

श्री पीतांबरा पीठ सुभाष चौक सरकंडा बिलासपुर छत्तीसगढ़ स्थित त्रिदेव मंदिर में शारदीय नवरात्र उत्सव 22 सितंबर से 1 अक्टूबर तक हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। पीतांबरा पीठाधीश्वर आचार्य दिनेश जी महाराज ने बताया कि इस अवसर पर नवरात्रि के पंचम दिन श्री ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का विशेष पूजन और श्रृंगार कुष्मांडा देवी के रूप में किया गया। साथ ही प्रतिदिन प्रातःकालीन श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का रुद्राभिषेक, पूजन और परमब्रह्म मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जी का पूजन और श्रृंगार किया जा रहा है।इसके अलावा, श्री सिद्धिविनायक जी का पूजन और श्रृंगार, और श्री महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती राजराजेश्वरी, त्रिपुरसुंदरी देवी का श्रीसूक्त षोडश मंत्र द्वारा दूधधारियापूर्वक अभिषेक किया जा रहा है।
पीतांबरा पीठाधीश्वर आचार्य डॉक्टर दिनेश जी महाराज ने बताया कि स्कंदमाता, देवी दुर्गा का पांचवा स्वरूप हैं और इन्हें नवरात्रि के पांचवें दिन पूजा जाता है। यह स्वरूप मातृत्व, प्रेम और करुणा का प्रतीक है। इनका नाम दो शब्दों से मिलकर बना है: ‘स्कंद’, जिसका अर्थ है भगवान कार्तिकेय (मुरुगन) और ‘माता’, जिसका अर्थ है माँ। इस प्रकार, स्कंदमाता का अर्थ है ‘स्कंद की माता’।
स्कंदमाता का स्वरूप अत्यंत शांत और सौम्य है। उनकी चार भुजाएँ हैं। वह अपनी दो भुजाओं में कमल धारण करती हैं, जबकि तीसरी भुजा से वह वरद मुद्रा में भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। उनकी गोद में उनका पुत्र स्कंद (भगवान कार्तिकेय) विराजमान हैं। देवी का वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। वह सफेद वस्त्र धारण करती हैं और उनकी कांति अत्यंत शुभ्र और निर्मल है, जिससे उन्हें पद्मासना (कमल पर विराजमान) भी कहा जाता है।
मातृत्व का आशीर्वाद: स्कंदमाता की पूजा से संतान प्राप्ति और उनके सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। माना जाता है कि जो निसंतान दंपति उनकी पूजा करते हैं, उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है।
ज्ञान और मोक्ष: स्कंदमाता ज्ञान की देवी हैं। उनकी पूजा से अज्ञानता दूर होती है और ज्ञान की प्राप्ति होती है। यह भक्तों को मोक्ष के मार्ग पर ले जाती हैं।
शक्ति और समृद्धि: स्कंदमाता अपने भक्तों को सभी प्रकार के दुखों, कष्टों और संकटों से मुक्ति दिलाती हैं। उनकी पूजा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
भक्ति और प्रेम: स्कंदमाता की पूजा करने से व्यक्ति के मन में प्रेम, करुणा और दया की भावना जागृत होती है।
स्कंदमाता इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति बनाया गया, तो देवी पार्वती को ‘स्कंद की माता’ होने के कारण स्कंदमाता के रूप में जाना जाने लगा। यह नाम उनके मातृत्व और उनके पुत्र के प्रति उनके गहरे प्रेम और स्नेह को दर्शाता है। यह स्वरूप हमें यह भी सिखाता है कि माँ अपने बच्चे के साथ मिलकर हर चुनौती का सामना कर सकती है।
