

बिलासपुर। फर्जी आदिवासी प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी नौकरी पाने वाली शिक्षिका उर्मिला बैगा को आखिरकार सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है। संयुक्त संचालक, शिक्षा संभाग बिलासपुर आर.पी. आदित्य ने यह कार्रवाई उच्च स्तरीय जांच समिति की रिपोर्ट और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद की है।
उर्मिला बैगा शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला, चांटीडीह (विकासखंड बिल्हा) में शिक्षिका के पद पर पदस्थ थीं। उन्होंने नौकरी प्राप्त करने के लिए अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग का फर्जी प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया था, जिसमें उन्होंने स्वयं को ‘बैगा’ जाति का बताया। जांच के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि उनका वास्तविक जातीय समूह ‘ढीमर’ है, जो कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में आता है।
इस संबंध में पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर स्थित जाति प्रमाण पत्र जांच समिति ने 11 दिसंबर 2006 को ही उर्मिला बैगा का जाति प्रमाण पत्र निरस्त करते हुए उनकी सेवा समाप्त करने की सिफारिश की थी। इसके आधार पर 7 फरवरी 2007 को विभाग द्वारा उन्हें सेवा से पृथक करने का आदेश जारी किया गया। इस निर्णय को चुनौती देने के लिए उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन बाद में उन्होंने वह याचिका स्वयं ही वापस ले ली।
लगभग दो दशकों तक चली कानूनी प्रक्रिया और जांच के बाद, 24 जुलाई 2024 को जांच रिपोर्ट और कोर्ट के आदेशों के आधार पर उर्मिला बैगा को बर्खास्त करने का अंतिम निर्णय लिया गया। यह मामला एक बार फिर यह दर्शाता है कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सरकारी नौकरी प्राप्त करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी, चाहे उसमें कितना भी समय क्यों न लगे।
प्रशासन का संदेश स्पष्ट
शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस तरह के मामलों में कोई भी व्यक्ति कानून को गुमराह कर सरकारी सेवा में प्रवेश करता है, तो विभाग कानूनी और प्रशासनिक दोनों स्तरों पर सख्त कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध है। इस निर्णय को एक मिसाल के रूप में देखा जा रहा है, जो अन्य मामलों में भी अनुकरणीय सिद्ध हो सकता है।