छत्तीसगढ़ में मजदूरों का पलायन ना केवल जमीनी हकीकत है , बल्कि आज भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। छत्तीसगढ़ के प्रवासी मजदूर देशभर में काम की तलाश में जाते हैं। इस राज्य में 80% आबादी खेती किसानी के काम से जुड़ी हुई है। एक फसल के कारण किसान और खेतिहर मजदूर रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में आज भी पलायन कर रहे हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां औसतन एक परिवार के पास .27 हेक्टेयर खेती की जमीन है और एक मौसम में ही खेती होती है। पूरी फसल बारिश पर निर्भर है ।खेती अच्छी हुई तो आय ठीक-ठाक , नहीं तो फिर पूरा परिवार पलायन करने को विवश होता है। क्योंकि यहां गांव में रहते हुए बुनियादी आवश्यकतायें भी पूरी नहीं होती । भले ही केंद्र सरकार पिछले 3 सालों से 85 करोड़ लोगों को मुफ्त में अनाज दे रही हो लेकिन अन्य जरूरतें भी तो होती है, जिसकी भरपाई के लिए आज भी ग्रामीणों को पलायन करना पड़ता है। बिलासपुर जिले में ही श्रमिकों की संख्या 8 लाख से अधिक है। अब तो इन्हें मनरेगा का काम भी नहीं मिल पाता । अगर काम मिलता है तो समय पर पैसे नहीं मिलते।


यह समस्या वैसे तो पूरे छत्तीसगढ़ में है लेकिन बिलासपुर और मस्तूरी विधानसभा में यह समस्या विकराल है।
प्रवास पर रहने की 6-7 महीने में यह लोग 40 से 50 हज़ार रुपये औसतन कमा लेते हैं । उसी पैसे से कोई अपना घर बनाता है । कोई बेटी का विवाह करता है , तो कोई बच्चों की पढ़ाई लिखाई पर खर्च करता है। कोई उसी पैसे से जमीन खरीदना है तो किसी का यह पैसा इलाज पर खर्च हो जाता है।
सच तो यह है कि कोई भी मजदूर पलायन कर खुश नहीं होता, पलायन उसकी विवशता है । अपने घर से दूर दूसरे प्रदेशों में उन्हें शोषण का ही शिकार होना पड़ता है। कुछ लोग यहीं छूट जाते हैं, उनसे बिछोह का भी दर्द होता ही है। पर सबसे बड़ी समस्या है मजदूरों का शोषण। सब्जबाग दिखाकर ठेकेदार मजदूरों को दूसरे प्रदेशों में ले जाते हैं लेकिन सपने दिखाने वालों की जब सच्चाई सामने आती है तो फिर केवल पछताने के कुछ नहीं बचता। अधिकांश मजदूरों को बंधक बनाकर उन से काम लिया जाता है। ऐसे बंधुआ मजदूरों की रिहाई भी कठिन समस्या हो जाती है ।


सरकार दावा करती है कि छत्तीसगढ़ में केवल .4% ही बेरोजगारी है, यानी कोई भी बेरोजगार नहीं है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है।
सरकारी बदली लेकिन हालात नहीं बदले । इस सच्चाई को स्वीकार करते हुए भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के जिला अध्यक्ष चंद्रप्रकाश सूर्या, मंडल अध्यक्ष लोकनाथ बंजारे के साथ मंडल महामंत्री सुरेश बंजारे गांव गांव जाकर मजदूरों को जागरूक कर रहे हैं। वे जानते हैं कि अगर उन्हें पलायन के लिए मना किया गया तो वे इनकी बात नहीं सुनेंगे, क्योंकि पलायन रोकने के लिए इन सब को उनके ही गांव में पर्याप्त रोजगार देना होगा जो किसी भी सरकार के बस की बात नहीं है। इसलिए सूर्या और उनके साथी महिला समितियों की मदद से मजदूरों को प्रशिक्षित कर रहे हैं , ताकि वे अन्य प्रदेशों में जाकर रोजगार पाने के दौरान शोषण का शिकार ना हो। उन्हें बताया जा रहा है कि वे किन-किन बातों का ध्यान रखें और क्या सावधानी बरतें । सुझाव देते हुए अनुसूचित जाति मोर्चा के जिला अध्यक्ष चंद्रप्रकाश सूर्या ने कहा कि पलायन ग्रामीणों की मजबूरी है । उनके पास कोई और विकल्प नहीं है , इसलिए ग्रामीण मजदूरों को इस बात का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए जिससे वे सुरक्षित रूप से रोजगार हासिल कर सके । उन्होंने सलाह दी कि अन्य राज्यों में पलायन से पहले सभी मजदूरों को ग्राम पंचायत के प्रतिनिधि को अपनी संपूर्ण जानकारी देनी चाहिए ताकि कोई समस्या आने पर उन्हें त्वरित मदद मिल सके। उन्होंने यह भी सलाह दी कि पलायन के दौरान सभी का संपूर्ण बायोडाटा और डॉक्यूमेंट जैसे आधार कार्ड, वोटर कार्ड ड्राइविंग लाइसेंस आदि उनके पास होना चाहिए ।अगर संभव हो तो जहां वे मजदूरी कर रहे हैं उसकी सूचना नजदीकी पुलिस स्टेशन पर भी की जानी चाहिए। अपने गांव और जनप्रतिनिधियों से सतत संपर्क में रहने की भी आवश्यकता पर उन्होंने जोर दिया। साथ ही कहा कि किसी भी संकट की स्थिति में अपनों तक सूचना पहुंचाने की भी व्यवस्था पहले से सुनिश्चित होनी चाहिए।


सूर्या ने माना कि जब तक ग्रामीणों की बुनियादी जरूरत पूरी नहीं होगी, तब तक मजबूरी में उन्हें पलायन करना ही होगा। कभी प्राकृतिक आपदा के कारण तो कभी रोजगार की कमी के कारण, आज भी पूरा का पूरा गांव पलायन कर रहा है ।सरकार का प्रयास केवल इन आंकड़ों को छुपाने का है, इसलिए उन्होंने जोर दिया कि गांव से पलायन करने वाले मजदूरों की पूरी सूची तैयार होनी चाहिए जो ग्राम प्रतिनिधियों से लेकर जिला अधिकारियों के पास भी होनी चाहिए ताकि संकट की स्थिति में उनकी मदद की जा सके। कई बार मजदूर बंधक बना लिए जाते हैं, तो कई बार वे ठगी और शोषण का भी शिकार होते हैं । जो मेहनताना देने का वादा किया जाता है , वह नहीं दिया जाता। एकमुश्त रकम देने की बात कहकर उन्हें औने पौने में निपटाया जाता है, इसीलिए यह पलायन किस तरह से सुरक्षित हो, यह गंभीर और महत्वपूर्ण विषय बन चुका है, जिसे लेकर चंद्र प्रकाश सुर्या और उनके साथी लगातार मस्तूरी विधानसभा के ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं।

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