

बिलासपुर। शारदीय नवरात्रि का समापन होते ही मां दुर्गा को विदाई देने का क्षण आ गया। प्रतिपदा से स्थापित दुर्गा प्रतिमाओं की जहां विधि-विधान से पूजा-अर्चना की गई, वहीं बंगाली परंपरा के अनुरूप षष्ठी से मां की पूजा विशेष श्रद्धा और उत्साह के साथ की जाती रही। नवमी को हवन एवं विशेष अनुष्ठान सम्पन्न हुए और दशमी पर अपराजिता पूजा व पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद घट विसर्जन किया गया।

बंगाली परंपरा में मान्यता है कि नवरात्रि के इन दिनों मां दुर्गा अपनी संतान के साथ मायके आती हैं। यही कारण है कि इन दिनों मां का स्वागत बेटी की तरह बड़े हर्षोल्लास से किया जाता है। मगर विजयादशमी के दिन वही माहौल भावुक विदाई में बदल जाता है। गुरुवार को देवी का वरण करते हुए महिलाओं ने उन्हें सिंदूर अर्पित किया, मिष्ठान चढ़ाया और एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर मंगलकामनाएं दीं। सिंदूर खेला के इस दृश्य ने पंडालों को एक मार्मिक परंपरा से भर दिया।

इसके साथ ही प्रतिमा विसर्जन की शुरुआत भी हो गई। कई समितियों ने गुरुवार को ही अपनी-अपनी प्रतिमाओं का विसर्जन किया। इसके लिए प्रशासन द्वारा छठ घाट पर विशेष व्यवस्था की गई थी। रोशनी और क्रेन की मदद से विसर्जन कराया गया, वहीं सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए गोताखोरों की तैनाती भी की गई।

पारंपरिक ढाक और कांसा की गूंज के बीच जब भक्तजन नाचते-गाते प्रतिमा लेकर छठ घाट पहुंचे तो माहौल श्रद्धा और आस्था से भर उठा। मां दुर्गा की विदाई के क्षणों में भक्तों की आंखें नम हो गईं। ढोल-नगाड़ों की थाप और जयकारों के बीच देवी प्रतिमा का जल में विसर्जन किया गया।
भक्तों ने भारी मन से मां को विदा करते हुए प्रार्थना की कि वे अगले वर्ष पुनः घर-घर आकर आशीर्वाद दें और परिवारों को सुख-समृद्धि प्रदान करें।



