
यूनुस मेमन


शारदीय नवरात्र की महाषष्ठी तिथि पर रविवार होने की वजह से सिद्ध शक्तिपीठ रतनपुर मां महामाया मंदिर में श्रद्धालु उमड़ पड़े । सुबह से ही यहां भक्तों का तांता लगा रहा। पूरा परिसर भक्तों से खचाखच भरा नजर आया। लंबी कतार लगाकर सभी ने देवी के दर्शन किए ।


रतनपुर मां महामाया मंदिर के कारण प्रसिद्ध है इसके अलावा भी यहां कहीं प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है, जिसमें से एक लखनी देवी मंदिर भी है। यह महालक्ष्मी का प्राचीन मंदिर है जो करीब 800 साल पुराना है। स्थानीय भाषा में देवी लक्ष्मी को लखनी कहने से ही इसका नाम लखनी देवी मंदिर पड़ा। यह कलचुरी राजवंश के दौरान बनाया गया मंदिर है जिसकी आकृति पुष्पक विमान की भांति है। एकवीरा पर्वत पर स्थित इस मंदिर का निर्माण कलचुरी राजा रत्नदेव तृतीय के प्रधानमंत्री गंगाधर ने 1179 में करवाया था। उस समय स्थापित देवी को एकवीरा और स्तंभबनी देवी कहा जाता था।


इस मंदिर का आकार पुष्पक विमान जैसा है। कहते हैं 1178 में यहां अकाल पड़ा था और जनता महामारी से परेशान थी। राजकोष भी खाली हो चुका था। ऐसे समय में मंत्री पंडित गंगाधर ने देवी लक्ष्मी का मंदिर बनाया। मंदिर के बनते ही यहां अकाल और महामारी खत्म हो गई और सुख समृद्धि खुशहाली लौट आई। पुष्पक विमान की आकृति वाले इस मंदिर के अंदर श्री यंत्र बना हुआ है।
महामाया के दर्शन के लिए रतनपुर पहुंचने वाले श्रद्धालु यहां पहाड़ी पर मौजूद लखनी देवी के दर्शन के लिए भी पहुंच रहे हैं। 250 से अधिक सीढ़ियां चढ़कर श्रद्धालु देवी के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं । हर वर्ष की भांति यहां शारदीय नवरात्र पर जवारा बोया गया है जिससे ही आने वाले फसल के अच्छे या बुरे होने का संदेश मिलेगा। यहां नियमित आरती और पूजा अर्चना की जा रही है, साथ ही प्रसाद का वितरण भी किया जा रहा है। शारदीय नवरात्र पर यहां मनोकामना ज्योति कलश भी प्रज्वलित किए गए हैं।



