

बिलासपुर। सावन माह की कृष्ण पक्ष अमावस्या पर गुरुवार को शहर में हरेली तिहार पारंपरिक उत्साह और धूमधाम के साथ मनाया गया। इस बार हरियाली अमावस्या पर गुरु पुष्य योग और सिद्ध योग का दुर्लभ संयोग बना, जिसे स्थाई उन्नति और समृद्धि के लिए बेहद शुभ माना गया। घर-घर में पारंपरिक पकवान गुरहा (गुड़) चीला और सोहारी की खुशबू फैली रही।

सुबह से ही मोहल्लों में बच्चों और युवाओं की टोलियां गेड़ी चढ़कर निकलीं। कृषि औजारों की पूजा कर अन्नदाता की समृद्धि की कामना की गई। शहर के विभिन्न शिवालयों में दिनभर विशेष पूजन-अनुष्ठान हुए। पितरों की शांति के लिए तर्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर लोग काले तिल, सफेद फूल और कुशा से तर्पण करते दिखे।
सांस्कृतिक कार्यक्रम और छत्तीसगढ़ी परंपरा की झलक
हरिहर ऑक्सीजोन परिसर में सुबह 7:30 बजे से कृषि औजारों की पूजा की गई। एकांतेश्वर भोलेनाथ एवं दक्षिणमुखी हनुमान की महाआरती हुई। इसके बाद गेड़ी दौड़ और नारियल फेंक प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं। महिला विंग द्वारा छत्तीसगढ़ी गीत गाए गए, जिससे पूरा माहौल पारंपरिक लोक-संगीत की गूंज से सराबोर रहा।

पौधारोपण से हरियाली का संदेश
शहर के कई सामाजिक व धार्मिक संगठनों ने हरियाली अमावस्या पर तुलसी, नीम, बरगद और आम के पौधे रोपे। शिव-पार्वती पूजन के साथ देव और पितृ तर्पण कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया गया।

बिलासा कला मंच ने मनाया 36वां हरेली उत्सव
ग्राम उच्चभट्टी में बिलासा कला मंच द्वारा 36वें वर्ष भी पारंपरिक तरीके से हरेली तिहार उत्सव मनाया गया। यहां छत्तीसगढ़ी खेलकूद प्रतियोगिताएं, गीत-संगीत का कार्यक्रम और लोकनृत्य की प्रस्तुतियां हुईं। मंच ने समाज के उत्कृष्ट कार्य करने वाले लोगों को सम्मानित भी किया।

छत्तीसगढ़ का पहला पर्व, किसानों की आस्था से जुड़ा हरेली आज मनाया जा रहा है
सावन मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला छत्तीसगढ़ का पारंपरिक लोकपर्व हरेली तिहार आज पूरे प्रदेश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। इसे छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार माना जाता है, जो सीधे तौर पर कृषि, पर्यावरण और ग्रामीण जीवन से जुड़ा हुआ है। हरियाली से भरे सावन में किसान खेती की शुरुआत से पहले अपने कृषि औजारों और बैलों की पूजा कर समृद्धि और खुशहाली की कामना करते हैं।
कृषि औजार और बैलों की पूजा

हरेली का अर्थ है हरियाली। इस दिन किसान अपने खेतों में काम आने वाले हल, कुदाल, फावड़ा, गैंती जैसे औजारों को साफ कर गोबर से लिपाई-पुताई कर सजाते हैं और उन पर हल्दी-कुमकुम चढ़ाकर पूजा करते हैं। बैलों को स्नान कराकर सजाया जाता है और उनकी आरती उतारी जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से खेती में उन्नति होती है और फसल भरपूर होती है।
औषधीय टहनियों और लोक रीति-रिवाज

इस दिन गांव-घर में नीम, करंज और बांस की टहनियां दरवाजे पर लगाई जाती हैं ताकि नकारात्मक ऊर्जा और बीमारियों से बचाव हो सके। घरों में थेकरा चढ़ाने, छेना पकवान बनाने और सामूहिक पूजा की परंपरा निभाई जाती है। बुजुर्ग महिलाएं पारंपरिक गीत गाती हैं और बच्चे बांस से बनी लंबी गेड़ी पर चढ़कर खेलते हैं।
लोक खेल और पारंपरिक आयोजन
हरेली पर्व पर गांव-गांव में गेड़ी दौड़, बैल दौड़, लोकनृत्य और मेलों का आयोजन होता है। बच्चों में गेड़ी खेलने की खास उत्सुकता रहती है, जबकि युवाओं में कुश्ती और पारंपरिक खेलों की प्रतियोगिताएं होती हैं। कई जगह देवस्थानों और गौठानों में मेला लगता है और ग्रामवासी सामूहिक भोज करते हैं।
पर्यावरण और स्वास्थ्य से जुड़ा संदेश
हरेली केवल धार्मिक आस्था का पर्व नहीं, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य सुरक्षा का भी प्रतीक है। औषधीय पौधों का उपयोग, हरियाली में खेती की शुरुआत और प्रकृति से जुड़ाव छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति की गहराई को दर्शाता है।
पूरे प्रदेश में उत्साह का माहौल
राजधानी रायपुर सहित पूरे छत्तीसगढ़ में आज हरेली का उल्लास देखने को मिल रहा है। राज्य सरकार और ग्राम पंचायतों द्वारा पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देने के लिए विशेष कार्यक्रम रखे गए हैं। ग्रामीण अंचलों में सुबह से ही पूजा-अर्चना और लोकगीतों की गूंज सुनाई दे रही है।
हरेली तिहार किसानों की मेहनत, आस्था और लोकपरंपरा का प्रतीक है, जो छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखता है।
हरेली पर्व ने न केवल छत्तीसगढ़ी संस्कृति की सुगंध बिखेरी, बल्कि समाज को पर्यावरण संरक्षण और परंपरा से जुड़ने का संदेश भी दिया।
