
श्री मनोकामना अखंड घी ज्योति कलश 108 प्रचलित किया जाएगा

बिलासपुर के सुभाष चौक सरकंडा में स्थित श्री पीतांबरा पीठ त्रिदेव मंदिर एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, जहाँ हर साल नवरात्रि का पर्व बड़े ही उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। यह मंदिर अपनी विशेष धार्मिक मान्यताओं और अनुष्ठानों के लिए प्रसिद्ध है,नवरात्रि के दौरान यहाँ का पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है और बड़ी संख्या में भक्त माता का आशीर्वाद लेने आते हैं।
श्री पीताम्बरा पीठ सुभाष चौक सरकण्डा बिलासपुर छत्तीसगढ़ स्थित त्रिदेव मंदिर में शारदीय नवरात्र उत्सव 22 सितंबर से 1 अक्टूबर तक हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा। पीताम्बरा पीठाधीश्वर आचार्य दिनेश जी महाराज ने बताया कि इस अवसर पर श्री पीताम्बरा पीठ त्रिदेव मंदिर में स्थित श्री ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का विशेष पूजन,श्रृंगार शैलपुत्री देवी के रूप में किया जाएगा।साथ ही प्रतिदिन प्रातःकालीन श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का रुद्राभिषेक, पूजन एवं परमब्रह्म मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जी का पूजन,श्रृंगार, श्री सिद्धिविनायक जी का पूजन श्रृंगार,एवं श्री महाकाली,महालक्ष्मी, महासरस्वती राजराजेश्वरी, त्रिपुरसुंदरी देवी का श्रीसूक्त षोडश मंत्र द्वारा दूधधारियाँ पूर्वक अभिषेक किया रहा हैं।

इस अवसर पर अभिजीत मुहूर्त मध्यान 11:36 से 12:36 के बीच श्री मनोकामना घृत ज्योति कलश का प्रज्जवलन किया जाएगा, साथ ही ज्वारोपण ध्वजारोहण किया जाएगा।
शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की उपासना की जाती है। माँ शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं, जिनका नाम ‘शैल’ (पर्वत) और ‘पुत्री’ (पुत्री) से मिलकर बना है। वे देवी दुर्गा का पहला स्वरूप हैं। उनकी उपासना का विशेष महत्व है क्योंकि वे नवरात्र के शुरुआती बिंदु का प्रतीक हैं।माँ शैलपुत्री की उपासना इसलिए की जाती है क्योंकि वे शक्ति और प्रकृति का प्रतीक हैं। उनका स्वरूप सौम्य और शांत है, जो ध्यान और साधना की शुरुआत के लिए आदर्श है। उन्हें वृषभ (बैल) पर सवार दिखाया गया है, और उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल है। त्रिशूल शक्ति का प्रतीक है और कमल का फूल शुद्धता का।नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा करके भक्त यह संदेश देते हैं कि वे अपनी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत कर रहे हैं। जिस तरह पर्वत अटल और स्थिर होता है, उसी तरह माँ शैलपुत्री की पूजा से मन में भी स्थिरता और दृढ़ता आती है। यह साधना की नींव रखने का सबसे पहला और महत्वपूर्ण कदम है। इसलिए, हर साधक और भक्त अपनी नौ दिवसीय नवरात्रि की शुरुआत माँ शैलपुत्री की पूजा के साथ ही करता है।
बगलामुखी देवी की उपासना विशेष रूप से वाद-विवाद,शास्त्रार्थ,मुकदमे में विजय प्राप्त करने के लिए, अकारण कोई आप पर अत्याचार कर रहा हो तो उसे रोकने,सबक सिखाने,बंधन मुक्त,संकट से उद्धार, उपद्रवो की शांति,ग्रहशांति एवं संतान प्राप्ति के लिए विशेष फलदाई है।
