोरेंसिक जांच में भी हुई पुष्टि
फोरेंसिक विशेषज्ञों द्वारा उक्त दस्तावेजों की जांच में यह प्रमाणित हुआ कि विवेचकों द्वारा तैयार दस्तावेज का फॉन्ट न्यायालय की प्रमाणित आदेश पत्रिका से भिन्न है, और उसमें मिश्रित फॉन्ट का उपयोग किया गया है — जिससे यह स्पष्ट होता है कि दस्तावेज न्यायालय में तैयार नहीं किए गए थे।
अधिवक्ता गिरिश चंद्र देवांगन की शिकायत पर कार्रवाई
अधिवक्ता श्री गिरिश चंद्र देवांगन ने इस संबंध में माननीय उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़, बिलासपुर के सतर्कता विभाग को लिखित शिकायत एवं प्रमाणों सहित अवगत कराया था। शिकायत के आधार पर अब यह मामला न्यायिक प्रक्रिया में पहुंच गया है।
इन अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज
- अमरेश मिश्रा, निदेशक, ईओडब्ल्यू/एसीबी
- चंद्रेश ठाकुर, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, ईओडब्ल्यू
- राहुल शर्मा, उप पुलिस अधीक्षक, ईओडब्ल्यू
न्यायालय ने इन तीनों प्रस्तावित अभियुक्तों को नोटिस जारी करते हुए आगामी 25 अक्टूबर 2025 को उपस्थित होकर अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यदि आरोप प्रमाणित होते हैं, तो यह मामला न केवल न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप का गंभीर उदाहरण होगा, बल्कि आपराधिक षड्यंत्र और मिथ्या साक्ष्य निर्माण की श्रेणी में भी आएगा।
